❝ वादा जो अधूरा रह गया ❞

 




रीमा की शादी को तीन साल हो चुके थे।

पहले दो साल तो जैसे सपनों जैसे बीते —

पति आर्यन का प्यार, ससुराल वालों का अपनापन, और खुद की नौकरी — सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था।


लेकिन पिछले एक साल से सब कुछ बदलने लगा था।

आर्यन देर रात घर आने लगा, फ़ोन पर लगातार बिज़ी रहने लगा।

रीमा पूछती तो जवाब मिलता —


> “ऑफिस के प्रोजेक्ट्स बहुत बढ़ गए हैं, मत पूछा करो हर बात।”




रीमा को खलने लगा कि अब उनके बीच पहले जैसा रिश्ता नहीं रहा।

एक दिन उसने हिम्मत करके आर्यन का मोबाइल देखा।

जिस डर से वह हमेशा बचती आई थी, वही सच उसके सामने था —

“रिया, आई मिस यू”, “कब मिलोगी?” जैसे कई मैसेज।


रीमा की आंखों में आंसू भर आए।

उसने रातभर खुद से कई सवाल किए —

क्या गलती मेरी है? क्या मैंने उसे कम प्यार किया?

सुबह होते ही उसने आर्यन से कहा —


> “आर्यन, क्या तुम्हारे जीवन में कोई और है?”




आर्यन कुछ देर चुप रहा, फिर बोला —


> “हाँ रीमा, मैं रिया को चाहता हूँ। वह मेरी ऑफिस कलीग है… और मैं तलाक चाहता हूँ।”




रीमा का दिल जैसे किसी ने मरोड़ दिया हो।

तीन साल का रिश्ता, सपनों की डोर, सब बिखर गया था।

वह बस इतना ही कह पाई —


> “ठीक है, अगर तुम्हें मेरी ज़रूरत नहीं, तो मैं तुम्हें रोकूंगी नहीं।”




आर्यन ने कहा —


> “मैं तुम्हें कुछ नहीं कहना चाहता, बस तुम्हारे लिए 15 लाख का चेक और यह फ्लैट तुम्हारे नाम कर दूँगा, ताकि तुम्हें कोई तकलीफ न हो।”




रीमा मुस्कराई, वह मुस्कान दर्द से भरी थी —


> “पैसे देकर क्या इंसानियत खरीद लोगे आर्यन?

मुझे तुम्हारे नाम का नहीं, अपने आत्म-सम्मान का सहारा चाहिए।

चेक रख लो… शायद अगली बार किसी और को देने की ज़रूरत पड़े।”




वह अपने कमरे में गई, अलमारी से अपने कुछ कपड़े निकाले, और धीरे से दरवाज़ा बंद किया।

आर्यन ने देखा — वह बिना कुछ बोले जा रही थी।


जब वह दरवाज़े से बाहर निकली तो बोली —


> “मैं तुम्हें माफ करती हूँ आर्यन…

क्योंकि नफ़रत करने के लिए भी दिल चाहिए, और वो मैंने अब तुम्हारे लिए खो दिया है।”




रीमा अपने मायके पहुँची।

माँ ने पूछा — “बेटी सब ठीक तो है?”

रीमा ने मुस्कराकर कहा —


> “हाँ माँ, अब सब ठीक हो जाएगा। बस थोड़ा वक्त लगेगा खुद को जोड़ने में।”




कुछ महीनों बाद उसने खुद को नए सिरे से संभाला।

अपनी नौकरी पर ध्यान दिया, अपने पुराने सपनों को फिर से जीना शुरू किया।

धीरे-धीरे उसकी ज़िंदगी में फिर से रंग लौटने लगे।


एक दिन जब वह ऑफिस जा रही थी, तो रास्ते में एक छोटी लड़की दिखी —

धूप में खड़ी फूल बेच रही थी।

रीमा ने पूछा — “क्यों इतनी धूप में खड़ी हो?”

लड़की बोली — “माँ बीमार है, दवा के पैसे चाहिए।”


रीमा की आँखें नम हो गईं।

उसने लड़की से सारे फूल खरीद लिए, और कहा —


> “कभी किसी को मत छोड़ना, चाहे हालात कितने भी कठिन क्यों न हों।”




उस दिन रीमा ने महसूस किया कि

जिसे हम खो देते हैं, वही हमें खुद को पाने का रास्ता दिखाता है।


सालों बाद जब उसने आर्यन को सड़क पर देखा,

तो वह एक अजनबी जैसा लगा —

शायद रिया उसे छोड़कर जा चुकी थी,

पर रीमा के चेहरे पर संतोष था।


वह मुस्कराई और मन ही मन बोली —


> “धन्यवाद आर्यन… अगर तुम मुझे छोड़ते नहीं,

तो मैं खुद को कभी पा नहीं पाती।”



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संदेश:

कभी-कभी ज़िंदगी हमें तोड़ती इसलिए है ताकि हम अपनी असली ताकत पहचान सकें।

प्यार हमेशा साथ रहने का नाम नहीं, कभी-कभी छोड़ देने में भी एक गहरा प्रेम छिपा होता है।



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