🌸 “माँ के हाथ का स्वाद”

 


सुबह के आठ बजे थे। रसोई से छन-छन की आवाज़ें आ रही थीं।

राधा जल्दी-जल्दी रोटियाँ सेंक रही थी और बगल में गैस पर दाल उबल रही थी। तभी पीछे से सास कमला देवी बोलीं —

“अरे बहु, थोड़ा ध्यान से, रोटियाँ जल रही हैं।”


राधा ने मुस्कुरा कर कहा, “जी माजी, अब बस उतर ही रही हैं।”


कमला देवी ने सिर हिलाया —

“हमारे ज़माने में तो बहुएँ सुबह चार बजे उठ जाती थीं, घर का झाड़ू-पोंछा करतीं, चूल्हा जलातीं और फिर सबके लिए नाश्ता। अब देखो, नौ बजने को है और अभी तक नाश्ता भी नहीं बना।”


राधा कुछ कहना चाहती थी पर चुप रही। वो जानती थी कि माजी का दिल बुरा नहीं है, बस उनकी आदतें पुरानी हैं।



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दूसरे कमरे में राधा का पति अमन लैपटॉप खोले बैठा था। ऑफिस का वर्क-फ्रॉम-होम चल रहा था।

अमन ने आवाज़ लगाई — “राधा, मेरी कॉफी बन गई क्या?”

“हाँ, बस लाई,” उसने कहा और कॉफी का कप बढ़ाया।


अमन ने मुस्कुराकर पूछा — “माँ फिर से डाँट रहीं?”

राधा ने धीरे से कहा, “थोड़ा सा… पर कोई बात नहीं। उनका तरीका बस थोड़ा अलग है।”

अमन बोला, “तुम भी ना, कभी नाराज नहीं होती।”

राधा बोली, “माँ हैं न… मुझसे बड़ी हैं, उनकी बातें सुनने में बुरा क्या?”



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उसी शाम पड़ोस में पूजा का आयोजन था। सब महिलाएँ अपनी-अपनी डिश लेकर आने वाली थीं।

राधा बोली, “माजी, मैं कुछ नया बनाऊँ?”

कमला देवी बोलीं, “छोड़ो, तुम्हें क्या पता पूजा में क्या बनता है। मैं ही बना दूँगी।”


राधा चुपचाप खड़ी रही, फिर बोली, “माजी, मैं कोशिश कर लेती हूँ… अगर ठीक न लगे तो आप बना लेना।”

कमला देवी बोलीं, “ठीक है, देख लेते हैं तुम्हारा हुनर।”


राधा ने अपनी माँ से सीखी हुई “चना दाल की खिचड़ी” बनाई — हल्की, सुगंधित और सादा घी में पकी हुई।

महिलाएँ जब खाने लगीं तो सबने कहा —

“वाह! किसने बनाई है ये खिचड़ी? बहुत स्वादिष्ट है।”


कमला देवी गर्व से बोलीं, “हमारी बहु ने बनाई है।”

उनके चेहरे पर गर्व और आँखों में अपनापन था।



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रात को कमला देवी ने राधा को बुलाया —

“बहु, आज तेरी बनाई खिचड़ी सबको इतनी पसंद आई कि सब रेसिपी पूछ रही थीं। मैंने कहा — ये तो मेरी बहु का हुनर है।”


राधा मुस्कुरा दी — “माजी, आपका आशीर्वाद है।”

कमला देवी बोलीं, “नहीं बहु, अब मुझे समझ आया — हर जमाने की अपनी रसोई होती है।

तुम्हारा तरीका अलग है, पर प्यार वही है।”



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कुछ दिन बाद कमला देवी बीमार पड़ गईं। डॉक्टर ने कहा, “खाने में स्वाद नहीं लग रहा, हल्का और सादा खाना दीजिए।”

राधा ने खुद उनके लिए हर दिन खिचड़ी, दही-चावल, और सूप बनाया।

कमला देवी कहतीं, “बहु, तुम्हारे हाथ का खाना खाऊँ तो दवा की ज़रूरत ही नहीं लगती।”


राधा मुस्कुराती — “क्योंकि इसमें दवा नहीं, ममता है माजी।”




दो हफ्ते बाद जब कमला देवी ठीक हो गईं, तो उन्होंने पूरे परिवार के लिए खाना बनाया।

उन्होंने सबके प्लेट में परोसते हुए कहा —

“आज मैं अपने बहु की तरह बनाऊँगी — कम मसाले, ज़्यादा प्यार।”


सब हँस पड़े।

अमन बोला, “अब तो दोनों के हाथ का स्वाद एक जैसा लगने लगा है।”


कमला देवी बोलीं, “हाँ बेटा, क्योंकि अब हमने एक-दूसरे को समझना सीख लिया है।”


राधा बोली, “माजी, मैंने भी सीखा — सिर्फ़ स्वाद ही नहीं, रिश्ते भी धीरे-धीरे पकते हैं।”



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🌿 सीख:


“हर रिश्ते की मिठास समझ और अपनापन से आती है।

पुराने संस्कार हों या नए तौर-तरीके

 — जब दोनों पीढ़ियाँ एक-दूसरे की इज़्ज़त करें,

तो घर अपने आप मंदिर बन जाता है।”

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