❝ रिश्तों की खुशबू ❞
रीना की शादी अगले महीने 15 अप्रैल को तय हुई थी।
घर में खूब तैयारियाँ चल रही थीं — कपड़ों की लिस्ट, मिठाइयों का ऑर्डर, कार्ड छपवाने से लेकर गहनों की खरीदारी तक सब चल रहा था।
रीना के पापा सुरेश जी और मम्मी सरिता जी दोनों बहुत खुश थे कि उनकी इकलौती बेटी अब अपने घर बसाने जा रही है।
एक दिन सुबह दरवाजे की घंटी बजी।
सामने खड़ी थीं— रीना की होने वाली सास सुनीता जी।
चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान और हाथों में मिठाई का डिब्बा।
“भाई साहब, बहन जी, नमस्ते,”
उन्होंने कहा, “आज सोचा कि रीना से मिल लूं, वैसे भी शादी की तैयारी के बीच थोड़ा वक्त मिलना मुश्किल हो जाता है।”
रीना तुरंत आगे आई, “नमस्ते आंटी!”
सुनीता जी मुस्कराईं, “अब ‘आंटी’ नहीं बेटा, ‘माँ’ कहो न, कुछ ही दिनों में तो मैं तुम्हारी सास नहीं, तुम्हारी दूसरी माँ बन जाऊंगी।”
रीना के चेहरे पर लाज की लाली छा गई।
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अगले ही दिन सुनीता जी ने फोन किया,
“बहन जी, अगर आप बुरा न मानें तो एक बात कहूँ — मैं चाहती हूँ रीना को लेकर थोड़ा शॉपिंग कर लूं। आखिर पहनना तो उसे ही है, उसकी पसंद की चीजें ले लेते हैं।”
सुरेश जी बोले, “बहन जी, ये तो बहुत अच्छी बात है। ले जाइए, अब तो वो आपकी जिम्मेदारी है।”
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सुनीता जी अपनी गाड़ी लेकर रीना के घर पहुँचीं।
“चलो बेटी, देर हो जाएगी, अमित ऑफिस से छुट्टी लेकर बाजार पहुँचने वाला है।”
रीना ने जल्दी से दुपट्टा ओढ़ा, और निकलने से पहले सुनीता जी के पैर छूए।
सुनीता जी ने प्यार से सिर पर हाथ रखा, “सदा खुश रहो बेटी।”
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दोनों बाजार पहुँचे।
अमित पहले से वहाँ था।
वो भी रीना को देखकर मुस्कराया, लेकिन कुछ बोल नहीं पाया।
सुनीता जी ने हल्की मुस्कान के साथ दोनों की झिझक को समझ लिया।
“सेल्समैन, ऐसा हार दिखाओ कि मेरी बहू किसी राजकुमारी से कम न लगे,” उन्होंने कहा।
फिर साड़ी की दुकान, चूड़ी, पायल — सब कुछ रीना की पसंद से लिया गया।
बाजार घूमने के बाद सुनीता जी बोलीं,
“चलो बेटी, थोड़ा कुछ खा लेते हैं, इतना चलकर थक गई होगी।”
रीना बोली, “माँ, आपने मुझे बहुत लाड़ से रखा है, अब लगता है मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ।”
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शादी धूमधाम से हुई।
अमित और रीना एक-दूसरे के हमसफ़र बन गए।
सुनीता जी पूरे समारोह में जैसे खुद की बेटी की शादी कर रही हों।
हर मेहमान बस एक ही बात कह रहा था —
“ऐसी सास सबको मिले।”
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ससुराल आने के बाद के पहले कुछ दिन रीना के लिए नए थे।
पर सुनीता जी ने उसे कभी पराया महसूस नहीं होने दिया।
“बेटी, अभी कुछ दिन आराम कर लो, ये सब काम तो जिंदगीभर रहेंगे,”
वो प्यार से कहतीं।
धीरे-धीरे दोनों में गहरी दोस्ती हो गई।
सुनीता जी उसे अपने कॉलेज के दिनों की बातें सुनातीं,
“अरे, मैं भी तेरी तरह बहुत शरारती थी।”
दोनों मिलकर हँसतीं, साथ में खाना बनातीं, और कभी-कभी फिल्में भी देख लेतीं।
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एक दिन सुनीता जी ने कहा,
“रीना, मैं तुम्हारे लिए एक सरप्राइज़ लाई हूँ।”
और उन्होंने दो टिकटें निकालीं — मालदीव्स हनीमून ट्रिप की।
रीना हैरान रह गई,
“माँ, इसकी क्या जरूरत थी?”
सुनीता जी बोलीं,
“बेटी, ये टिकट मैंने नहीं, तुम्हारे ससुर ने अपनी बचत से ली थी। उनका सपना था कि जब बेटा शादी करे तो बहू-बेटे को घूमने भेजूँ।”
रीना की आँखें भर आईं।
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हनीमून के दिन सुनीता जी ने दोनों के बैग पैक किए,
अमित के पसंद के स्नैक्स, रीना की दवाइयाँ, सब कुछ रख दिया।
“माँ, हम घूमने जा रहे हैं, बसने नहीं,” रीना ने हँसकर कहा।
सुनीता जी बोलीं, “अरे, माँ का प्यार है ये, साथ ले जाओ।”
गले लगते हुए सुनीता जी की आँखें नम हो गईं।
“जाओ बेटी, खुश रहो... बस कभी ये मत कहना कि किसी माँ ने अपने बच्चों को कम प्यार किया।”
रीना ने आँसू पोंछते हुए कहा,
“माँ, अब आप भी मेरी माँ हैं, पराई कैसे हो सकती हूँ?”
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मालदीव्स में भी रीना रोज वीडियो कॉल करती थी।
“माँ, यहाँ का पानी कितना नीला है... लेकिन आपकी कमी हर जगह लगती है।”
सुनीता जी हँसकर बोलीं,
“अब रोएगी तो वीडियो बंद कर दूँगी।”
रीना मुस्करा दी।
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छुट्टी खत्म हुई, दोनों लौट आए।
सुनीता जी के लिए रीना ने एक सुंदर सी मोती की माला लाई थी।
“माँ, ये आपके लिए है,”
सुनीता जी ने माला पहनते हुए कहा,
“अब मेरी बहू ने तो मुझे भी रानी बना दिया।”
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कुछ महीनों बाद, रीना माँ बनने वाली थी।
सुनीता जी ने उसे किसी काम के पास नहीं जाने दिया।
“तू बस आराम कर, बाकी सब मैं संभाल लूंगी।”
रात को दूध में केसर डालकर देतीं,
सुबह फल काटकर रख देतीं।
रीना जब भी अपनी मम्मी से फोन पर बात करती तो कहती,
“माँ, लगता है मैं ससुराल में नहीं, अपने ही घर में हूँ। सुनीता माँ तो आपकी ही तरह हैं।”
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जब रीना ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया,
सुनीता जी की आँखों में खुशी के आँसू आ गए।
“भगवान ने मुझे पोता नहीं, दूसरा बेटा दे दिया।”
पूरे घर में हँसी-खुशी छा गई।
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एक दिन सुनीता जी की ननद (देवरानी नहीं, अमित की बुआ) मिलने आईं।
उन्होंने देखा कि रीना को कितना आराम दिया जा रहा है।
बोलीं, “भाभी, इतना सर पर मत चढ़ाओ बहू को, आगे चलकर बात हाथ से निकल जाएगी।”
सुनीता जी मुस्कराईं,
“दीदी, प्यार देने से कभी रिश्ता नहीं बिगड़ता, वो तो और मजबूत होता है। मेरी रीना मेरी बहू नहीं, मेरी बेटी है।”
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समय बीता… बेटा बड़ा हुआ।
हर त्यौहार पर रीना और सुनीता जी साथ में सजावट करतीं, खाना बनातीं, और हँसते-मुस्कराते घर को स्वर्ग बना देतीं।
जो भी उनके घर आता, यही कहता —
“सास-बहू अगर ऐसी हों, तो हर घर स्वर्ग बन जाए।”
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संदेश:
कभी-कभी प्यार का रिश्ता खून से नहीं,
दिल से बनता है।
अगर सास माँ बन जाए और बहू बेटी —
तो घर सच में घर बन जाता है,
जहाँ हर कोने में “रिश्तों की खुशबू” महकती है।
भाग- 2
समय कब पंख लगाकर उड़ गया, किसी को पता ही नहीं चला।
रीना और अमित की शादी को अब पंद्रह साल बीत चुके थे।
उनका बेटा आरव अब क्लास 9 में पढ़ता था — बिलकुल अपने पिता की तरह समझदार और अपनी दादी का लाडला।
सुनीता जी अब उम्रदराज़ हो चली थीं।
बालों में सफेदी आ चुकी थी, पर मुस्कान अब भी पहले जैसी थी।
घर की दीवारें अब भी उनकी हँसी से गूंजतीं, और रीना के हर काम में अब भी वही माँ का साया बना प्यार झलकता था।
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एक सुबह..
सुनीता जी पूजा कर रही थीं, तभी रीना दूध लेकर आई।
“माँ, पहले ये दूध पी लीजिए, ठंडा हो जाएगा।”
सुनीता जी मुस्कराईं —
“बेटी, अब तो तुम भी वही बोलती हो जो मैं पहले कहा करती थी… वक़्त कितनी जल्दी बदल गया ना?”
रीना पास बैठ गई, “हाँ माँ, पर एक बात नहीं बदली — आपकी ममता।”
दोनों हँस पड़ीं।
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आरव की बोर्ड परीक्षा..
आरव की पढ़ाई का समय था। रीना और अमित ऑफिस से छुट्टियाँ लेकर उसका ध्यान रख रहे थे, पर सुनीता जी सबसे ज्यादा चिंता करतीं।
“रीना, बच्चे को देर रात तक मत पढ़ने देना। दिमाग थक जाएगा।”
रीना बोली, “माँ, आप चिंता न करें। मैं सब देख लूंगी।”
सुनीता जी प्यार से बोलीं, “अब तो तुम भी माँ बन चुकी हो, मुझसे बेहतर कौन समझेगा।”
उस रात रीना ने देखा — माँ थकी हुई थीं, फिर भी आरव के लिए बादाम वाला दूध बनाकर रख गईं।
रीना के मन में भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा।
उसने माँ के हाथ थामे, “माँ, आपने हर पल मेरे लिए जितना किया, वो मैं कभी नहीं चुका सकती।”
सुनीता जी बोलीं, “बेटी, माँ-बेटी के बीच हिसाब नहीं होता, बस प्यार होता है।”
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कुछ महीने बाद सुनीता जी को हल्का बुखार रहने लगा।
शुरू में तो सबको लगा सामान्य है, लेकिन जब कमजोरी बढ़ी तो डॉक्टर ने कहा —
“उन्हें आराम की जरूरत है, ज्यादा तनाव न दें।”
रीना ने तुरंत घर का सारा काम अपने हाथ में ले लिया।
“माँ अब सिर्फ आराम करेंगी, बाकी सब मैं संभालूंगी।”
सुनीता जी को जब भी मौका मिलता, वो कहतीं —
“बेटी, मैं कुछ काम कर लूं न?”
रीना हँसकर कहती,
“अब आप मेरी माँ नहीं, मेरी बच्ची हैं — बस आराम कीजिए।”
अब जैसे रोल बदल गए थे।
जो कभी सास थी, अब बेटी जैसी बन गई थी,
और जो बहू थी, अब माँ बन चुकी थी — अपने सास के लिए।
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एक शाम का किस्सा...
एक दिन शाम को सब लोग छत पर बैठे थे।
हल्की हवा चल रही थी।
अमित बोला, “माँ, याद है, आपने हमें स्विट्ज़रलैंड भेजा था?”
सुनीता जी मुस्कराईं,
“कैसे भूल सकती हूँ, वही तो मेरी जिंदगी के सबसे प्यारे पल थे जब मेरी बहू को पहली बार बेटी बनते देखा था।”
रीना की आँखें भर आईं।
वो धीरे से बोली,
“माँ, अगर अगले जन्म में भी रिश्ते मिलें तो मैं चाहूँगी कि आप फिर मेरी माँ बनें — चाहे सास के रूप में या असली माँ के रूप में।”
सुनीता जी ने उसका हाथ थाम लिया,
“बेटी, तब तक तो मैं यहीं रहूँगी… तुम्हारे दिल में।”
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आख़िरी सुबह...
कुछ हफ्तों बाद एक सुबह, सुनीता जी पूजा करते-करते शांत हो गईं।
चेहरे पर वही मुस्कान थी, जैसे कोई अधूरा सपना पूरा हो गया हो।
घर में सन्नाटा छा गया।
रीना भागती हुई आई,
“माँ… उठिए ना माँ…”
पर माँ अब बहुत दूर जा चुकी थीं — वहीं, जहाँ दर्द नहीं होता, जहाँ बस शांति होती है।
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विदाई और विरासत...
रीना ने माँ की चूड़ी, उनकी पुरानी चुनरी और वही मोती की माला अपने पास रख ली —
जो वो हनीमून से लाई थी।
उस रात रीना ने आरव को अपनी गोद में लेते हुए कहा,
“बेटा, आज से ये घर वही रहेगा जैसा माँ चाहती थीं — जहाँ प्यार रहेगा, अपनापन रहेगा, और कोई किसी से पराया नहीं होगा।”
आरव बोला,
“माँ, दादी कहा करती थीं कि रिश्ते खून से नहीं, दिल से बनते हैं। अब समझ में आया — उन्होंने ये आपके लिए कहा था।”
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वर्षों बाद...
समय बीता, आरव बड़ा हुआ, उसकी भी शादी हो गई।
उस दिन जब उसकी पत्नी ने रीना के पैर छुए,
रीना ने उसकी पीठ थपथपाई —
“उठो बेटी, पैर नहीं, दिल जीता जाता है।”
पीछे दीवार पर टंगी सुनीता जी की तस्वीर मुस्करा रही थी।
ऐसा लग रहा था मानो वो कह रही हों —
“देखो, मैंने कहा था ना... रिश्ता अगर प्यार से निभाओ तो वो पीढ़ियों तक महकता है।”
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🌹 अंत संदेश:
माँ और बेटी का रिश्ता खून से नहीं,
समर्पण और स्नेह से बनता है।
रीना और सुनीता जी ने दुनिया को ये सिखा दिया कि
अगर सास माँ बन जाए, तो हर घर मंदिर बन जाता है —
जहाँ रिश्तों की खुशबू कभी नहीं मिटती। 🌼

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