❝ सासु माँ, अब आपकी बहू नहीं आपकी बेटी बोल रही है ❞

 



सुबह का समय था। रसोई से बर्तनों की खनकने की आवाज आ रही थी, लेकिन घर में एक अजीब सी खामोशी थी।

रुचि रोज की तरह रसोई में नाश्ता बना रही थी — पर आज उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। ना मुस्कान, ना चिंता, बस चुपचाप काम कर रही थी।

टेबल पर बैठे उसके ससुर अखबार पलट रहे थे, और उसकी सास विमला जी मंदिर के सामने बुदबुदा रही थीं।


पर सच तो यह था कि पूजा में भी उनका ध्यान नहीं था — कल रात जो हुआ, उसने सबको भीतर तक झकझोर दिया था।



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पिछली रात की बात...


कल रात विमला जी के छोटे बेटे सुमित और बहू रिया डिनर के लिए घर आए थे।

घर में बहुत खुशी का माहौल था — सब हंसी मज़ाक कर रहे थे।

रुचि रसोई में लगी हुई थी, सबको खाना परोस रही थी। तभी विमला जी ने हंसते हुए कहा —


“अरे सुमित, तू तो बड़ा भाग्यशाली है। तुझे तो रिया जैसी बहू मिली है — जो हर वक्त हंसती रहती है, और हमारी रुचि जैसी गूंगी बहू नहीं।”


सबके सामने यह सुनकर रुचि का चेहरा लाल पड़ गया, पर उसने कुछ नहीं कहा।

वो जानती थी — सासू माँ की आदत है, बिना ताने मारे उन्हें चैन नहीं मिलता।


लेकिन उस दिन विमला जी ने हद कर दी —

कहने लगीं, “हमारे बड़े बेटे की किस्मत खराब थी, जो ऐसी बहू मिली, जो मायके वालों से तो रोज फोन पर बात करती है, लेकिन ससुराल वालों के सामने जुबान बंद रखती है।”


इतना कहकर वह हंसने लगीं, पर कमरे में कोई नहीं हंसा।

सुमित और रिया दोनों असहज हो गए। तभी रिया ने बात संभालने की कोशिश की —

“माँ जी, भाभी बहुत अच्छी हैं, बस थोड़ी सी शर्मीली हैं। और वैसे भी भाभी के मम्मी-पापा बहुत अच्छे लोग हैं। जब मैं पहली बार मिली थी उनसे, उन्होंने इतना आदर दिया कि मैं भावुक हो गई थी।”


रिया की बात पूरी होती कि विमला जी तिलमिला उठीं —

“अच्छे लोग? अरे वही तो हैं जिन्होंने हमारे घर की इज्जत पर दाग लगाया था!”


रिया कुछ समझ नहीं पाई, लेकिन रुचि के दिल में जैसे किसी ने पुराना जख्म कुरेद दिया हो।



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पाँच साल पुराना ज़ख्म...


रुचि की शादी को सिर्फ़ एक महीना हुआ था।

उसके मम्मी-पापा पहली बार उसके ससुराल आए थे।

घर में सब खुश थे, लेकिन तभी विमला जी ने देखा कि उनके पुराने कंगनों का डिब्बा गायब है।


बिना कुछ सोचे उन्होंने हंगामा मचा दिया —

“हमारे घर से सोना गायब है और आज ही ये लोग आए हैं! चोरी किसने की है, सब समझ आ गया।”


रुचि ने बहुत समझाया कि “माँ जी, मेरे मम्मी-पापा ऐसा नहीं कर सकते”,

पर विमला जी ने किसी की एक नहीं सुनी।

उन्होंने उसी दिन ऐलान कर दिया —

“आज से इस लड़की का मायका हमारे लिए मर गया!”


उस दिन रुचि के मम्मी-पापा हाथ जोड़कर चुपचाप चले गए,

और तब से आज तक — पाँच साल हो गए — वो लोग कभी इस घर नहीं आए।



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सच्चाई का खुलासा...


कल रात जब विमला जी की छोटी बहू रिया मोबाइल पर अपनी शादी की तस्वीरें दिखा रही थी,

तो एक फोटो देखकर रुचि के होश उड़ गए।

रिया की कलाई में वही कंगन झिलमिला रहे थे — जो विमला जी के खोए हुए कंगन बताए गए थे।


रुचि ने पूछा —

“रिया, ये कंगन कहाँ से मिले तुम्हें?”

रिया बोली — “माँ जी ने दिए थे, बोलीं परिवार की निशानी हैं।”


रुचि को जैसे बिजली सी लगी —

मतलब सास ने खुद अपनी छोटी बहू को वही कंगन दे दिए थे,

जिन्हें लेकर उन्होंने रुचि के मायके वालों पर चोरी का इल्ज़ाम लगाया था।


रिया के चेहरे से सब साफ़ था।

सुमित और उसके पापा भी एकदम चुप हो गए।

पूरा सच अब सबके सामने था।


विमला जी झेंप गईं, पर अपने अहंकार को नीचे नहीं रखना चाहती थीं।

कह दिया —

“हां, गलती हो गई, पर जो हुआ सो हुआ। अब पुरानी बातें निकालकर घर का माहौल खराब मत करो।”


रुचि ने कोई जवाब नहीं दिया, बस अपने कमरे में चली गई।



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अगली सुबह...


रुचि ने बैग पैक कर लिया था।

सास-ससुर नाश्ता कर रहे थे, तब वह आई।

ससुर ने पूछा — “कहीं जा रही हो बेटा?”


रुचि बोली —

“हाँ पापा जी, अपने मम्मी-पापा के घर। पाँच साल हो गए उन्हें देखे हुए। अब बहुत हुआ।”


विमला जी की आँखों में आग सी भड़क उठी —

“अगर उस घर गई तो लौटकर मत आना! हमने रिश्ते खत्म कर दिए हैं उनसे।”


रुचि ने शांत स्वर में कहा —

“रिश्ता आपने तोड़ा था, मैंने नहीं। जिन लोगों ने मुझे जन्म दिया, वो मेरे भगवान हैं।”


विमला जी चिल्लाईं —

“बहुत ज़ुबान चलाने लगी है तू!”


रुचि भी अब ठान चुकी थी —

“सासु माँ, ज़ुबान मैं अब नहीं रोकूंगी।

जिस दिन आपने मेरे माता-पिता को चोर कहा था, उस दिन मैं भी टूट गई थी।

पर आज जब सच्चाई सामने आ गई, तो आप चुप हैं।

क्या हुआ सासु माँ? तब तो बोली थीं — ‘हम चोरों से रिश्ता नहीं रखते’।

अब तो आपकी गलती साबित हो गई,

तो कब तोड़ेंगी अपनी बेटी सरीखी बहू से रिश्ता?”


विमला जी कुछ नहीं बोलीं। बस कुर्सी पर बैठी रह गईं।


रुचि ने बैग उठाया,

ससुर के पैर छुए,

और बोली —

“अब मैं जा रही हूँ पापा जी।

कभी दिल से याद आए तो बेटी की तरह बुला लीजिएगा,

पर मैं अब बहू बनकर नहीं, अपने माता-पिता की इज़्ज़त बनकर जियूँगी।”


वो बाहर चली गई।

पीछे खड़ी विमला जी की आंखों से आंसू बहने लगे।

उन्हें आज अहसास हुआ —

रिश्ते अहंकार से नहीं, समझ से चलते हैं।

और बहू अगर बेटी बन जाए, तो घर जन्नत बन जाता है।



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 संदेश:


कभी किसी के माता-पिता का अपमान मत कीजिए।

क्योंकि जिस दिन आपकी बेटी किसी की बहू बनेगी,

वक्त उसी की तरह आपको भी आईना दिखाएगा।

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