❝ इज़्ज़त का अर्थ ❞
रात के करीब साढ़े ग्यारह बजे होंगे।
सुनयना अपने कमरे में अकेली बैठी थी। आंखों से आँसू रुक नहीं रहे थे। पति मोहित फिर से उस पर चिल्लाकर गया था — सिर्फ़ इसलिए क्योंकि खाना थोड़ा ज़्यादा नमकीन बन गया था।
सुनयना ने अपने आँसू पोंछे और बिस्तर के कोने में जाकर चुपचाप बैठ गई। तभी बाहर वाले कमरे से सासु माँ, रमा देवी, की आवाज़ आई,
"क्या फिर से झगड़ा हुआ क्या?"
सुनयना चौंक गई। उसने तुरंत जवाब दिया,
"नहीं मम्मी जी, कुछ नहीं हुआ।"
रमा देवी सब समझ गईं। उम्र और अनुभव ने उन्हें इतना सिखा दिया था कि किसी की आवाज़ में छिपे दर्द को पहचानना मुश्किल नहीं था।
उन्होंने धीरे से दरवाज़े पर दस्तक दी,
"बेटी, अगर मन हो तो बात कर लो मुझसे। मैं तुम्हारी दुश्मन नहीं हूँ।"
सुनयना की आँखें फिर भर आईं। उसने दरवाज़ा खोला और रोते हुए कहा,
"मम्मी जी, मैं सच में बहुत कोशिश करती हूँ, पर मोहित हमेशा मुझ पर ग़ुस्सा करता है। छोटी-छोटी बातों पर चिल्ला देता है, चीज़ें फेंक देता है… अब तो डर लगने लगा है उनसे।"
रमा देवी का दिल टूट गया। उन्होंने अपनी बहू को गले से लगा लिया।
"बेटी, जिस घर में औरत रोती है, उस घर की शांति चली जाती है। अब बहुत हो गया। चुप रहना कोई समाधान नहीं है।"
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अगले दिन, सुबह का वक्त था।
मोहित हमेशा की तरह अख़बार पढ़ते हुए बोला,
"अरे माँ, आज फिर ये पराठे जल गए। इसे तो रोटी बनानी ही नहीं आती।"
इस बार रमा देवी ने अख़बार उसके हाथ से खींच लिया।
"बस! बहुत हो गया मोहित! तू किस लहजे में बात कर रहा है अपनी पत्नी से? क्या तूने मुझे कभी अपने बाप से ऐसे बात करते देखा?"
मोहित चुप रहा, पर चेहरा तमतमा गया।
"माँ, ये हमारी आपसी बात है, आप बीच में मत पड़ो।"
"अगर तू अपनी पत्नी को अपमानित करेगा, तो मैं बीच में ज़रूर पड़ूँगी!"
रमा देवी बोलीं, "और अगर अगली बार तूने उस पर हाथ उठाया, तो याद रख, मैं पुलिस में रिपोर्ट करवाऊँगी।"
मोहित को यकीन नहीं हुआ —
"आप मेरी अपनी माँ होकर मेरी शिकायत करेंगी?"
रमा देवी ने ठंडी आवाज़ में कहा,
"हाँ बेटा, अगर बेटा गलत हो, तो माँ को भी इंसाफ के पक्ष में खड़ा होना चाहिए।"
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कुछ दिनों तक घर में सन्नाटा छाया रहा।
मोहित कम बोलता, सुनयना और रमा देवी ज़्यादा समय साथ बिताने लगीं। वे दोनों पूजा करतीं, खाना बनातीं, कभी-कभी पुरानी यादों की बातें करतीं।
धीरे-धीरे सुनयना का चेहरा फिर से मुस्कराने लगा।
एक दिन महित के कॉलेज का पुराना दोस्त मिलने आया। उसने हँसते हुए कहा,
"भाई, तेरी बीवी तो बहुत समझदार है, सबके सामने कितना इज़्ज़त से पेश आती है। किस्मत वालों को ऐसी बीवी मिलती है।"
उस दिन पहली बार मोहित को शर्म आई।
उसे याद आया, कैसे वही औरत जिसके लिए उसने इतने बुरे शब्द कहे, वही रोज़ बिना कुछ कहे उसका हर काम करती रही।
रात को वह कमरे में गया। सुनयना तकिए पर सिर रखकर लेटी थी।
मोहित ने धीरे से कहा,
"सुनो... मुझे माफ़ कर दो। मुझसे गलती हो गई।"
सुनयना ने आँसू पोंछे, पर कुछ नहीं कहा।
मोहित बोला,
"माँ ने सही कहा, इज़्ज़त सिर्फ़ माँ की नहीं, पत्नी की भी उतनी ही ज़रूरी है। मैं बदलना चाहता हूँ। बस एक मौका और दो।"
सुनयना ने सिर हिलाया —
"मोहित, प्यार वही होता है जिसमें इज़्ज़त हो। अगर तुम सच में बदलना चाहते हो, तो मैं हमेशा साथ हूँ।"
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कुछ महीनों बाद...
घर का माहौल बिल्कुल बदल गया था।
मोहित अब हर बात में अपनी पत्नी की राय लेता, सासू माँ को आदर से सुनता। मोहल्ले वाले कहते,
"रमा देवी ने अपने बेटे को सही मायनों में इंसान बना दिया।"
एक दिन सुनयना बोली,
"मम्मी जी, अगर आप नहीं होतीं, तो शायद मैं टूट जाती।"
रमा देवी मुस्कुराईं,
"बेटी, औरत अगर औरत का साथ दे दे, तो ज़िंदगी की कोई लड़ाई बड़ी नहीं लगती।"
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सीख:
औरत का सम्मान करना ही असली मर्दानगी है।
माँ केवल अपने बेटे का साथ नहीं देती, बल्कि सही बात का साथ देती है।
चुप रहना समाधान नहीं, सच कहना ही साहस है।

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