मन की गांठें
“बहू, अगले महीने तुम्हारे जेठ का बेटा आर्यन इंजीनियर बनकर घर आ रहा है, सब लोग सोच रहे हैं कि उसके लिए घर पर एक छोटी-सी पार्टी रखी जाए।”
शारदा देवी ने अपनी छोटी बहू सविता से कहा।
“वाह मम्मीजी, बहुत अच्छा विचार है! आखिर इतने सालों बाद आर्यन घर आ रहा है। मैं तो सोच रही हूं कि सजावट, मिठाई सब मैं खुद संभाल लूं।”
सविता ने उत्साह से कहा।
“अरे बहू, तेरा जोश तो अच्छा है, पर बड़ी बहू तनु भी तो है, दोनों मिलकर कर लेना।”
शारदा देवी मुस्कुराईं।
घर में दो बहुएं थीं — बड़ी बहू तनु, शांत, समझदार और थोड़ी कम बोलने वाली;
और छोटी बहू सविता, चुलबुली, आधुनिक और हर काम में आगे रहने वाली।
सविता को हर चीज़ अपने हिसाब से करना पसंद था।
जबकि तनु, घर की मर्यादा और सबकी सुविधा देखकर काम करती थी।
पार्टी की तैयारियां शुरू हुईं।
सविता ने सारा प्लान अपने हाथ में ले लिया — कौन सा पर्दा लगेगा, कौन सी मिठाई बनेगी, कौन क्या बोलेगा, सब उसने तय किया।
तनु ने धीरे से सुझाव दिया —
“सविता, मैं सोच रही थी कि आर्यन के स्वागत में बच्चों से एक छोटा-सा गीत गवा लें, प्यारा लगेगा।”
सविता ने मुस्कुराते हुए कहा —
“अरे भाभी, स्वागत गीत की जरूरत नहीं है। मैं और रीना बुआ डांस की रिहर्सल कर रहे हैं, वही काफी रहेगा।”
तनु चुप रह गई।
उसे महसूस हुआ कि अब उसकी राय की कोई अहमियत नहीं रही।
घर मेहमानों से भरा हुआ था।
आर्यन आया तो सब बहुत खुश हुए।
सविता ने बड़ी तैयारी से मंच पर नाच किया, सब लोग उसकी तारीफ करने लगे —
“वाह छोटी बहू, क्या डांस किया है!”
“पूरा माहौल बना दिया।”
तनु पीछे खड़ी मुस्कुरा रही थी।
उसने खुद ही आर्यन की पसंद का केक बनाया था, लेकिन किसी ने उसका नाम तक नहीं लिया।
कुछ दिनों बाद एक रात अचानक घर की बिजली चली गई।
सब लोग परेशान थे — पंखे बंद, बच्चे रोने लगे।
तनु ने कहा —
“मैंने बैकअप लाइट चार्ज करके रखी है, मैं अभी लाती हूं।”
सविता बोली —
“अरे रहने दो भाभी, थोड़ी देर में आ जाएगी बिजली, इतनी घबराने की जरूरत नहीं।”
लेकिन जब बिजली देर तक नहीं आई,
तनु ने सबके लिए लाइट लगाई, बच्चों को पंखा झलाया और ठंडा पानी दिया।
उसका शांत व्यवहार देखकर सबको सुकून मिला।
कुछ महीने बाद शारदा देवी को अचानक हार्ट अटैक आ गया।
घर में सब घबरा गए।
सविता तो इतनी घबराई कि रोने लगी,
पर तनु ने तुरंत डॉक्टर को फोन किया, एंबुलेंस बुलाई और शारदा देवी को अस्पताल पहुंचाया।
जब शारदा देवी की तबीयत सुधरी,
उन्होंने सविता का हाथ पकड़कर कहा —
“बहू, तू बहुत होशियार है, पर समझदारी और शांत दिमाग भी बड़ी चीज़ होती है।
आज अगर तनु ना होती, तो पता नहीं क्या होता।”
सविता सुनकर चुप रह गई।
उसने पहली बार महसूस किया कि हर काम में आगे रहना ही सबसे बड़ा गुण नहीं होता।
कुछ दिनों बाद, शारदा देवी ने कहा —
“इस बार तीज का पूरा आयोजन मैं नहीं, बड़ी बहू तनु करेगी।”
सविता के मन में हल्की-सी खटपट हुई —
“मम्मीजी मुझ पर क्यों भरोसा नहीं किया?”
पर उसने कुछ नहीं कहा।
तीज वाले दिन तनु ने सादगी से लेकिन दिल से सारा आयोजन किया।
महिलाएं गा रही थीं, बच्चे खेल रहे थे, और घर में अपनापन फैला हुआ था।
मां बोलीं —
“तनु, तूने तो पुराने दिनों की तीज याद दिला दी।”
सविता ने मुस्कुराया, पर आंखों में नमी थी।
रात को तनु उसके पास आई —
“सविता, तुम नाराज़ हो मुझसे?”
सविता ने कहा —
“नहीं भाभी, बस सोच रही हूं, कभी-कभी हम रिश्तों में आगे बढ़ते-बढ़ते यह भूल जाते हैं कि प्यार और अपनापन भी जिम्मेदारी का हिस्सा है।”
तनु ने मुस्कुराकर कहा —
“सविता, हम दोनों तो एक ही टीम हैं — फर्क बस इतना है कि आप जोश देती हैं, और मैं शांति।”
सविता की आंखें भर आईं,
उसने तनु को गले लगा लिया —
“अब कभी कोई मन की गांठ नहीं रहेगी।”
सीख:
रिश्तों में बड़ा या छोटा होना नहीं,
दिल का सच्चा भाव मायने रखता है।
जो प्यार से निभाता है, वही परिवार का असली सहारा होता है।
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