एक रूपया और सच्चाई
सुबह के सात बज रहे थे।
निशा अपने स्कूल की ओर जल्दी-जल्दी कदम बढ़ा रही थी।
आज उसका मैथ्स टेस्ट था, और वह देर नहीं करना चाहती थी।
बस स्टॉप के पास पहुंचते ही उसने जेब में हाथ डाला — सिर्फ बीस रुपए थे।
मम्मी ने कहा था, “जाना और आना दोनों इसी पैसे से करना।”
लेकिन आज बस ड्राइवर ने मुस्कुराकर कहा,
“बेटी, आज से किराया 12 रुपए कर दिया है, पेट्रोल महंगा हो गया है।”
निशा के चेहरे का रंग उड़ गया।
उसने धीरे से कहा — “अच्छा अंकल, मैं दे दूंगी।”
वह जानती थी कि अब उसके पास वापसी के लिए पैसे नहीं बचेंगे,
पर टेस्ट देना उससे ज़्यादा जरूरी था।
क्लास में पहुंचकर निशा ने जल्दी से अपना टेस्ट पूरा किया।
मैडम ने खुश होकर कहा —
“शाबाश निशा! हमेशा की तरह बहुत अच्छा लिखा।”
टेस्ट के बाद वह स्कूल के बगीचे में गई।
वहीं उसे जमीन पर एक छोटा सा पर्स पड़ा दिखा।
पर्स खोलते ही उसकी आंखें चमक उठीं —
अंदर एक हज़ार रुपए का नोट और कुछ सिक्के रखे थे!
उसके मन में दो बातें लड़ने लगीं —
“अगर मैं यह पैसे रख लूं, तो घर का राशन भी आ जाएगा… और मैं नए जूते भी खरीद लूंगी।”
फिर उसकी मम्मी की बात याद आई —
“बेटी, अगर सच्चाई खो गई, तो सब कुछ खो जाएगा।”
वह पर्स लेकर प्रिंसिपल ऑफिस पहुंची और बोली,
“मैम, यह मुझे बगीचे में मिला है। शायद किसी टीचर या बच्चे का हो।”
प्रिंसिपल मैम मुस्कुराईं —
“बहुत अच्छा किया निशा। हम पता करते हैं यह किसका है।”
थोड़ी देर बाद टीचर मीरा जी भागती हुई आईं।
उन्होंने कहा — “मैम, मेरा पर्स खो गया था! उसमें घर का किराया था।”
प्रिंसिपल मैम मुस्कुराईं और बोलीं — “देखिए, यही रहा आपका पर्स। यह निशा को स्कूल के बगीचे में मिला था।”
मीरा जी ने जैसे ही पर्स अपने हाथों में लिया, उनकी आंखों में राहत और कृतज्ञता दोनों छलक आईं।
उन्होंने निशा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,
“बेटी, तुम्हारे जैसे बच्चों से ही दुनिया में भलाई जिंदा है।”
शाम को छुट्टी हुई।
निशा बस स्टॉप पर खड़ी थी —
जेब में सिर्फ आठ रुपए। बस में चढ़ना अब भी मुश्किल था।
तभी पीछे से वही मीरा टीचर आईं।
उन्होंने कहा —
“निशा, तुम बस क्यों पकड़ रही हो? मैं तुम्हें छोड़ देती हूं।”
निशा झिझकते हुए बोली — “नहीं मैम, मैं चली जाऊंगी।”
पर मैम ने प्यार से कहा —
“आओ बेटी, ईमानदारी की सवारी हमेशा मुफ्त होती है।”
रास्ते में मीरा जी ने कहा —
“तुमने आज जो किया, वह हर बच्चे के लिए मिसाल है।
अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारा नाम ‘स्कूल ईमानदारी अवॉर्ड’ के लिए भेज दूं।”
कुछ दिनों बाद स्कूल की असेंबली में सब बच्चों के बीच निशा का नाम पुकारा गया —
“इस साल का ईमानदारी पुरस्कार जाता है — निशा वर्मा को!”
सभी बच्चे तालियां बजाने लगे।
निशा मंच पर गई,
प्रिंसिपल मैम ने उसे एक नई स्कूल बैग और एक साइकिल भेंट की।
बोलीं — “यह उस सच्चाई के लिए है, जो तुमने साबित की।”
घर लौटते वक्त निशा की आंखों में खुशी के आंसू थे।
वह साइकिल चलाते हुए सोच रही थी —
“सच्चाई कभी सस्ती नहीं होती,
पर जब मिलती है, तो दुनिया सबसे कीमती तोहफा दे देती है।”
संदेश:
ईमानदारी में जादू होता है।
जो सच्चाई चुनता है, उसे जीवन में सबसे सुंदर इनाम खुद ईश्वर देता है।
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