मेहनत का फल
राघव की उम्र यही कोई 45–46 साल के बीच रही होगी।
वह शहर के एक छोटे-से स्कूल में चौकीदार था — सच्चा, मेहनती और ईमानदार।
पत्नी का देहांत तब हो गया था जब उसकी बेटी सुहानी सिर्फ तीन साल की थी।
मरते समय पत्नी ने उसका हाथ पकड़कर कहा था —
“वादा करो, राघव! मेरी बेटी को पढ़ाना… उसे किसी की दया की नहीं, अपने दम की ज़रूरत होनी चाहिए…”
उस दिन के बाद से राघव का जीवन सिर्फ एक ही लक्ष्य के इर्द-गिर्द घूमने लगा — “सुहानी की पढ़ाई”।
दिन में स्कूल की चौकीदारी, रात में प्राइवेट कॉलोनी में गार्ड की ड्यूटी — वह किसी तरह दो वक्त की रोटी जुटा लेता।
सुहानी बहुत होशियार थी।
गांव की सबसे समझदार और तेज बच्ची — टीचर भी कहते,
“राघव, तेरी बेटी में बड़ा दम है… बस उसे मौका मिलना चाहिए।”
राघव मुस्कुरा देता,
“साहब, उसकी मां का सपना पूरा करना ही अब मेरी ज़िंदगी है।”
समय बीता…
सुहानी ने बारहवीं में पूरे जिले में टॉप किया।
समाचार पत्रों में उसकी फोटो छपी — ‘चौकीदार की बेटी बनी जिले की टॉपर’
स्कूल ने उसके नाम पर छात्रवृत्ति घोषित की।
उसी स्कूल के मालिक के बेटे आर्यन को यह खबर बुरी लगी।
क्योंकि वह हमेशा सुहानी से पीछे रह जाता था।
लोग अब उसकी तुलना सुहानी से करने लगे थे।
वह मन ही मन जलने लगा।
पर सुहानी का ध्यान इन बातों पर नहीं था —
उसका सपना था “आईएएस बनना”।
एक दिन स्कूल में पुरस्कार समारोह था।
मुख्य अतिथि ने पूछा — “बेटा, बड़े होकर क्या बनना चाहोगी?”
सुहानी बोली — “मां ने कहा था — इतना ऊँचा उठना कि कोई गरीब बेटी खुद पर शर्म न करे।”
पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।
आर्यन के पिता मुस्कुराए, पर आर्यन के चेहरे पर गुस्सा था।
कुछ साल बाद
सुहानी दिल्ली चली गई।
वह कोचिंग करती, दिन में लाइब्रेरी में बैठती और रात को ऑनलाइन ट्यूशन लेकर अपना खर्च चलाती।
राघव रोज मंदिर जाकर उसकी सफलता की दुआ करता।
एक दिन अचानक राघव को हार्ट अटैक हुआ।
गांव के लोग बोले — “अब तो सुहानी की पढ़ाई रुक जाएगी…”
पर सुहानी ने हार नहीं मानी।
वह हर हफ़्ते पिता से मिलने आती, अपने हाथों से दवाइयाँ देती और उनका हालचाल पूछती।
उधर आर्यन भी सिविल सर्विस की तैयारी में था,
पर उसके इरादे सुहानी से आगे निकलने के नहीं — बल्कि उसे नीचा दिखाने के थे।
वह हर बार परीक्षा में असफल होता और सुहानी के नाम पर ताने सुनता।
“अबकी बार तो चौकीदार की बेटी भी निकाल लेगी…”
दोस्तों की यह बात उसे आग की तरह चुभ जाती।
चार साल बाद...
आईएएस परीक्षा का परिणाम आया —
पहले स्थान पर नाम था — सुहानी राघव
और ठीक उसके नीचे — आर्यन वर्मा (असफल)
पूरा शहर झूम उठा —
“चौकीदार की बेटी बनी आईएएस अफसर!”
सरकारी गाड़ियों का काफिला जब राघव के घर पहुंचा,
तो लोग कहते — “आज मेहनत और मां के वादे की जीत हुई है।”
कुछ समय बाद
आर्यन के पिता ने सुहानी को अपने स्कूल में मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया।
सभा में सब खड़े होकर तालियाँ बजा रहे थे।
आर्यन भी वहीं था — झुकी हुई निगाहों से।
सुहानी ने मंच से कहा,
“मेरे पिता चौकीदार हैं… लेकिन उन्होंने कभी अपनी बेटी के सपनों की चौकी नहीं हटने दी।”
पूरा स्कूल तालियों से गूंज उठा —
आर्यन की आंखों में पश्चाताप के आँसू थे।
वह आगे बढ़ा और बोला,
“माफ़ कर दो सुहानी, मैंने तुम्हारे संघर्ष को कभी समझा नहीं।”
सुहानी मुस्कुराई —
“कोई बात नहीं आर्यन, जो बीत गया वो सबक बन गया… अब हम मिलकर इस स्कूल की हर बेटी को ऊँचा उठाएंगे।”
राघव की आंखों से आँसू बह रहे थे —
वह बोला, “अब मैं निश्चिंत हूँ… मेरी बेटी अपने पैरों पर खड़ी हो गई।”
अंत में संदेश:
> “गरीबी किसी की कमजोरी नहीं होती,
अगर मेहनत और इरादा सच्चा हो तो किस्मत भी सलाम करती है।”
#प्रेरणादायककहानी #मेहनतकाफल

Post a Comment