“सविता की चुप्पी टूटी”

 


रात के आठ बज रहे थे।

सविता रसोई में खड़ी चुपचाप सब्जी काट रही थी। गैस पर दाल उबल रही थी, पर उसके मन में उबल रहे थे दर्द और आँसू।


बाहर से उसके पति अरुण की आवाज आई —

“खाना तैयार हुआ कि नहीं? रोज तुम्हें इतना वक्त क्यों लगता है?”


सविता बोली, “बस पाँच मिनट में लग जाएगा।”

अरुण चिल्लाया, “हर रोज यही पाँच मिनट! पूरे दिन घर में बैठी रहती हो, फिर भी वक्त पर खाना नहीं बना पाती!”


इतना कहते ही अरुण ने गुस्से में आकर पानी का गिलास ज़मीन पर फेंक दिया।

सविता डरकर पीछे हट गई। ये रोज का सिलसिला बन चुका था।


अरुण जब से शहर में नौकरी करने लगा था, तब से उसका स्वभाव बदल गया था। शराब, गुस्सा और शक — तीनों उसके जीवन का हिस्सा बन चुके थे।


सविता हर रोज सोचती —

“अगर मैं बोल दूँ, तो अरुण और भड़क जाएगा… और ससुराल वाले भी मुझे ही गलत ठहराएँगे।”


उसके ससुराल में भी किसी को फर्क नहीं पड़ता था।

सास का कहना था —

“पति है, दो-चार बात सुना भी दी तो क्या हुआ? औरत को तो सब सहना ही पड़ता है।”


लेकिन सविता अब थक चुकी थी।



---


अगली सुबह...


सविता की माँ का फोन आया —

“बेटी, तू बहुत दिनों से घर नहीं आई, सब ठीक तो है ना?”


सविता ने काँपती आवाज़ में कहा,

“हाँ माँ, सब ठीक है…”

लेकिन उसकी आवाज़ में छिपे डर को माँ समझ गई।


उसकी माँ, कुसुम देवी, ने उसी वक्त ठान लिया —

“अब मैं खुद जाकर देखूँगी कि मेरी बेटी के जीवन में क्या चल रहा है।”


अगले दिन सुबह-सुबह कुसुम देवी, अपने बेटे रवि के साथ सविता के घर पहुँचीं।


दरवाज़ा सास ने खोला।

उन्हें देख कर बोलीं —

“अरे, बिना बताए आ गईं आप लोग?”


कुसुम देवी मुस्कुरा कर बोलीं —

“हाँ समधन जी, बेटी को देखने का मन किया।”


उन्होंने सविता को देखा — उसका चेहरा सूजा हुआ था, होंठ फटे हुए, आँखें लाल।

सविता ने जब माँ को देखा, तो खुद को रोक न पाई और माँ के गले लगकर फूट-फूट कर रो पड़ी।


कुसुम देवी ने कहा,

“बोल बेटी, ये सब किसने किया?”


सविता बोली,

“माँ, अरुण ने… कल रात फिर शराब पीकर आया था। मैंने बस इतना कहा कि खाना तैयार है, थोड़ी देर में खा लेना… बस वही बात उसे बुरी लग गई।”


कुसुम देवी का खून खौल उठा।

वो बोलीं,

“समधन जी, ये कैसी परवरिश दी आपने अपने बेटे को? और आप बहू को समझाती हैं कि पति के मारने पर भी चुप रहना चाहिए?”


सास बोली,

“देखिए, पति-पत्नी की बात में हम लोग क्या करें? सब घरों में ऐसे ही होता है।”


कुसुम देवी ने कहा,

“नहीं, सब घरों में ऐसा नहीं होता। जहाँ औरतें चुप रहती हैं, वहाँ अत्याचार बढ़ता है!”




उसी वक्त अरुण बाहर से आया।

उसने अपनी माँ से पूछा, “क्या हुआ?”

कुसुम देवी बोलीं,

“हुआ ये कि अब तुम्हें पुलिस स्टेशन चलना होगा!”


अरुण हँसने लगा,

“आप लोग पुलिस बुलाएँगी? मेरी बीवी के मायके वाले हैं ना आप?”


लेकिन तभी रवि ने दरवाज़े के बाहर खड़ी महिला पुलिस टीम को अंदर बुलाया।

कुसुम देवी ने पहले से ही 1091 (महिला हेल्पलाइन) पर शिकायत दर्ज कर दी थी।


पुलिस इंस्पेक्टर बोलीं,

“आप पर घरेलू हिंसा और शारीरिक प्रताड़ना का केस दर्ज किया जा रहा है।”


अरुण के होश उड़ गए।

उसने सविता के आगे हाथ जोड़े,

“सविता, माफ़ कर दो! अब ऐसा कभी नहीं होगा!”


सविता ने सीधी आँखों से उसकी तरफ देखा —

“हर बार माफी माँगने से पाप धुलते नहीं। मैंने बहुत सहा है। अब वक्त है अपने हक के लिए खड़े होने का।”


पुलिस उसे पकड़कर ले गई।

सास वहीं बैठी रह गई, चुप, शर्मिंदा।




कुछ महीने बाद...


सविता अब अपने मायके में थी।

उसने सिलाई और कढ़ाई का काम शुरू किया। धीरे-धीरे उसका आत्मविश्वास लौटने लगा।

वो रोज गाँव की औरतों को समझाती —

“अगर आपके साथ भी कुछ गलत हो रहा है, तो चुप मत रहिए। डर कर नहीं, डट कर जिए।”


कुसुम देवी गर्व से बोलीं,

“मेरी बेटी अब किसी की मजबूरी नहीं, मिसाल बन गई है।”



---


🌷 संदेश


कभी भी गलत को सहना,

गलत को बढ़ावा देना होता है।


अगर आप चुप रहेंगे, तो आपका डर ही किसी और की ताकत बन जाएगा।

इसलिए जब भी अन्याय दिखे — आवाज उठाइए।

क्योंकि —

“जो चुप है, वो भी जिम्मेदार है।”

No comments

Note: Only a member of this blog may post a comment.

Powered by Blogger.