एक नन्ही मुस्कान
संध्या के समय की हल्की धूप अस्पताल की खिड़की से अंदर आ रही थी।
नीलम डॉक्टर के केबिन में बैठी थी, पर उसकी आँखें किसी कागज़ पर नहीं, सामने दीवार पर टंगी तस्वीर पर टिकी थीं — एक माँ अपने बच्चे को गोद में लिए मुस्कुरा रही थी।
नीलम के चेहरे पर वही मुस्कान कब की खो गई थी।
पाँच साल हो गए थे शादी को, लेकिन आज तक उसकी झोली खाली थी।
हर दवा, हर पूजा, हर अस्पताल उसने देख लिया, पर कोई नतीजा नहीं।
डॉक्टर ने कहा था — “नीलम जी, अब कोशिश छोड़ दीजिए... आपके लिए बच्चा होना मुश्किल है।”
बस उसी दिन से नीलम का मन जैसे सूख गया था।
घर में पति राजेश का प्यार तो था, पर वह भी अब चुप रहने लगा था।
दोनों की बातें कम, सन्नाटा ज़्यादा होने लगा था।
उस दिन खूब तेज़ बारिश हो रही थी।
राजेश ऑफिस चला गया था।
नीलम खिड़की के पास बैठी थी कि अचानक गली के कोने से एक छोटी-सी बच्ची भागती हुई आई।
उसकी उम्र ज़्यादा से ज़्यादा पाँच साल रही होगी।
भीगती हुई, काँपती हुई, सड़क किनारे पड़ी झोंपड़ी के पास जाकर बैठ गई।
नीलम का मन काँप गया।
वह तुरंत छतरी लेकर बाहर निकली और उस बच्ची को उठाया —
“अरे बेटा... ठंड लग जाएगी, आओ अंदर चलो।”
बच्ची ने डरते हुए उसकी ओर देखा, “मैं... मैं किसी की नहीं हूँ...”
नीलम के कदम रुक गए — “क्या मतलब?”
बच्ची ने आँसू पोंछे — “माँ मर गई... कल रात।”
वह एक पल को कुछ बोल नहीं पाई।
भीगी बच्ची को अपनी ओढ़नी में लपेटकर घर ले आई।
गर्म दूध दिया, सूखा तौलिया दिया, और धीरे से पूछा — “नाम क्या है तुम्हारा?”
बच्ची बोली — “पारुल।”
राजेश शाम को घर आया तो उसने देखा — सोफे पर एक छोटी बच्ची गहरी नींद में सो रही है।
“यह कौन है?” उसने पूछा।
नीलम ने सब बताया —
“राजेश, यह बच्ची अनाथ है... मैं इसे यूँ ही सड़क पर नहीं छोड़ सकती थी।”
राजेश ने गहरी साँस ली —
“नीलम, यह कोई आसान बात नहीं है... लोग क्या कहेंगे?”
नीलम ने उसकी आँखों में देखा —
“लोग क्या कहेंगे, यह सोचकर तो मैं पाँच साल से खाली हाथ हूँ... अब एक माँ का दिल कह रहा है — इसे छोड़ना मत।”
राजेश कुछ देर चुप रहा, फिर धीरे से बोला —
“ठीक है, अगर तुम सच में चाहती हो तो हम इसे अपने पास रख लेते हैं।”
बस, उसी दिन से पारुल उस घर की रोशनी बन गई।
उसकी हँसी, उसकी बातें, पूरे घर में गूंजने लगीं।
नीलम हर सुबह उसे स्कूल के लिए तैयार करती, बाल गूँथती और टिफिन में पराठे रखती —
जैसे वो अपनी ही बेटी हो।
लेकिन समाज तो हमेशा कुछ न कुछ कहता ही है।
किसी रिश्तेदार ने ताना मारा —
“अपनी औलाद नहीं हुई तो पराई को पाल रही हो... कल को पलटकर कुछ कहेगी तो क्या करोगी?”
नीलम बस मुस्कुरा दी —
“अगर वो पलटकर कुछ कहेगी भी, तो भी मेरा दिल उसे अपनी ही संतान मानेगा। माँ का रिश्ता तो खून से नहीं, अपनापन से बनता है।”
धीरे-धीरे राजेश का भी सारा स्नेह पारुल पर उतर आया।
वो उसे स्कूल से लेने खुद जाता, शाम को होमवर्क में मदद करता।
उन दोनों को देखकर नीलम की आँखें भर आतीं —
“भगवान ने भले मुझे कोख न दी, पर एक माँ की ममता तो दे ही दी।”
एक दिन...
स्कूल में पैरेंट्स डे था।
पारुल के सारे दोस्तों के माता-पिता आए हुए थे।
पारुल मंच पर नाचने जा रही थी — गुलाबी फ्रॉक में, झिलमिल बालों में फूल लगाए।
शो खत्म होने के बाद टीचर ने माइक उठाया —
“पारुल, तुम्हें यह पुरस्कार मिलता है — क्योंकि तुमने अपनी माँ के बारे में जो कविता लिखी है, उसने सबको रुला दिया।”
पारुल मंच पर आई और बोली —
“मेरी माँ ने मुझे जन्म नहीं दिया, पर मुझे ज़िन्दगी दी है।
अगर वो उस दिन मुझे बारिश में घर न लातीं, तो शायद मैं आज यहाँ नहीं होती।
मेरी माँ का नाम नीलम है, और मैं उनकी पारुल हूँ।”
पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।
नीलम की आँखों से आँसू बह निकले, पर उन आँसुओं में खुशी थी, संतोष था —
उस दिन उसे लगा, जैसे भगवान ने उसे दोबारा माँ बना दिया हो।
वक़्त गुजरता गया।
पारुल बड़ी हुई, पढ़ी-लिखी, और बहुत समझदार बनी।
उसने मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया —
“माँ, अब मैं भी डॉक्टर बनूँगी, ताकि किसी की ज़िन्दगी बदल सकूँ — जैसे आपने मेरी बदली थी।”
नीलम ने उसे गले लगा लिया।
“तू ही तो मेरी सबसे बड़ी दुआ है, पारुल।”
अंत में,
कभी-कभी मातृत्व कोख से नहीं, दिल से जन्म लेता है।
और जब दिल से जन्म लेती है ममता, तो वह दुनिया की सबसे पवित्र भावना बन जाती है।
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