पूनम का स्नेहबंधन
सुबह की हल्की धूप खिड़की से अंदर आ रही थी।
सिया चाय बनाकर बालकनी में आई तो देखा— उसके पति करण मोबाइल में कुछ पढ़ रहे थे।
सिया ने मुस्कुराते हुए कहा,
“आज तो बड़े ध्यान से अख़बार पढ़ रहे हैं, क्या बात है?”
करण ने कहा,
“बस रक्षाबंधन की खबरें चल रही हैं, याद आ गया पिछले साल जब तुम्हारा भाई आया था, पूरा घर हँसी से भर गया था।”
सिया का चेहरा थोड़ा उदास हो गया,
“हाँ... इस बार शायद आर्यन नहीं आ पाएगा, नौकरी में बहुत काम है।”
इतना कहते ही मोबाइल बज उठा — स्क्रीन पर लिखा था ‘भाई आर्यन’।
सिया तुरंत खुश होकर बोली — “भैया का फोन!”
फोन उठाते ही उधर से आवाज आई —
“कैसी हो मेरी छोटी बहन? इस बार राखी कब बाँध रही हो?”
सिया बोली —
“भैया, इस बार आप तो नहीं आ रहे, तो सोच रही हूँ कूरियर से राखी भेज दूँ।”
आर्यन हँसते हुए बोला —
“नहीं बहन, राखी डाक से नहीं, दिल से बाँधी जाती है। मैं कल सुबह ही निकल रहा हूँ, सीधे तुम्हारे घर पहुँचूँगा।”
सिया की आँखें चमक उठीं —
“सच भैया! आप आ रहे हैं?”
“हाँ, और मिठाई मत बनाना, मैं खुद लेकर आ रहा हूँ माँ की बनाई रसगुल्ले।”
कहकर आर्यन ने फोन काट दिया।
अगले दिन सुबह दरवाज़े की घंटी बजी।
सिया दौड़कर गई — सामने आर्यन था, थका हुआ लेकिन चेहरे पर वही बचपन वाली मुस्कान।
सिया ने झट से आरती की थाली लाई, भाई के माथे पर तिलक लगाया, और बोली —
“आइए मिस्टर ऑफिस वाले, राखी का स्वागत है!”
आर्यन ने हँसते हुए कहा —
“पहले पानी दो, फिर ताने देना।”
दोनों भाई-बहन की हँसी से घर गूंज उठा।
करण भी मुस्कुराता हुआ बोला —
“भाईसाहब, अब तो हमारी भी राखी बंधवानी पड़ेगी।”
दोपहर को सिया ने माँ की तरह पूरी प्लेट में खाना परोसा।
आर्यन ने एक निवाला लेते हुए कहा —
“सिया, बचपन में तू जब रुठ जाती थी, तो मैं तेरी गुड़िया वापस देता था, आज तेरी हँसी वापस देखनी है।”
सिया ने पूछा —
“कौन सी हँसी?”
आर्यन बोला —
“पिछली बार तूने कहा था कि घर का खर्च बढ़ गया है, पर अब भी वही बात है क्या?”
सिया ने धीरे से कहा —
“हाँ भैया... करण की कंपनी में कुछ दिक्कत चल रही है, कई महीनों से सैलरी नहीं मिली। हम सोच रहे थे तुमसे कहना ठीक नहीं लगेगा।”
आर्यन ने सख्त आवाज़ में कहा —
“सिया! क्या तू अब भी मुझे पराया समझती है?
जब पापा नहीं रहे थे, तो मैंने ही कहा था — अब मैं ही तुम्हारा पिता हूँ।”
सिया की आँखें भर आईं।
आर्यन बोला —
“कल ही मैं एक बैंक प्रोजेक्ट छोड़ रहा था, लेकिन अब मैं करण को वहाँ लेकर जाऊँगा। उसकी योग्यता मुझे पता है।”
करण बोला —
“पर आर्यन, ये तो तुम्हारी मेहनत का मौका है...”
आर्यन ने कहा —
“राखी का मतलब ही यही है — रक्षा। और आज मैं वही निभा रहा हूँ।”
रक्षाबंधन के दिन सुबह सिया ने पूजा की थाली सजाई।
थाली में चावल, दीपक, मिठाई और राखी रखी।
उसने आर्यन के माथे पर तिलक लगाया और बोली —
“ये राखी सिर्फ धागा नहीं, तुम्हारे विश्वास का बंधन है।”
आर्यन मुस्कुराया, बहन की कलाई पकड़कर बोला —
“और मैं वादा करता हूँ, जब तक साँस है, तुम्हारे चेहरे की मुस्कान कभी नहीं मिटने दूँगा।”
सिया ने मिठाई खिलाई, और आर्यन ने जेब से एक लिफाफा निकाला।
“ये क्या है भैया?”
“करण की नई जॉब का ऑफर लेटर।”
सिया की आँखों से खुशी के आँसू निकल आए।
करण बोला —
“अब ये राखी हमारी ज़िंदगी का सबसे कीमती तोहफ़ा बन गई।”
आर्यन ने हँसते हुए कहा —
“बस, अब इतना वादा करो, अगले साल राखी मैं नहीं, तुम बाँधने मेरे घर आओगी।”
सिया बोली —
“पक्का, अब हर साल रक्षासूत्र के इस बंधन को और मजबूत करेंगे।”
उस शाम सबने साथ मिलकर खाना खाया।
हवा में मिठाई की खुशबू थी, और रिश्तों में स्नेह की मिठास।
रक्षाबंधन का असली अर्थ सबके चेहरों पर लिखा था —
“रिश्ते खून से नहीं, प्यार और भरोसे से बनते हैं।”

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