कठोर सर नहीं, दयालु हृदय




 


रीना स्कूल में नई-नई जॉइन हुई थी।

अभी मुश्किल से छह महीने हुए थे उसे इस सरकारी स्कूल में पढ़ाते हुए।

बाकी टीचर्स के साथ उसका तालमेल तो ठीक-ठाक था, पर एक व्यक्ति था जिससे वो हमेशा घबराती थी —

गणित के हेड सर — श्रीमान वर्मा।


वर्मा सर का नाम सुनते ही पूरा स्टाफ थोड़ा सहम जाता।

क्लास में उनकी सख्ती के किस्से मशहूर थे।

बच्चे तो उनके नाम से ही डरते थे, और स्टाफ रूम में भी उनके आने पर सब अपनी बातें बंद कर देते।


रीना अक्सर अपने सहकर्मी मनीषा से कहती,

“अरे दीदी, सर को इतना गुस्सा क्यों आता है?

कभी हंसते नहीं, हमेशा आदेश ही देते रहते हैं।”


मनीषा हंसकर कहती,

“अरे, तू नई है ना अभी! सबको ऐसे ही लगता है।

पर... छोड़, तू अपने काम पर ध्यान दे।”


रीना ने मन ही मन ठान लिया — मैं तो सर से जितना दूर रह सकूं, उतना अच्छा।



---


एक दिन स्कूल में घोषणा हुई —

“अगले रविवार को वर्मा सर का रिटायरमेंट फंक्शन रखा गया है। सभी अध्यापक-अध्यापिकाओं को उपस्थित रहना अनिवार्य है।”


रीना के तो जैसे प्राण सूख गए,

“हे भगवान! अब उनसे आमने-सामने मिलना पड़ेगा।”


उसने मनीषा से कहा,

“दीदी, मैं तो सोच रही हूं, कोई बहाना बना लूं।”


मनीषा बोली,

“नहीं रीना, चलो सब साथ चलेंगे, डर कैसा?”



---


रविवार की शाम स्कूल के ऑडिटोरियम में सब जुटे।

रीना ने जैसे ही अंदर कदम रखा, उसके कदम थम गए।


वहां स्टेज पर वही वर्मा सर खड़े थे —

सूट-बूट में सजे, चेहरे पर हल्की मुस्कान, आंखों में एक अनोखी चमक।


उन्होंने हर शिक्षक को खुद जाकर नमस्ते किया,

किसी का हाथ थामा, किसी की कुशलक्षेम पूछी।

वो इतने सहज और विनम्र लग रहे थे कि रीना की आंखें फैल गईं।


“ये वही वर्मा सर हैं जो क्लास में बच्चों को डराते हैं?”

उसने मन में सोचा।



---


कार्यक्रम शुरू हुआ।

प्रिंसिपल मैम ने कहा,

“वर्मा सर ने इस स्कूल को 35 साल दिए हैं।

कई बार उन्होंने सख्ती दिखाई, लेकिन उसी सख्ती ने हमारे बच्चों को संभाला, हमारे स्कूल को ऊंचाई दी।”


तालियां गूंज उठीं।

सर उठे, और बोले —

“मुझे मालूम है, बहुत लोग मुझे ‘सख्त’ समझते हैं।

पर क्या करूं, मैंने हमेशा बच्चों में अपनी बेटी और बेटा देखा है।

जब वो गलत राह पर जाते थे, मुझे डांटना पड़ता था।

क्योंकि अगर मैं चुप रहता, तो उनका भविष्य बिगड़ जाता।”


उनकी आवाज़ कांप गई।

“आज जब मैं देखता हूं कि मेरे पुराने विद्यार्थी अच्छे पदों पर हैं, तो लगता है मेरी डांट बेकार नहीं गई।”


रीना के गले में कुछ अटक गया।

वो सोचने लगी — हम कितनी जल्दी किसी को जज कर लेते हैं, बिना उनके हालात जाने।


---


कार्यक्रम के बाद उसने हिम्मत जुटाई और उनके पास गई।

“सर, मैं रीना… इंग्लिश डिपार्टमेंट से।

आपसे हमेशा डर लगता था, पर आज आपकी बातें सुनकर… दिल बदल गया।”


वर्मा सर मुस्कुराए,

“डरना अच्छा है, बेटी।

डर हमें गलत से बचाता है।

लेकिन अगर समझ साथ हो, तो वही डर सम्मान बन जाता है।”


रीना के हाथ अपने आप जुड़ गए,

“आपकी बातें हमेशा याद रखूंगी, सर।”


उन्होंने उसके सिर पर हाथ रखा,

“बस यही चाहता हूं कि तुम बच्चों को केवल पढ़ाओ नहीं, उन्हें जीवन सिखाओ।”



---


उस दिन रीना ने घर लौटकर अपनी डायरी में लिखा —


> “हर सख्त चेहरा बुरा नहीं होता।

कभी-कभी कठोरता के पीछे भी बहुत सारा प्यार छिपा होता है।”





---


सीख:

हम अक्सर लोगों के बाहरी व्यवहार से उन्हें आंक लेते हैं,

पर असल इंसान वो नहीं जो बाहर दिखता है,

बल्कि वो है — जो दिल में जिम्मेदारी और स्नेह लिए चलता है।


No comments

Note: Only a member of this blog may post a comment.

Powered by Blogger.