❝ सीमा की सच्चाई ❞
रीना देवी अपने परिवार के साथ बहुत खुश रहती थीं। पति महेश, बड़ा बेटा अमित, छोटा बेटा सुमित, बड़ी बहू सीमा और छोटी बहू कविता — यही उनका छोटा-सा संसार था। अमित और सीमा की शादी को पाँच साल हो चुके थे।
सीमा बहुत सीधी और मेहनती थी। सुबह चार बजे उठकर घर का सारा काम कर लेती — सबके लिए नाश्ता, बच्चों को तैयार करना, कपड़े धोना, घर साफ करना… एक पल भी चैन से नहीं बैठती। फिर भी उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी।
रीना देवी अक्सर कहतीं —
“सीमा बेटा, तुझ जैसे बहू हर किसी को मिले। तेरे बिना तो यह घर सूना पड़ जाए।”
लेकिन जब सुमित की शादी हुई तो हालात बदलने लगे।
कविता, सुमित की पत्नी, पढ़ी-लिखी और शहर में पली-बढ़ी लड़की थी। उसने आते ही साफ कह दिया —
“मांजी, मैं घर के काम नहीं करूंगी। मैं एमबीए कर चुकी हूँ, और मुझे नौकरी करनी है। नौकरानी रख लीजिए।”
शुरू-शुरू में रीना देवी को यह सब अजीब लगा, पर उन्होंने सोचा कि नई पीढ़ी की अपनी सोच होती है।
उन्होंने नौकरानी रख ली, ताकि घर का काम भी चलता रहे और बहू भी खुश रहे।
धीरे-धीरे कविता का रवैया बदलने लगा। वह सारा दिन मोबाइल में लगी रहती, कभी ऑफिस की बातें, कभी अपने दोस्तों से चैटिंग।
और जब सीमा रसोई में पसीना बहा रही होती, तो कविता सोफे पर आराम से चाय पीती और कहती —
“भाभी, आप तो बहुत मेहनती हैं। लेकिन अब जमाना बदल गया है, अब औरतें बस रसोई में नहीं रहतीं।”
सीमा बस मुस्कुराकर रह जाती।
उसके लिए परिवार ही सबसे बड़ा सुख था।
समय बीता — अमित की सैलरी ज्यादा नहीं थी, पर घर का खर्चा किसी तरह चलता रहा। सुमित और कविता दोनों नौकरी करते थे, इसलिए उनकी आमदनी अच्छी थी।
धीरे-धीरे घर में पैसों का फर्क भी दिखने लगा।
कविता अक्सर कहती —
“मांजी, अमित भइया को कुछ और करना चाहिए, ₹25,000 में क्या होता है आजकल? हमारा तो सारा घर चलाना मुश्किल है।”
रीना देवी भी अब कविता की बातें मानने लगीं।
उन्हें लगने लगा कि सीमा घर में बस खाना बनाकर ही क्या करती है, कुछ कमाए भी तो अच्छा है।
एक दिन जब सीमा ने कुछ कहा, तो कविता हँसते हुए बोली —
“भाभी, आप तो बस रसोई की मशीन हैं, आपके जैसे तो हर घर में होती हैं!”
वह बात सीमा के दिल में चुभ गई।
पर उसने कुछ नहीं कहा।
उसी रात उसने अपने पति अमित से कहा —
“अब मुझे भी कुछ करना होगा। मैं खुद को साबित करूंगी।”
अमित ने कहा —
“पर तुम करोगी क्या?”
सीमा बोली —
“मुझे सिलाई आती है। मैं सूट और परदे सिलना शुरू करती हूँ।”
धीरे-धीरे उसने अपने हुनर से लोगों का दिल जीत लिया।
पहले मोहल्ले की औरतें कपड़े सिलवाने आने लगीं, फिर उसने घर में एक छोटा-सा सिलाई सेंटर खोल लिया।
तीन महीनों में ही उसकी आमदनी ₹15,000 तक पहुँच गई।
अब सीमा के चेहरे पर आत्मविश्वास था।
रीना देवी ने भी देख लिया कि बिना पढ़ाई के भी मेहनत और लगन से इंसान बहुत कुछ कर सकता है।
पर वक्त ने करवट बदली — महेश जी को हार्ट अटैक आया और वे चल बसे।
घर का सहारा टूट गया।
अब जिम्मेदारी रीना देवी पर थी। पर कविता का रवैया पहले जैसा ही रहा —
“मांजी, अब तो अमित भइया को अपनी जिम्मेदारी खुद उठानी चाहिए, हम तो अलग रहेंगे।”
सुमित और कविता शहर चले गए, और रीना देवी अकेली रह गईं।
उन्हें कोई संभालने वाला नहीं था।
तभी सीमा और अमित ने उन्हें अपने साथ रख लिया।
सीमा ने बहुत प्यार से कहा —
“मांजी, यह घर आपका है। आपने हमें जन्म दिया है, अब हमें आपकी सेवा करनी है।”
रीना देवी की आँखों से आँसू बह निकले।
उन्होंने कहा —
“बेटा, मैंने तुझे कभी समझा ही नहीं। मैं पैसों की चमक में अंधी हो गई थी, और तेरे जैसे सोने की बहू को नहीं पहचान पाई।”
सीमा ने उनके हाथ पकड़कर कहा —
“मांजी, रिश्ते पैसों से नहीं, दिल से निभाए जाते हैं।”
उस दिन रीना देवी को समझ में आया कि
जो औरत परिवार का दिल जीत लेती है, वही असली लक्ष्मी होती है।
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संदेश:
पैसा जरूरी है, लेकिन रिश्तों से बड़ा नहीं।
जो औरत अपने परिवार के लिए बिना स्वार्थ के मेहनत करती है — वही असली घर की ताकत होती है।

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