❝ माया की भूल ❞
माया एक सरकारी स्कूल में अध्यापिका थी। पति दीपक शहर के बैंक में काम करते थे। दोनों की जिंदगी बहुत व्यवस्थित और व्यस्त थी।
माया की 10 साल की बेटी “रिया” बहुत चंचल, होशियार और प्यारी बच्ची थी। सुबह उठते ही वह मम्मी के पीछे-पीछे घूमती रहती —
“मम्मी, आज आप कब लौटेंगी? मैं आपके साथ पार्क चलूंगी।”
माया हंसकर कहती — “शाम को, जब मैं पढ़ाने से लौट आऊं तब।”
पर अक्सर शाम तक थकान और घर के बाकी कामों में वह रिया को टाल देती।
रिया धीरे-धीरे समझदार हो रही थी, पर उसका मन हर दिन थोड़ा और अकेला होने लगा। माया और दीपक दोनों अपने-अपने कामों में इतने व्यस्त रहते कि कभी-कभी रिया की बातें अधूरी रह जातीं।
एक दिन दीपक की मां गांव से आईं।
उन्होंने देखा कि रिया दिनभर फोन या टीवी में लगी रहती है।
“बेटा, बच्ची के साथ थोड़ा वक्त बिताओ, वरना ये दिल से दूर हो जाएगी।”
माया ने मुस्कराकर कहा — “अरे मां जी, हम दोनों कामकाजी हैं, वक्त कहां मिलता है, और वैसे भी अब बच्चे समझदार हैं।”
मां ने धीरे से कहा — “समझदार तो हैं, पर प्यार की भूख अभी भी है बेटा।”
📱 नई आदत..
रिया ने मोबाइल पर एक गेम खेलना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे वह उसी में डूबती चली गई।
माया को लगा — “ठीक है, खेल लेती है तो कम से कम परेशान नहीं करती।”
पर दीपक ने कई बार कहा — “रिया ज़्यादा चुप रहने लगी है, उसे स्कूल की एक्टिविटी या किसी क्लास में डालो।”
माया बोली — “अभी समय नहीं है, जब मैं फ्री हो जाऊं तब देखते हैं।”
💔 एक दिन…
एक शनिवार की दोपहर माया की मीटिंग थी। वह जल्दी में थी।
रिया बोली — “मम्मी आज पापा घर पर हैं, हम सब साथ लंच करेंगे ना?”
माया ने जल्दी में कहा — “रिया, आज मत रोक, मीटिंग बहुत जरूरी है। शाम को खा लेंगे साथ में।”
रिया ने सिर झुका लिया।
शाम को जब माया लौटी तो घर में सन्नाटा था। दीपक बाहर बरामदे में बैठे थे। आंखें लाल थीं।
“क्या हुआ दीपक?”
दीपक बोला — “रिया बेहोश है, लगता है दवाई ज़्यादा खा ली…।”
माया के पैर कांप गए।
डॉक्टर के पास ले गए, इलाज हुआ, भगवान की कृपा से जान बच गई।
डॉक्टर ने कहा — “बच्ची बहुत अकेली महसूस कर रही थी। उसे लगातार इमोशनल सपोर्ट की जरूरत है।”
माया के कानों में वही आवाज गूंज रही थी — “मम्मी, आप कब लौटेंगी?”
पछतावा और बदलाव...
रिया जब ठीक हुई तो माया ने उसका हाथ थामकर कहा —
“बेटा, अब कभी अकेला महसूस मत करना। अब मम्मी हमेशा तेरे साथ रहेंगी।”
रिया मुस्कराई, पर उसकी आंखों में सवाल थे — “सच, मम्मी?”
“हाँ बेटा, अब मैं वादा करती हूँ — काम बाद में, तू पहले।”
माया ने अगले ही महीने स्कूल से ट्रांसफर ले लिया ताकि रिया के स्कूल के पास रह सके।
हर शाम पार्क में माया, दीपक और रिया साथ बैठते। रिया फिर से वही पुरानी चंचल रिया बन गई।
धीरे-धीरे माया को एहसास हुआ कि करियर की ऊँचाई बच्चों के मुस्कुराते चेहरे से कभी बड़ी नहीं हो सकती।
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सीख
> बच्चों को अच्छी स्कूलिंग, अच्छे कपड़े और सुविधाएँ देना जरूरी है,
लेकिन उनके साथ वक्त बिताना उससे कहीं ज़्यादा जरूरी है।
जो प्यार और साथ बचपन में उन्हें
मिलता है,
वही उन्हें जिंदगीभर आत्मविश्वास और सुकून देता है।

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