❝ बहू की हरी दुनिया ❞
अंजलि की अभी-अभी शादी हुई थी। वह नई नवेली दुल्हन बनकर अपने ससुराल पहुँची।
दरवाज़े पर स्वागत की रस्में पूरी हुईं। अंजलि ने मुस्कुराते हुए घर के चारों ओर देखा और बोली,
“वाह, कितना सुंदर और सुकून भरा घर है। एक सास, ससुर, पति और छोटी सी ननद—कितनी प्यारी फैमिली है मेरी! मैं इस घर का बहुत अच्छे से ध्यान रखूँगी।”
सासू माँ सविता जी मुस्कुराईं और बोलीं,
“बहू, पहले घर के अंदर तो आ जा, बाहर खड़े-खड़े इतनी बातें कर लीं।”
अंजलि हँसते हुए बोली, “जी माजी,” और घर के अंदर चली गई।
कुछ दिन बहुत अच्छे से बीते। सब अंजलि की सादगी और सलीके से खुश थे।
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पहली रसोई का दिन...
अगले दिन सुबह-सुबह अंजलि रसोई में गई।
उसने खुद से कहा, “आज मेरी पहली रसोई है, ऐसा खाना बनाऊँगी कि सब उँगलियाँ चाटते रह जाएँगे।”
जब उसने फ्रिज खोला तो अंदर कुछ भी नहीं था—
ना सब्ज़ियाँ, ना दूध, ना दही!
उसने रसोई के कोने में रखी टोकरी देखी, पर वहाँ भी आलू-प्याज़ नहीं थे।
वो चौंक कर बोली, “अरे ये क्या! फ्रिज में तो कुछ भी नहीं है, अब मैं क्या बनाऊँ?”
इतने में उसकी ननद रिया अंदर आई।
“भाभी, परेशान क्यों हो? यहाँ हमारे इलाके में सब्ज़ी वाला हफ्ते में एक बार आता है। शादी के झंझट में हम लोग सब्ज़ियाँ ले ही नहीं पाए। आज आप दाल-चावल बना लो। हम लोग तो नाश्ते में भी दाल-चावल खा लेते हैं।”
अंजलि ने हल्की मुस्कान दी, लेकिन मन ही मन उसे बहुत अफ़सोस हुआ।
वो तो अपनी पहली रसोई में स्वादिष्ट खाना बनाना चाहती थी।
फिर भी उसने पूरी मेहनत से दाल, चावल, रोटी और खीर बनाई।
जब सबने खाया तो सब तारीफ करने लगे।
सासू माँ बोलीं, “बहू, तूने तो नाश्ते में भी ऐसा खाना बनाया कि मज़ा आ गया!”
अंजलि मुस्कुराई, पर मन में सोचने लगी —
“कितना अच्छा होता अगर यहाँ रोज़ ताज़ी सब्ज़ियाँ मिल पातीं।”
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कुछ दिन बाद सब्ज़ी वाला आया।
अंजलि ने कहा, “भैया, ये लौकी 20 रुपये किलो है, आप 30 रुपये में बेच रहे हैं, क्यों?”
वो बोला, “बैंजी, इतनी दूर से सब्ज़ी लाता हूँ, मेहनत भी तो लगती है।”
अंजलि ने शांत स्वर में कहा,
“मेहनत की कीमत जरूर मिलनी चाहिए, पर दूसरों का फायदा उठाना सही नहीं है। बहुत लोग यहाँ गरीब हैं, सब इतना महँगा नहीं खरीद सकते।”
सब्ज़ी वाला बोला, “नहीं बैंजी, मैं तो इसी रेट में बेचूँगा।”
और चला गया।
अंजलि ने ठान लिया — अब वो किसी पर निर्भर नहीं रहेगी।
वो खुद अपनी रसोई में सब्ज़ियाँ उगाएगी।
उसने कुछ गमले और मिट्टी मँगाई, बीज खरीदे — टमाटर, हरी मिर्च, धनिया, पालक और लौकी के।
धीरे-धीरे उसने रसोई के कोने और छत पर छोटी-छोटी पौध लगानी शुरू की।
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😂 ननद की प्रतिक्रिया...
रिया ने रसोई में झाँका और चिल्लाई,
“अरे भाभी! ये क्या कर दिया आपने? रसोई तो खेत बन गई है! मिट्टी-मिट्टी हर तरफ!”
अंजलि हँसकर बोली,
“थोड़ा गंदा लग रहा है अभी, लेकिन जब पौधे उगेंगे, तो ये रसोई सबसे खूबसूरत लगेगी।”
रिया बोली, “भाभी, सब्ज़ी वाला आता तो है, इतनी मेहनत क्यों कर रही हो?”
अंजलि मुस्कुराई, “क्योंकि वो सब्ज़ी वाला हमेशा झगड़ा करता है और महँगी, सड़ी सब्ज़ियाँ देता है। मैं नहीं चाहती कि मेरे परिवार को बासी खाना मिले।”
रिया कुछ नहीं बोली, बस सोचने लगी कि भाभी वाकई अलग हैं।
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😢 एक छोटी सी घटना...
एक दिन सुबह सासू माँ चाय बनाने रसोई में आईं।
अंधेरे में उनका पैर एक गमले से टकरा गया और वो गिर पड़ीं।
“अरे राम! पैर में चोट लग गई!”
अंजलि दौड़कर आई और बोली,
“माजी, माफ़ कीजिए, गलती से ये गमला यहीं रह गया था।”
सविता जी बोलीं,
“मैंने सुना था तेरे पिताजी बैंक में काम करते थे, और तू तो किसान की बेटी निकली! क्या ज़रूरत है रसोई में खेती करने की?”
अंजलि ने नम्रता से कहा,
“माजी, मैं नहीं चाहती कि हमें सड़ी-गली सब्ज़ियाँ खानी पड़ें। इसलिए ये सब कर रही हूँ।”
सासू माँ को उसकी बात छू गई।
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🌿 सफलता की खुशबू...
कई हफ्ते बाद उसके पौधों में हरी-हरी सब्ज़ियाँ लटकने लगीं।
टमाटर लाल, धनिया सुगंधित, मिर्चें चमकीली!
उस दिन अंजलि ने सबके लिए तीन तरह की सब्ज़ियाँ बनाई।
सब लोग खाने बैठे तो सासू माँ बोलीं,
“वाह बहू! आज के खाने का स्वाद ही कुछ और है!”
रिया हँसकर बोली,
“मा, ये सब भाभी के लगाए पौधों की सब्ज़ियाँ हैं।”
सविता जी ने कहा,
“बहू, तूने तो घर में खेत खड़ा कर दिया। गर्व है मुझे तुझ पर!”
धीरे-धीरे मोहल्ले में चर्चा फैल गई —
“नई बहू ने रसोई में खेती शुरू की है!”
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पड़ोसन की फरमाइश...
एक दिन पड़ोसन रेखा आई और बोली,
“अरे अंजलि बहन, वो सब्ज़ी वाला फिर धोखा दे गया। क्या तेरे पास थोड़ी लौकी है? आज रात्रि में कोफ्ते बनाने हैं।”
अंजलि मुस्कुराई, “क्यों नहीं बहन, अभी लाती हूँ।”
उसने उसे लौकी दी।
सास और ननद यह सब देख रही थीं।
थोड़ी देर बाद उन्होंने अंजलि को बुलाया।
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💬 सास और ननद की सलाह...
सासू माँ बोलीं,
“बहू, तू बहुत अच्छा काम कर रही है, पर तेरी मेहनत यूँ मुफ्त बाँट देना ठीक नहीं है। मेहनत का फल तुझे मिलना चाहिए।”
अंजलि बोली,
“माजी, अगर मैं सब्ज़ियाँ न बाँटूँ तो खराब हो जाएँगी।”
रिया बोली,
“भाभी, हम सोच रहे हैं कि अब इसे बिजनेस बना लेते हैं। आप सब्ज़ियाँ उगाओ, मैं ऑनलाइन बेचने की जिम्मेदारी लूँगी।”
सासू माँ ने कहा,
“और बहू, रसोई में खेती मत कर, छत और आँगन में कर। रसोई में मच्छर बढ़ जाते हैं।”
अंजलि ने हँसते हुए कहा,
“ठीक है माजी, अब से सारी खेती छत पर करूँगी।”
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💰 नया सफर...
धीरे-धीरे अंजलि ने अपनी ‘हरी दुनिया’ नाम की ऑनलाइन दुकान शुरू की।
लोग उसके घर की ताज़ी, ऑर्गैनिक सब्ज़ियाँ खरीदने लगे।
पड़ोसी, मोहल्ले वाले, सब कहने लगे —
“अरे, बहू की सब्ज़ियाँ तो एकदम ताज़ी हैं!”
उधर वो सब्ज़ी वाला जिसके साथ अंजलि की बहस हुई थी,
अब उसी के घर के बाहर खड़ा होकर सोचता था —
“काश, मैंने उस दिन उसे झिड़का ना होता।”
धीरे-धीरे अंजलि का छोटा-सा काम पूरे इलाके में मशहूर हो गया।
वो सब्ज़ियाँ भी बेचती और लोगों को सिखाती भी कि
“अगर जगह छोटी भी हो, तो हरियाली उगाना मुमकिन है।”
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अंत में..
एक दिन सविता जी ने अंजलि के सिर पर हाथ रखा और बोलीं,
“बहू, तूने साबित कर दिया कि समझदारी और मेहनत से कोई भी काम बड़ा बन सकता है। हमें तुझ पर गर्व है।”
अंजलि मुस्कुराई,
“माजी, अगर आप सबका साथ न मिलता, तो ये हरी
दुनिया कभी नहीं खिलती।”
धीरे-धीरे उनका छोटा घर खुशहाली, हरी-भरी पौधों और प्यार से भर गया।
और अंजलि का नाम पूरे शहर में मशहूर हो गया —
“वो बहू जिसने रसोई में हरियाली उगा दी।” 🌿

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