❝ परिवार की छाया और इज़्जत का मूल्य ❞

 



सुबह का समय था। सूरज की हल्की किरणें आँगन में पड़ रही थीं।

संध्या ने मोबाइल उठाया, तभी फोन बजा।


“हैलो बेटा, कैसी हो?” — ये आवाज़ थी संध्या की चाची ममता जी की।


संध्या बोली, “सब ठीक है चाची।”


ममता जी ने थोड़ा सख्त स्वर में कहा —

“ठीक? बेटा, मुझे तो खबर मिली है कि तुम्हारे ससुराल में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। तुम्हारी सास और ननद, दोनों से तुम्हारा मनमुटाव हो गया है। क्या ये सही है?”


संध्या थोड़ी चुप रही, फिर बोली,

“नहीं चाची, ऐसी कोई बात नहीं है।”


ममता जी बोलीं,

“मुझसे झूठ मत बोलो। तुम्हारी ननद ने पूरे गाँव में बातें फैला रखी हैं कि उनकी माँ की बहुएँ उनकी बात नहीं मानतीं। बेटा, तुम्हें अपने आचरण का ध्यान रखना चाहिए। आखिर इज़्जत सिर्फ ससुराल की नहीं होती, मायके की भी होती है।”


इतना कहकर चाची ने फोन काट दिया।


संध्या कुछ देर तक चुप खड़ी रही। फिर गुस्से में कमरे से बाहर आई।


उसकी देवरानियाँ — नीलिमा और सुमिता, बाहर ही थीं।

नीलिमा ने पूछा, “क्या हुआ भाभी? आप गुस्से में क्यों हैं?”


संध्या बोली,

“क्या बताऊँ बहनों, हमारी माजी यानी सास जी अपनी बेटी के कहने पर हमारे खिलाफ बातें कर रही हैं। और अब तो चाची तक को ये बात पता चल गई।”


सुमिता बोली,

“मुझे तो पहले से शक था भाभी। जब भी ननद रश्मि यहाँ आती है, घंटों कमरे में माजी से बात करती है। पता नहीं क्या क्या कहती रहती है।”


संध्या ने गुस्से में कहा,

“अब तो बात करनी ही पड़ेगी। हम सब उनकी सेवा करते हैं, सम्मान देते हैं, और वो हमारी ही पीठ पीछे बातें करें — ये बर्दाश्त नहीं।”


तीनों बहुएँ सास कल्याणी जी के कमरे में गईं।

संध्या ने कहा,

“माजी, हम सब दिन-रात आपकी सेवा करते हैं। लेकिन आप अपनी बेटी के पास हमारी शिकायत करती हैं। ये बात सही नहीं है।”


सुमिता बोली,

“अगर हमने कोई गलती की है, तो हमें सीधे कहिए ना, दूसरों से क्यों कहती हैं?”


नीलिमा ने कहा,

“आपकी बेटी ने तो पूरे मोहल्ले में बातें फैला दी हैं। ये घर की इज़्जत का सवाल है माजी।”


कल्याणी जी एक पल को चुप रहीं। फिर बोलीं,

“नहीं बहुओं, मैंने रश्मि से कुछ नहीं कहा।”


संध्या बोली,

“ठीक है माजी, हमने अपनी बात कह दी। अब आप सोचिए कि कौन सही है, कौन गलत।”



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कुछ दिन बाद, कल्याणी जी ने अपनी बेटी रश्मि को फोन किया।

“बेटा, तुम्हारे पापा अब नहीं हैं। और तुम्हारे तीनों भाई अपने-अपने काम में व्यस्त हैं। मैं अकेली पड़ गई हूँ।”


रश्मि बोली,

“मा, आप गॉंव वाले घर में चली जाइए। और हर महीने अपने बेटों से पैसे मांगिए। आखिर सबकुछ उन्हीं का तो है।”


कल्याणी जी बोलीं,

“लेकिन बेटा, ऐसा करना ठीक रहेगा क्या?”


रश्मि बोली,

“क्यों नहीं? और सुनो, मेरी बेटी की शादी का सारा खर्च भी तुम्हारे बेटों को ही उठाना चाहिए। आखिर वो उनके भांजी की शादी है।”



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कुछ दिन बाद, कल्याणी जी ने अपने तीनों बेटों — रमेश, उमेश और महेश को बुलाया।


“बेटा, तुम्हारे पापा की आख़िरी इच्छा थी कि रश्मि की बेटी की शादी का पूरा खर्च हमारा परिवार करे।”


रमेश बोला,

“मा, हम तो हमेशा आपके साथ हैं। जो कहिए, करेंगे।”


उमेश बोला,

“पर मा, जीजा जी के पास भी तो बहुत पैसा है। हमें ही सब क्यों उठाना चाहिए?”


कल्याणी जी बोलीं,

“अगर तुम नहीं करना चाहते तो मैं गाँव की ज़मीन बेचकर बेटी को दे दूँगी।”


छोटे बेटे मुकेश ने कहा,

“भाई, मा की ज़िद कोई नहीं तोड़ सकता। लेकिन एक शर्त होनी चाहिए — रश्मि शादी के बाद माँ की जिम्मेदारी भी उठाए।”


रमेश बोला,

“ठीक है, मा। जो आपको ठीक लगे वो कीजिए।”



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अगले दिन कल्याणी जी ने रश्मि को फोन किया और सब बताया।

रश्मि झुंझलाकर बोली,

“मुझे किसी का बोझ नहीं चाहिए, मा। मैं अपने ससुराल की जिम्मेदारी निभा रही हूँ। अब मुझे और नहीं चाहिए कुछ। शादी में आप आ जाना बस।”


कल्याणी जी फोन रखकर बहुत दुखी हो गईं। उनकी आँखों से आँसू निकल आए।


संध्या ने जब देखा कि माजी कुछ दिन से उदास हैं, तो उसने अपने दोनों देवरानियों के साथ बैठकर सब बात साफ की।

फिर तीनों ने रश्मि को फोन लगाया।


संध्या बोली,

“रश्मि जी, जो चाहिए आप हमसे ले लीजिए। पर कृपया हमारे घर की शांति को मत बिगाड़िए। हमारी सास आपकी माँ हैं। आपने जो कहा, उससे उन्हें बहुत दुख हुआ है। लोभ में किसी का दिल न दुखाएँ।”


रश्मि चुप हो गई। कुछ देर बाद बोली,

“मुझसे गलती हो गई। मा से कहिए, मुझे माफ़ कर दें।”



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जब कल्याणी जी ने अपनी बहुओं को अपने लिए इतना सोचते देखा तो उनका दिल पिघल गया।

उन्होंने अपने पति की तस्वीर के सामने हाथ जोड़कर कहा —

“मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई जी। एक बेटी के मोह में मैं अपनी तीनों बहुओं का प्यार भूल गई थी।”


उन्होंने अपनी बहुओं से माफी मांगी।


बेटों और बहुओं ने मिलकर रश्मि की बेटी की शादी में खूब सहयोग किया।

सारा परिवार फिर से एकजुट हो गया।


रश्मि ने भी अपनी माँ से माफी माँगी और बोली,

“मा, अगर मैं ये गलती न करती, तो शायद आपका दिल कभी नहीं बदलता।”


कल्याणी जी ने मुस्कुराकर कहा,

“बेटी, गलती करने वाला वही है जो सुधारना जानता है।”


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🌷 कहानी का संदेश:


▪️परिवार में प्यार और भरोसा सबसे ज़रूरी है।


▪️गलतफहमी से रिश्ते टूटते हैं, पर एक सच्ची माफी सब जोड़ सकती है।


▪️सास-बहू, ननद-भाभी —

 सब अगर थोड़ा समझें, तो हर घर स्वर्ग बन सकता है।


▪️माँ-बेटी को भी ये समझना चाहिए कि बहुएँ भी परिवार का हिस्सा होती हैं, पराया नहीं।

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