❝ नई बहू का पहला दिन ❞
नव्या की शादी को बस दो दिन हुए थे।
सुबह-सुबह वह अपने नए ससुराल के बड़े से आँगन में खड़ी थी।
चारों तरफ हल्की ठंडी हवा चल रही थी, और घर के लोग अपने-अपने कामों में लगे हुए थे।
सासु माँ – “बहू, उठ गई? चलो अच्छा है, आज तुम्हारा पहला दिन है, तो नाश्ता तुम ही बनाओगी।”
नव्या थोड़ा सकपका गई — “जी माँजी... क्या बनाना है?”
“अरे वही जो हमारे घर में रोज़ बनता है — आलू के पराठे, दही और चाय।”
नव्या ने हल्की मुस्कान दी, मगर अंदर से डर रही थी।
उसे खाना बनाना आता था, पर पराठे बेलने में वो थोड़ी कमजोर थी।
उसी वक्त दो आवाज़ें आईं —
“अरे माँजी, इसे इतना बड़ा काम मत दीजिए, बेचारी अभी नई-नई आई है।”
ये बोल रही थी बड़ी जेठानी रुचि भाभी।
दूसरी बोली — “हाँ हाँ माँजी, पहले दिन ही टेस्ट ले रही हैं क्या?”
ये थी छोटी जेठानी सोनम भाभी।
सासु माँ ने मुस्कराते हुए कहा —
“तुम दोनों के समय भी तो मैंने यही कहा था, याद है? अब बहू भी वही करेगी। घर की परंपरा है।”
नव्या ने चुपचाप आँचल ठीक किया और रसोई में चली गई।
---
रसोई का पहला अनुभव...
रसोई में पहुँची तो वहाँ सब कुछ एकदम सजा हुआ था —
डिब्बे, मसाले, आटा, तेल... सब अपनी जगह पर।
पर जब उसने बेलन उठाया, तो दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
“अगर पराठे खराब हो गए तो क्या होगा?” उसने खुद से कहा।
इतने में सोनम भाभी आ गई —
“अरे नव्या, डर मत। मैं मदद कर दूँ क्या?”
नव्या मुस्कराई, “नहीं भाभी, माँजी ने कहा है कि आज मैं अकेले बनाऊँ।”
सोनम बोली — “अरे वाह! आत्मनिर्भर बहू!” और हँसते हुए चली गई।
नव्या ने हिम्मत की और पहला पराठा तवे पर डाला।
वो पराठा कुछ टेढ़ा-मेढ़ा सा बन गया।
उसने झट से दूसरा बनाया — वो थोड़ा गोल हुआ।
तीसरा बनते-बनते पराठा बिलकुल परफेक्ट निकल आया।
---
थोड़ी देर बाद सब लोग डाइनिंग टेबल पर बैठ गए।
सासु माँ, ससुर जी, दोनों जेठानियाँ और तीनों भाई।
नव्या ने झिझकते हुए कहा — “माँजी, नाश्ता तैयार है।”
सबने प्लेट में पराठे रखे।
पहला निवाला लेते ही ससुर जी बोले —
“वाह बहू! हाथ तो बहुत स्वादिष्ट हैं तुम्हारे।”
सासु माँ भी मुस्कराईं —
“सच कहूँ तो, तुम्हारे पराठों में तो प्यार का स्वाद है।”
रुचि और सोनम दोनों थोड़ा मुस्कराईं, पर एक-दूसरे को देखकर बोलीं —
“इतना अच्छा बना लिया पहली बार में? लगता है घर में नया कॉम्पिटिशन शुरू होने वाला है।”
सबके हँसने से माहौल हल्का हो गया।
---
दोपहर की परीक्षा...
दोपहर को फिर रुचि भाभी बोलीं —
“चलो बहन, सुबह तो पराठे बना लिए। अब दोपहर का खाना तुम बनाओगी और हम टेस्ट करेंगे।”
नव्या ने कहा —
“ठीक है भाभी, लेकिन मैं भी एक शर्त रखती हूँ।”
“कौन सी शर्त?” सोनम ने पूछा।
“अगर मेरा खाना पसंद आ गया तो कल का पूरा दिन आप दोनों रसोई में आराम करेंगी। खाना मैं अकेले बनाऊँगी।”
“और अगर पसंद नहीं आया तो?”
“तो मैं पूरे हफ्ते आपका कहा काम करूँगी, जो भी कहें।”
दोनों भाभियाँ हँस पड़ीं — “चलो, मंज़ूर है!”
---
🍲 दोपहर का चैलेंज...
नव्या ने रसोई में जाकर सब्जी काटी, दाल धोई और चावल रख दिए।
धीरे-धीरे मसाले डाले, गैस चालू की, और मोबाइल पर “माँ की रेसिपी” खोल ली।
दो घंटे बाद जब खाना तैयार हुआ, तो खुशबू पूरे घर में फैल गई।
टेबल पर सबने खाना चखा —
चना मसाला, जीरा राइस और रायता।
सोनम ने पहला निवाला लिया — “अरे वाह, ये तो लाजवाब है!”
रुचि बोली — “लगता है अब हमें छुट्टी मिल ही गई।”
सासु माँ ने प्यार से कहा —
“बहू, तुमने तो घर की रसोई में नई जान डाल दी।”
---
शाम को नव्या ने दोनों भाभियों से कहा —
“भाभी, असल में मुझे डर था कि मैं अच्छा नहीं बना पाऊँगी।
लेकिन आप दोनों ने जो प्यार से मजाक किया, उससे मेरा डर निकल गया।”
रुचि ने मुस्कराते हुए कहा —
“और हमें भी याद आ गया कि नई बहू को डराना नहीं, सिखाना चाहिए।”
सोनम बोली — “चलो, आज से हम तीनों मिलकर खाना बनाएँगे।
कभी पराठे, कभी पास्ता, कभी पुलाव — सब मिलजुल कर।”
सासु माँ ने गर्व से कहा —
“अब तो मेरा घर सच में घर लगने लगा है।”
---
सीख...
कभी-कभी छोटी-छोटी शर्तें रिश्तों में मिठास घोल देती हैं।
थोड़ा प्यार, थोड़ी समझदारी — यही तो हर नए रिश्ते की बुनियाद होती है।
भाग 2 — तीनों बहुओं की नई रसोई
शादी को अब तीन महीने हो चुके थे।
घर में सबकुछ पहले से ज्यादा शांत और खुशहाल था।
नव्या, रुचि और सोनम — तीनों अब जैसे सगी बहनें बन गई थीं।
एक दिन दोपहर को सासु माँ टीवी देख रही थीं,
अचानक उन्होंने देखा कि टीवी पर कोई शो चल रहा है —
“इंडियन बहुएँ के मुकाबले मॉडर्न किचन चैलेंज!”
सासु माँ ने हँसते हुए कहा —
“अरे, ये देखो! आजकल की बहुएँ फास्ट फूड बनाकर भी शाबाशी पा रही हैं।
हमारे ज़माने में तो रोटी गोल बन जाए, वही बड़ी बात थी।”
तभी सोनम बोली —
“माँजी, तो क्यों ना हम भी एक दिन ऐसा ‘मॉडर्न फूड डे’ रखें? जहाँ रसोई में सिर्फ फास्ट फूड बने!”
रुचि हँसी — “और फिर अगला दिन ‘ट्रेडिशनल फूड डे’। दोनों तरफ का स्वाद!”
नव्या बोली — “अरे, ये तो मजेदार रहेगा! चलिए मैं सिखाती हूँ, कैसे बनाते हैं ‘पिज़्ज़ा’, ‘ब्रेड पास्ता’, और ‘चॉकलेट लावा केक!’”
सासु माँ ने हैरान होकर कहा —
“लावा केक? ये क्या नया तामझाम है?”
“माँजी,” नव्या बोली, “जब आप खाएँगी तो खुद कहेंगी — ‘वाह, ये तो जन्नत का स्वाद है!’”
---
🍕 तैयारी का दिन...
अगले दिन सुबह-सुबह तीनों बहुएँ रसोई में जुट गईं।
किचन में जैसे कोई फिल्म शूट हो रही हो —
रुचि टमाटर काट रही थी, सोनम चीज़ ग्रेट कर रही थी, और नव्या ओवन सेट कर रही थी।
सासु माँ दरवाज़े से झाँकते हुए बोलीं —
“अरे बेटा, ये तो सब अंग्रेज़ी-विदेशी खाना है! इसमें नमक डालते हैं कि शक्कर?”
तीनों हँस पड़ीं —
“माँजी, थोड़ा सब डालते हैं — प्यार का मसाला सबसे ज्यादा!”
---
करीब एक घंटे बाद पूरा घर खुशबू से भर गया।
सासु माँ, ससुर जी और तीनों बेटे टेबल पर बैठ गए।
पहले पिज़्ज़ा आया — चीज़ से भरा हुआ।
फिर आया पास्ता — टमाटर सॉस में लिपटा हुआ।
अंत में आया लावा केक — अंदर से चॉकलेट बहती हुई!
ससुर जी ने पहला निवाला लिया —
“अरे वाह! ये तो रेस्टोरेंट वाला स्वाद है।”
सासु माँ ने झिझकते हुए लावा केक खाया और बोलीं —
“अरे ये तो बहुत मीठा है, लेकिन स्वादिष्ट भी! मुझे तो लग रहा है जैसे मंदिर में प्रसाद खा रही हूँ।”
सोनम बोली —
“माँजी, अब आपकी बारी। कल आप हमें पारंपरिक खाना सिखाइए। पूरी थाली वाला।”
---
सासु माँ का दिन...
अगली सुबह रसोई की कमान सासु माँ के हाथों में थी।
उन्होंने कहा — “आज मैं बनाऊँगी दाल, चावल, आलू की सब्ज़ी, और बेसन का हलवा।”
तीनों बहुएँ उनके चारों तरफ चिड़ियों की तरह घूम रही थीं।
कभी नमक माँगतीं, कभी रोटी बेलने में मदद करतीं।
सासु माँ बोलीं —
“बहू, खाना बनाना कोई चैलेंज नहीं होता। ये तो घर की खुशबू है।
जिसमें सबका साथ हो, वही सबसे स्वादिष्ट बनता है।”
नव्या मुस्कराई —
“और आज तो हमने दोनों का स्वाद जोड़ दिया है — परंपरा और आधुनिकता।”
---
शाम की महफ़िल..
शाम को सबने मिलकर खाना खाया —
आधा टेबल पर भारतीय थाली, आधा पिज़्ज़ा-पास्ता वाला।
सभी ने मिलाकर खाया —
पिज़्ज़ा के साथ दही, और पास्ता के साथ अचार!
ससुर जी हँसते हुए बोले —
“ये तो हमारा इंडो-इटालियन जुगाड़ हो गया।”
तीनों बहुएँ खिलखिला उठीं।
सासु माँ ने प्यार से कहा —
“आज मुझे गर्व है कि मेरी बहुएँ न सिर्फ काबिल हैं, बल्कि दिल की साफ भी हैं।”
नव्या ने सिर झुकाकर कहा —
“माँजी, असली रसोई तो वो होती है, जहाँ सबका प्यार घुला हो। चाहे पराठा बने या पिज़्ज़ा।”
---
❤️अंत भला तो सब भला...
रात को तीनों बहुएँ छत पर बैठीं, हवा चल रही थी।
सोनम बोली — “अब अगली बार क्या बनाना है?”
रुचि बोली — “माँजी का बर्थडे आ रहा है न? उस दिन हम सब मिलकर ‘इंडियन-फ्यूज़न’ थाली बनाएँगे।”
नव्या बोली —
“ठीक है! आधा दिन पारंपरिक, आधा मॉडर्न —
जैसे हमारे रिश्ते हैं — आधे पुराने संस्कार, आधे नए अंदाज़।”
तीनों ने साथ में ठहाका लगाया।
नीचे सासु माँ की आवाज़ आई —
“बहुएँ! इतनी देर रात को गप
शप नहीं, कल फिर जल्दी उठना है!”
और घर में फिर से हँसी गूंज उठी —
एक ऐसा घर, जहाँ रिश्तों की रसोई हमेशा पकती रहेगी।
भाग 3 — सासु माँ का जन्मदिन और एक अधूरी कहानी
सुबह की ठंडी हवा में घर के आँगन में हल्की-हल्की खुशबू फैल रही थी।
आज घर में रौनक कुछ ज्यादा थी —
क्योंकि आज सासु माँ का जन्मदिन था।
तीनों बहुएँ — रुचि, सोनम और नव्या,
सुबह से ही कुछ फुसफुसा रही थीं, कभी हँस पड़तीं, कभी कुछ छिपा लेतीं।
सासु माँ ने मुस्कराकर पूछा —
“अरे, क्या माजरा है? सुबह-सुबह इतना गुप्त मिशन क्यों चल रहा है?”
रुचि बोली —
“कुछ नहीं माँजी, बस घर की सफाई कर रहे हैं।”
सोनम बोली — “और थोड़ा सरप्राइज़ भी है।”
नव्या हँसते हुए बोली — “लेकिन वो शाम तक राज़ रहेगा।”
सासु माँ मुस्कराईं — “ठीक है, मैं भी देखती हूँ कि मेरी बहुएँ क्या चाल चल रही हैं।”
---
🎂 तैयारी की हलचल...
पूरा दिन तीनों बहुएँ जुटी रहीं।
किचन में अलग ही चहल-पहल थी।
नव्या बना रही थी चॉकलेट केक,
रुचि बना रही थी पनीर की सब्ज़ी और पुलाव,
और सोनम संभाल रही थी सजावट — रंग-बिरंगे गुब्बारे, मोमबत्तियाँ, फूलों की माला।
तीनों भाइयों ने भी इस बार पूरा साथ दिया।
रवि ने गिटार उठाया, रोहित ने फोटोग्राफ तैयार किए, और वरुण ने कहा —
“आज मम्मी की पुरानी तस्वीरें दिखाकर उन्हें रुला ही देंगे।”
---
शाम का सरप्राइज़...
शाम होते ही पूरा घर झिलमिल रोशनी से भर गया।
दीवारों पर फूलों की लड़ी, टेबल पर केक, और एक बड़ी सी फोटो —
जिसमें सासु माँ अपनी जवानी के दिनों में लाल साड़ी में खड़ी थीं।
जैसे ही सासु माँ नीचे आईं, सबने एक साथ कहा —
🎉 “हैप्पी बर्थडे माँजी!” 🎉
सासु माँ की आँखें चमक उठीं।
“अरे, ये सब मेरे लिए? तुम्हें कैसे याद रहा?”
नव्या ने कहा —
“माँजी, आपके बिना ये घर अधूरा है। आज हम सब आपको खुश देखना चाहते हैं।”
उन्होंने केक काटा, सबने मिलकर गाना गाया।
माहौल में मिठास और हँसी थी।
---
लेकिन फिर...
केक काटने के बाद सासु माँ की नज़र अपनी पुरानी तस्वीर पर गई।
कुछ पल वो चुप रहीं, और फिर धीरे से बोलीं —
“जानती हो बहुओं, इस तस्वीर में मैं खुश दिखती हूँ,
पर उस दिन मैं बहुत रोई थी…”
सभी चौंक गए।
नव्या ने धीरे से पूछा — “क्यों माँजी?”
सासु माँ बोलीं —
“वो मेरी शादी का पहला जन्मदिन था।
मुझे घर के कामों से फुर्सत ही नहीं मिली थी।
सारा दिन खाना बनाया, मेहमानों की सेवा की, और रात को सब सो गए।
किसी ने याद तक नहीं किया कि आज मेरा जन्मदिन था।
मैं रसोई में बैठी रो रही थी… तभी तुम्हारे ससुर जी आए,
और बोले — ‘अरे, तुम तो हमारी जान हो, रो क्यों रही हो?’
उन्होंने मेरी हथेली पर गुलाब का फूल रख दिया था।
बस वही पहला और आखिरी तोहफा था।”
पूरा कमरा शांत हो गया।
सोनम की आँखें भर आईं।
रुचि ने सासु माँ का हाथ पकड़ लिया।
नव्या बोली —
“माँजी, आज से ये कमी कभी महसूस नहीं होगी।
हर साल आपका जन्मदिन हम तीनों साथ मनाएँगे —
इतने प्यार से कि आँसू सिर्फ खुशी के आएँ।”
---
सासु माँ की आँखें भीग गईं।
उन्होंने कहा —
“तुम तीनों ने आज मुझे फिर से जवान बना दिया।
अब तुम सब मुझे ‘माँजी’ नहीं, सिर्फ ‘माँ’ कहोगी।
क्योंकि अब तुम तीनों मेरी बेटियाँ हो।”
तीनों बहुएँ भावुक होकर उनके गले लग गईं।
ससुर जी ने दूर से कहा —
“अरे, अब खाना भी खा लो! नहीं तो भावनाओं में भूख मिट जाएगी।”
सबकी हँसी गूँज उठी।
रात भर वो बातें करते रहे —
पुराने
किस्से, नयी यादें, और दिल में एक अपनापन।
---
सीख
कभी-कभी एक छोटा-सा जन्मदिन,
सालों पुरानी उदासी मिटा देता है।
जब दिल से अपनापन मिले,
तो सास और बहू नहीं —
माँ और बेटी का रिश्ता बन जाता है।
भाग 4 — जब माँ बीमार पड़ीं
सर्दियों के दिन थे।
सुबह की ठंडी हवा आँगन के पेड़ों को हिला रही थी।
तीनों बहुएँ रोज़ की तरह काम में लगी थीं —
रुचि रसोई में, सोनम कपड़े तह कर रही थी, और नव्या बच्चों को तैयार कर रही थी।
अचानक रसोई से सोनम की आवाज़ आई —
“अरे, जल्दी आओ! माँजी बेहोश हो गई हैं!”
तीनों भागकर पहुँचीं —
सासु माँ फर्श पर बैठी थीं, चेहरा पीला, हाथ काँप रहे थे।
रुचि ने तुरंत पानी पिलाया,
नव्या ने डॉक्टर को फोन किया,
और सोनम ने तकिया लगाकर उन्हें संभाला।
--
थोड़ी देर में डॉक्टर आ गया।
उन्होंने चेकअप किये और बोले —
“उन्हें कुछ दिन आराम की ज़रूरत है।
ब्लड प्रेशर बहुत गिर गया है।
घर का काम बिल्कुल नहीं करेंगी।”
सासु माँ बोलीं —
“अरे डॉक्टर साहब, घर के काम कौन करेगा फिर? ये बहुएँ तो पहले से ही दिन-रात लगी रहती हैं।”
डॉक्टर ने मुस्कराते हुए कहा —
“अब यही बहुएँ आपकी दवा हैं।”
---
नया नियम...
डॉक्टर के जाने के बाद नव्या ने धीरे से कहा —
“अब से माँ कोई काम नहीं करेंगी।”
रुचि बोली — “हम तीनों मिलकर सब करेंगे।”
सोनम बोली — “नव्या, तू दवा संभालना। मैं खाना बनाऊँगी।”
रुचि बोली — “और मैं माँ के कमरे की देखभाल करूँगी।”
ऐसे ही, तीनों ने बाँट लिया —
काम का नहीं, ज़िम्मेदारी का हिस्सा।
---
🫶 माँ की चिंता...
सासु माँ बिस्तर पर लेटी थीं।
कभी-कभी उन्हें बुरा लगता —
“मैं सबकी सेवा करती थी, अब खुद सेवा ले रही हूँ।”
एक दिन उन्होंने नव्या से कहा —
“बहू, मुझे बहुत बुरा लगता है, ऐसे लेटे-लेटे।”
नव्या ने उनका हाथ थामा और बोली —
“माँ, ये तो बस आपकी छुट्टियाँ हैं।
आपने हमें घर सिखाया, अब हमें मौका दीजिए कि हम आपका ध्यान रख सकें।”
सासु माँ की आँखें नम हो गईं।
---
अब माँ का कमरा ही रसोई बन गया था।
तीनों बहुएँ वहीं बैठकर बातें करतीं, खाना खिलातीं, हँसतीं, कहानियाँ सुनातीं।
सोनम रोज़ कहती —
“माँ, आप तो ‘मदर इंडिया’ से भी बड़ी हीरोइन हैं।”
रुचि बोली —
“हाँ, और अब हम तीनों आपकी फिल्म की सह-कलाकार हैं।”
सासु माँ मुस्करातीं — “तो फिर फिल्म का नाम रखो — तीन बहुएँ और एक माँ!”
---
एक दिन...
एक शाम सासु माँ बहुत चुप थीं।
नव्या बोली — “माँ, क्या हुआ? दर्द है क्या?”
माँ ने कहा —
“नहीं बेटी, बस सोच रही थी…
कभी लगता था कि बहुएँ आएँगी तो घर का माहौल बिगड़ जाएगा।
पर तुम तीनों ने तो मेरी दुनिया ही बदल दी।”
रुचि ने कहा —
“माँ, आपने हमें घर नहीं दिया, अपनापन दिया।”
सोनम बोली —
“अब तो आप ठीक हो जाएँ, ताकि हम सब मिलकर चौक पर गोलगप्पे खाने जा सकें।”
सासु माँ मुस्कराईं —
“ठीक हूँ बेटा, अब तो तुम्हारे प्यार ने ही दवा का काम कर दिया है।”
---
एक महीने बाद...
धीरे-धीरे सासु माँ बिल्कुल ठीक हो गईं।
उस दिन घर में मिठाई बाँटी गई।
ससुर जी बोले —
“मेरी बेटियाँ नहीं, ये तो मेरी तीनों देवियाँ हैं।
इनके प्यार ने घर ही नहीं, हमारी ज़िंदगी भी संभाल ली।”
सासु माँ ने कहा —
“अब मुझे किसी की चिंता नहीं।
जब तीन बेटियाँ साथ हों, तो माँ बूढ़ी नहीं होती — माँ अमर हो जाती है।”
तीनों बहुएँ उनकी गोद में सिर रखकर बैठ गईं।
घर में शांति थी — लेकिन उस शांति में प्यार की गूँज थी।
---
🌹 सीख
रिश्ता खून से नहीं,
दिल से निभाया जाता है।
जब बहुएँ बेटियों की तरह बन जाएँ,
तो घर नहीं,
स्वर्ग बन जाता है।
भाग 5 — “माँ का तोहफ़ा”
(अंतिम भाग)
सर्दी अब खत्म हो चुकी थी।
आँगन में आम के पेड़ पर नई कोंपलें फूट रही थीं।
घर में फिर वही चहल-पहल थी,
पर अब एक फर्क था —
हर काम में प्यार की खुशबू घुल चुकी थी।
---
माँ का नया फैसला...
एक सुबह सासु माँ ने तीनों बहुओं को बुलाया।
वो बड़ी शांत आवाज़ में बोलीं —
“बेटियों, आज मैं तुम तीनों से कुछ कहना चाहती हूँ।”
रुचि, सोनम और नव्या थोड़ा चौंकीं —
“क्या बात है माँजी?”
माँ मुस्कराईं —
“जब मैं बीमार थी, तुम सबने मेरी सेवा की।
आज मैं ठीक हूँ, तो अब मेरी बारी है तुम्हारा धन्यवाद करने की।”
---
पहला उपहार — रुचि के नाम...
माँ ने एक छोटा सा लिफाफा बढ़ाया —
“रुचि बेटा, तू हमेशा घर संभालती रही, खुद के लिए कभी कुछ नहीं लिया।
ये तेरे लिए एक छोटा सा तोहफ़ा है — कुकिंग क्लास खोल ले।”
रुचि की आँखें भर आईं —
“माँजी, ये क्या कर रही हैं आप?”
माँ बोलीं —
“तू दूसरों के लिए बनाती है, अब अपनी पहचान खुद बना।”
---
दूसरा उपहार — सोनम के लिए...
माँ ने दूसरा लिफाफा सोनम को दिया —
“तू हमेशा सबकी मदद करती है।
तेरा दिल बहुत बड़ा है।
इससे एक छोटा सा सिलाई-बुटीक खोल ले।”
सोनम बोली —
“माँजी, मैं तो बस घर का काम करती हूँ।”
माँ ने प्यार से उसका सिर सहलाया —
“घर संभालना ही तो सबसे बड़ी कला है बेटा।”
---
तीसरा उपहार — नव्या के लिए...
माँ ने तीसरा लिफाफा नव्या को दिया।
नव्या चकित थी —
“माँ, मेरे लिए क्या है?”
माँ बोलीं —
“तेरी लिखावट बहुत सुंदर है, बेटा।
इससे अपनी कहानियाँ लिखना शुरू कर दे।
मैं चाहती हूँ कि दुनिया जाने,
मेरी नव्या सिर्फ बहू नहीं, एक लेखिका है।”
नव्या की आँखों से आँसू बह निकले।
उसने माँ के पैर छूते हुए कहा —
“माँ, आपने तो हमारी ज़िंदगी ही बदल दी।”
---
परिवार का भावुक पल...
ससुर जी बोले —
“देखो, मैंने ज़िंदगी में बहुत कुछ देखा है,
पर ऐसा रिश्ता कभी नहीं देखा —
जहाँ सास माँ बन गई और बहुएँ बेटियाँ।”
तीनों बहुएँ माँ से लिपट गईं।
घर की दीवारें गवाह थीं —
उस दिन वहाँ सिर्फ रिश्ते नहीं, प्यार का मंदिर बन गया था।
---
कुछ महीने बाद...
रुचि की “होम टेस्ट कुकिंग क्लास” चल पड़ी।
सोनम का बुटीक पूरे कॉलोनी में मशहूर हो गया।
और नव्या — उसने अपने ब्लॉग पर एक कहानी लिखी —
“तीन बहुएँ और एक माँ।”
कहानी वायरल हो गई।
लोगों ने लिखा —
“काश हर घर में ऐसी माँ और ऐसी बहुएँ हों।”
---
अंत — माँ की अंतिम पंक्ति...
एक दिन माँ ने अपनी पुरानी डायरी में आखिरी बार लिखा —
> “मेरी बहुएँ मेरी बेटियाँ बन गईं।
अब मुझे कोई डर नहीं।
क्योंकि जब बहुएँ घर की दीवारों में मुस्कान बन जाएँ,
तो वो घर नहीं — स्वर्ग बन जाता है।”
---
समापन संदेश...
रिश्ते निभाने से नहीं,
महसूस करने से
बनते हैं।
जब सास माँ बन जाए,
और बहुएँ बेटियाँ —
तो दुनिया की सबसे खूबसूरत कहानी वही होती है…
‘तीन बहुएँ और एक माँ।’ 🌸

Post a Comment