भाभी का अपमान — और एक सच्चा एहसास



“भाभी, आपको लगता नहीं कि ये सब दिखावे के लिए कर रही हैं?”
नैना ने अपने भाई की नई दुल्हन रिया को देख कर धीमे से मां से कहा।

मां मुस्कराईं, “नई बहू है, थोड़ी चमक-दमक तो स्वाभाविक है।”

“चमक-दमक?” नैना ने मुंह बनाया, “हर वक्त सजधज कर बैठना, मोबाइल पर फोटो डालना, सबको दिखाना — ये क्या शादी का घर है या फिल्म का सेट?”

रिया वहीं आकर बोली, “मां जी, आपके लिए अदरक वाली चाय बना दूँ?”
मां ने प्यार से कहा, “हाँ बहू, बना दे।”

नैना फिर बड़बड़ाई, “इतना भी क्या नाटक है।”

रिया ने सुना तो बस मुस्करा दी। उसने सोचा — छोड़ो, नया रिश्ता है, वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा।

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पहला ताना — ‘मायके की लड़की’

अगले दिन सुबह-सुबह नैना ने देखा कि रिया अपनी मां से फोन पर बात कर रही है।
“मम्मी, मैं बिल्कुल ठीक हूँ, आप लोग कैसे हो?”

इतना सुनते ही नैना बोली, “भाभी, आप तो रोज मायके से बात करती हैं, जैसे ससुराल में कुछ काम ही नहीं।”

रिया ने नम्रता से कहा, “नैना, माँ की तबियत थोड़ी कमजोर है, बस हालचाल पूछ रही थी।”

“हम भी माँ की बेटी हैं,” नैना बोली, “पर हमें इतना वक्त कहाँ मिलता है।”

रिया ने कुछ नहीं कहा। वो चुपचाप रसोई में चली गई।

मां ने सुन लिया था, बोलीं, “नैना, बहू को ताने मत मार। शादी नया रिश्ता है, संभलने में वक्त लगता है।”

“मां, मैं ताना नहीं मार रही, बस कह रही हूँ कि सबकी कुछ मर्यादाएँ होती हैं।”

रिया ने उस दिन पहली बार महसूस किया कि हर रिश्ते में मीठे शब्दों से ज्यादा जरूरी होता है सम्मान।


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त्योहार की तैयारी और फिर अपमान...

कुछ दिन बाद करवा चौथ आया।
रिया ने पूरे मन से व्रत रखा, सास के पैर दबाए, नैना की भी पूजा में मदद की।

शाम को सब छत पर चाँद का इंतज़ार कर रहे थे।
रिया ने थाली में दीपक रखा, सजी-धजी खड़ी थी।

नैना बोली, “वाह भाभी, आप तो मॉडल लग रही हैं! इंस्टाग्राम पर डालना मत भूलिएगा।”

सब हँस पड़े, लेकिन रिया का चेहरा उतर गया।
वो समझ गई कि ये तारीफ नहीं, ताना था।

उसने थाली नीचे रख दी, और बोली,
“नैना, मैं बस अपनी परंपरा निभा रही हूँ, सोशल मीडिया के लिए नहीं।”

नैना बोली, “भाभी, मैं तो मजाक कर रही थी, आपको बुरा लग गया?”

रिया ने हल्की मुस्कान दी, लेकिन उसके दिल में पहली दरार पड़ चुकी थी।


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दो हफ्ते बाद रिया की माँ की तबियत खराब हुई।
रिया ने सास से कहा, “मां जी, दो दिन के लिए मायके जाना चाहती हूँ।”

सास बोलीं, “ठीक है, जाओ बेटा।”

लेकिन नैना फिर भड़क उठी, “भाभी शादी के तीन महीने में तीसरी बार मायके जा रही हैं, क्या वहां कोई ऑफिस खुला है?”

रिया ने इस बार कुछ नहीं कहा। बस अपना बैग पैक किया और चली गई।

उस रात नैना ने मां से कहा, “मां, ये लड़की हमारे घर की नहीं लगती।”

मां ने कहा, “नैना, तू छोटी है, रिश्तों की गहराई नहीं समझती। बहू बुरा नहीं है, बस थोड़ा भावुक है।”

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वक्त का पहिया घूमता है..

कुछ महीने बाद नैना की खुद की सगाई हुई।
घर में खुशियों का माहौल था।

रिया ने पूरे दिल से तैयारी की — मिठाइयाँ बनाईं, सजावट की, गिफ्ट्स खरीदे।

नैना को लगा, भाभी दिखावा कर रही हैं, पर जब सगाई वाले दिन उसकी साड़ी फट गई और वो रोने लगी, तो रिया ही सबसे पहले भागी।

“नैना, ये मेरी साड़ी पहन लो, तेरे जैसी ही रंग की है।”
“पर भाभी, आपकी…”
“मेरा क्या, तू खुश रहे, वही बड़ी बात है।”

नैना की आँखें भर आईं। पहली बार उसने भाभी के हाथ थामे — “भाभी, मैं हमेशा आपको गलत समझती रही…”

रिया मुस्कराई, “अब समझ गई न, ननद और भाभी में फर्क नहीं होता, दोनों बहनें ही होती हैं, बस घर अलग होते हैं।”

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अंत — प्यार की जीत

सगाई के बाद रात को नैना छत पर गई।
वहीं रिया दीया जला रही थी।

“भाभी, एक बात कहूं?”
“कहो न।”
“आपसे जलन होती थी… क्योंकि आप हर किसी का दिल जीत लेती थीं। मुझे लगता था आप दिखावा करती हैं, पर असल में आप सच्ची निकलीं।”

रिया ने मुस्कराकर कहा, “जलन प्यार का उल्टा नहीं होती, बस समझ की कमी होती है।”

दोनों ने गले लगकर रोया।
सास ने नीचे से आवाज़ दी — “अरे, ऊपर क्या बहनें बैठी हैं क्या?”

रिया बोली, “हाँ मां जी, अब तो सगी बहनें बन गईं।”


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सीख

रिश्ते तब मजबूत बनते हैं जब हम “अपना हक़” मांगने से पहले “दूसरे का दिल” समझें।
कभी-कभी एक मुस्कान, एक माफ़ी, या एक साड़ी — नफ़रत को प्यार में बदल देती है।

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