“अर्शी की नई सुबह”
सवेरे के सात बज चुके थे। अर्शी रसोई में जल्दी-जल्दी हाथ चला रही थी। उसका बेटा, रियान, अभी सात साल का था और स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहा था। आधे घंटे बाद उसका पति, रोहन, अपने क्लिनिक के लिए निकलने वाला था।
तभी सास, निर्मला जी, की आवाज़ सुनाई दी।
“अरे बहु! अब तक चाय नहीं बनाई? नाश्ता कहां है? देखो, इंसान बेहाल है, लेकिन तुम तो महरानी बन बैठी हो!”
अर्शी ने चुपचाप पराठे सेकते हुए चाय तैयार की। थोड़ी ही देर में उसने सास को चाय और बिस्कुट दे दिए। तभी ससुर, हरि जी, टहलते हुए रसोई में आए। अर्शी ने उनके लिए दूध गर्म किया।
रियान उठकर खेलने की कोशिश कर रहा था। अर्शी ने प्यार से कहा,
“बेटा, जल्दी नहा लो। मैं तुम्हारा टिफिन तैयार कर रही हूँ।”
लेकिन निर्मला जी ने ठहाका मारते हुए कहा,
“क्यों? कोई और नहला देगी तो तेरे हाथ कट जाएंगे क्या?”
अर्शी ने धीले स्वर में कहा, “नहीं मा जी, जल्दी करनी है, रोहन ओफिस निकलने वाले हैं। देरी हुई तो गुस्सा करेंगे।”
अभी वह नाश्ता पूरा कर रही थी कि रोहन कमरे में आया और रौब दिखाते हुए बोला,
“अब तक टिफिन नहीं बनाया? क्या तुम सो रही थी?”
इतना कहते ही उसने जोर का थप्पड़ अर्शी के गाल पर ठोंक दिया।
अर्शी की आँखों से आँसू बह निकले, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। उसने जल्दी से पराठे तैयार किए, टिफिन और नाश्ता दिया। जाते हुए रोहन ने धमकी दी,
“सवेरे तक तुम्हारे पिता से 30 लाख रुपए लेकर आना, वरना तुम्हारा हाल बुरा होगा।”
अर्शी के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसके पिता पहले ही बेटी की शादी और घर बसाने में पूरी संपत्ति खर्च कर चुके थे। अब 30 लाख रुपए… यह असंभव था।
सास और ससुर हमेशा यही कहते थे,
“तुम्हारे पिता के पास करोड़ों हैं, थोड़े ही समय की बात है, सब मिल जाएगा। बेटी के घर को बचाना हमारा फर्ज है।”
लेकिन अर्शी जानती थी कि उसके पिता की हालत कितनी कमजोर है।
अर्शी ने कई बार यह सोचा कि वह घर छोड़ दे। लेकिन उसके मन में सबसे बड़ा डर था—अपने बेटे की सुरक्षा।
रात में, जब रोहन और सास-ससुर सो रहे थे, अर्शी ने अपने बेटे को धीरे से जगाया।
“रियान, हमें अब यहां नहीं रहना। चलो, मायके चलते हैं। वहाँ सुरक्षित रहेंगे।”
रियान मासूमियत से बोला,
“माँ, पापा नहीं आ रहे क्या?”
अर्शी की आँखों से आँसू बहने लगे, उसने प्यार से कहा,
“नहीं बेटा, अब पापा हमें डराने के लिए आएँगे नहीं। अब हम नई ज़िंदगी शुरू करेंगे।”
अर्शी ने अपने पिता को पूरी कहानी बताई। उसके भाई ने तुरंत पुलिस थाने लेकर जाकर दहेज प्रताड़ना की रिपोर्ट दर्ज करवाई। अगले दिन ही रोहन और उसके माता-पिता को गिरफ्तार कर लिया गया।
छह महीने तक केस चला। इस दौरान अर्शी ने पास के कॉलेज में नौकरी शुरू की। धीरे-धीरे उसने सरकारी कॉलेज में भी पढ़ाना शुरू किया।
अर्शी ने अपने बेटे के लिए नया घर खरीदा। उसने अपने माता-पिता से कहा,
“मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती। अब हम अपनी मेहनत और ईमानदारी से नई ज़िंदगी बनाएँगे।”
समय के साथ अर्शी की हिम्मत और आत्मविश्वास ने उसे मजबूत बना दिया। उसने अपने बेटे को न सिर्फ पढ़ाई में बल्कि जीवन के हर मोड़ पर संवारने का निर्णय लिया।
अर्शी की कहानी सिर्फ़ उसके परिवार के लिए नहीं, बल्कि हर उस बेटी के लिए प्रेरणा बन गई, जो दबाव, डर और अन्याय में जी रही हो।
आज अर्शी अपने जीवन से संतुष्ट है। उसके पास उसका बेटा है, नौकरी है, सम्मान है और सबसे बड़ी चीज—सुकून।
सिर्फ एक अफसोस है—काश उसने यह कदम दस साल पहले उठाया होता, तो वह पीड़ा और दुख से बच सकती थी।
कहानी का संदेश:
हर बेटी को हक है अपने जीवन, सम्मान और सुरक्षित भविष्य पर। डर के कारण कभी चुप न रहें। अगर आप
किसी अर्शी जैसी महिला को जानते हैं, तो उसे मदद करें।

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