❝ बिटिया की समझ ❞

 

A close-up emotional scene of an Indian mother and daughter sharing a heartfelt moment, with the grandmother blessing them near the pooja mandir — showing family love and generational bonding.


सुबह का वक्त था। सावित्री जी रसोई में चाय बना रही थीं। तभी उनकी बेटी नेहा अपने छोटे से बेटे आरव के साथ मायके आई।

दरवाज़े से ही आवाज़ दी –

“मां… आप अभी तक जागी नहीं क्या?”


सावित्री जी मुस्कुराते हुए बोलीं –

“अरे, मां का घर है ना, यहाँ कोई वक्त नहीं होता उठने या सोने का।”


थोड़ी देर में सब नाश्ते की मेज़ पर बैठे थे। तभी सावित्री जी बोलीं –

“नेहा बेटा, एक बात पूछूं?”


“हाँ मां, बोलिए।”


“तेरे ससुराल में सब ठीक है ना?”


“हाँ मां, बहुत अच्छे हैं सब।”


सावित्री जी थोड़ा रुककर बोलीं –

“वो… मैं पूछना चाह रही थी कि अमित कितना कमाता है अब? प्रमोशन हुआ उसका?”


नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा –

“पता नहीं मां, मैंने कभी पूछा नहीं।”


सावित्री जी चौंक गईं –

“क्या! तुझे नहीं पता तेरे पति कितना कमाते हैं? अरे आजकल की लड़कियाँ तो अपने पति की सैलरी का हिसाब रखती हैं, खर्चा तक नोट करती हैं!”


नेहा हंसकर बोली –

“मां, वो जो कुछ भी कमाते हैं, घर के लिए ही तो कमाते हैं। ज़रूरत पड़ने पर कभी मना नहीं किया उन्होंने। फिर मुझे क्या ज़रूरत है गिनने की?”


सावित्री जी बोलीं –

“बेटा, तू भोली है। आदमी का दिल कब बदल जाए, कोई नहीं जानता। आज प्यार है, कल को अगर सारा पैसा अपने घरवालों को देने लगे तो?”


नेहा बोली –

“मां, ससुराल वाले भी तो उनका परिवार हैं। और मैं तो खुश हूँ कि वो सबका ख्याल रखते हैं। अगर वो दूसरों का सम्मान करते हैं, तो मुझे क्या डर?”


सावित्री जी सिर पकड़कर बोलीं –

“हे भगवान, ये नई पीढ़ी तो सुनती ही नहीं! हमने जमाने भर की बातें झेलीं ताकि हमारी बेटियाँ समझदार बनें, और ये तो…”


नेहा ने बात काटते हुए कहा –

“मां, समझदारी सिर्फ पैसों से नहीं होती, भरोसे से भी होती है।”


सावित्री जी नाराज़ होकर उठीं और कमरे में चली गईं।




रात को नेहा अपने बेटे को सुलाने के बाद आंगन में आई, जहाँ उसके पापा, मधुसूदन जी, तुलसी को पानी दे रहे थे।

नेहा बोली –

“पापा, मां हमेशा मुझसे ऐसी बातें क्यों करती हैं?”


मधुसूदन जी हंसकर बोले –

“बेटा, तेरी मां का दिल बहुत कोमल है, पर उसे डर है कि कहीं तू भी उनके जैसी गलती न कर बैठे।”


“कौन सी गलती?”


“उन्होंने हमेशा शक किया, किसी पर भरोसा नहीं किया। तेरी दादी से लेकर मुझ तक, हर रिश्ते में डर रखती रहीं। और वही डर अब वो तुझमें नहीं देख पा रहीं।”


नेहा बोली –

“पापा, मैं चाहती हूँ कि मेरा घर भरोसे पर टिका रहे, शक पर नहीं।”



अगले दिन सुबह-सुबह नेहा रसोई में मां की मदद करने लगी। तभी उनकी दादी यानी शारदा जी आईं और बोलीं –

“नेहा, ये सब छोड़ दे, चल मेरे साथ पूजा घर चल।”


नेहा मुस्कुराई और बोली –

“दादी, हर बार मैं ही आपकी साथी बन जाती हूँ।”


शारदा जी बोलीं –

“क्योंकि तू सुनना जानती है। बाकी सब तो बस बोलना जानते हैं।”


दोनों पूजा घर में बैठीं। दादी बोलीं –

“बिटिया, याद रख, घर की नींव औरत के भरोसे पर टिकी होती है। अगर वो ही डगमगा जाए तो घर गिर जाता है।”


“हाँ दादी, लेकिन मां क्यों नहीं समझतीं ये?”


“क्योंकि उन्हें कभी किसी ने भरोसा करना सिखाया ही नहीं। उन्होंने जिंदगी लड़ाई में गुज़ारी, समझदारी में नहीं।”


सावित्री जी दूर से यह सब सुन रही थीं। उनके चेहरे पर उदासी थी।




दोपहर में जब सब खाना खा चुके, सावित्री जी अचानक नेहा के पास आईं और बोलीं –

“बेटा, तू बहुत बदल गई है। तेरी बातें सुनकर लगता है, जैसे तू अब छोटी बच्ची नहीं रही।”


नेहा मुस्कुराई –

“मां, मैं वही हूं, बस अब रिश्तों की कीमत समझ गई हूँ। आपने जितना मुझे सिखाया, उतना ही दादी ने भी सिखाया – बस ढंग अलग था।”


सावित्री जी की आँखें भर आईं –

“नेहा, तू सच में समझदार है। शायद तू सही कहती है, रिश्तों को शक नहीं, भरोसे की ज़रूरत होती है।”


मधुसूदन जी कमरे से निकलकर बोले –

“देखा सावित्री, तूने अपनी बेटी को जितना डांटा, उसने उतना ही तुझे आईना दिखा दिया। हर मां को अपनी बेटी को भरोसा देना चाहिए, डर नहीं।”


सावित्री जी बोलीं –

“हाँ, अब समझ आई – जिस घर में औरत भरोसे से जीना सीखे, वही घर सच्चा सुख देता है।”


नेहा ने आगे बढ़कर मां को गले लगाया।


शारदा जी ने मुस्कुराते हुए कहा –

“लो, अब तो मेरा घर सच में मंदिर बन गया।”



कहानी का संदेश:


"शक से नहीं, भरोसे

 से घर बसते हैं।

और जब मां अपनी बेटी को डर नहीं, समझ देती है —

तो वो बेटी किसी भी घर को स्वर्ग बना सकती है।"

#FamilyValues #IndianEmotions


No comments

Note: Only a member of this blog may post a comment.

Powered by Blogger.