ममता का मूल्य

 

A humble Indian mother in a school corridor, wearing a simple saree, smiling with tears of dignity after proving her honesty and protecting her self-respect.


नीरा एक सादा और मेहनती महिला थी। पति के गुजर जाने के बाद उसने अपनी दो बेटियों — आर्या और रीत — को अपने दम पर पाला। वह एक सरकारी स्कूल में सफाई कर्मचारी थी। तनख्वाह बहुत ज्यादा नहीं थी, लेकिन अपनी ईमानदारी और लगन के कारण सब उसे “नीरा दीदी” कहकर सम्मान से बुलाते थे।


नीरा की सबसे बड़ी बेटी आर्या कॉलेज में पढ़ती थी और छोटी रीत बारहवीं में थी। नीरा का सपना था कि उसकी बेटियाँ पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हों, ताकि उन्हें वो तकलीफें न झेलनी पड़ें जो उसने झेली थीं।




नीरा रोज सुबह जल्दी उठकर घर का काम निपटाती और फिर स्कूल चली जाती। वहीं, उसकी दोनों बेटियाँ भी अपनी पढ़ाई में लगी रहतीं।

एक दिन स्कूल में नए हेडमास्टर आए — शशांक बाबू। बहुत सख्त स्वभाव के थे। पहले कुछ दिन तो ठीक रहा, लेकिन धीरे-धीरे नीरा को महसूस हुआ कि शशांक बाबू उसके साथ अजीब व्यवहार करने लगे हैं।


कभी अनावश्यक बातें करना, कभी सफाई के बहाने बुलाना, और कभी-कभी उसके हाथ में “अचानक” छू जाने की कोशिश करना।

नीरा असहज महसूस करने लगी।


पहले तो उसने सोचा — “शायद मेरा भ्रम है”, पर जब यह रोज़ होने लगा, तो उसने निश्चय किया कि वह आवाज़ उठाएगी।



अगले दिन, जब शशांक बाबू ने फिर से उसे अकेले कमरे में बुलाकर बात करने की कोशिश की, नीरा ने साफ शब्दों में कहा,

“सर, मैं यहाँ अपना काम करने आती हूँ, कोई गलत बात सुनने नहीं। कृपया आगे से मुझसे ऐसी बातें न करें।”


शशांक बाबू को उम्मीद नहीं थी कि एक सफाई कर्मचारी इस तरह बोल देगी। उन्होंने गुस्से में कहा,

“तुम अपनी हद में रहो, वरना नौकरी से हाथ धो बैठोगी!”


नीरा ने दृढ़ आवाज़ में जवाब दिया,

“नौकरी फिर मिल जाएगी, लेकिन अपनी इज़्ज़त नहीं गंवाऊँगी।”



अगले ही दिन शशांक बाबू ने नीरा पर आरोप लगाया कि उसने स्कूल से पैसे चुराए हैं।

सभी शिक्षक हैरान थे — क्योंकि नीरा पर कोई पहले कभी उंगली नहीं उठी थी।


स्कूल की जांच हुई, पर कोई सबूत नहीं मिला।

फिर भी शशांक बाबू ने उसे नौकरी से निकाल दिया।


नीरा टूट गई, लेकिन हार नहीं मानी। उसने शिक्षा विभाग में शिकायत दर्ज करवाई।




जांच के दौरान कई शिक्षकों ने नीरा का साथ दिया। एक दिन, स्कूल की सीसीटीवी फुटेज में सच्चाई सामने आ गई —

शशांक बाबू खुद पैसे निकालते दिखे और फिर फाइल में नाम नीरा का डाल दिया था।


सच्चाई उजागर होते ही विभाग ने उन्हें निलंबित कर दिया और नीरा को दोबारा नौकरी पर रख लिया।

साथ ही, उसे “ईमानदारी पुरस्कार” से भी सम्मानित किया गया।




जब नीरा घर लौटी, तो दोनों बेटियाँ उसकी आँखों में आँसू देख कर दौड़ पड़ीं।

रीत बोली —

“माँ, आपने जो किया वो बहुत बड़ी बात है। आपने हमें सिखाया कि आत्मसम्मान कभी किसी के डर से छोटा नहीं होना चाहिए।”


नीरा मुस्कुराई —

“बेटी, इंसान गरीब हो या अमीर, गलत के सामने चुप रहना भी पाप है।”



कुछ महीनों बाद, नीरा ने अपनी बड़ी बेटी आर्या का दाखिला शिक्षक प्रशिक्षण कॉलेज में करवाया।

वह बोली —

“अब तू पढ़-लिखकर बच्चों को सिखाए कि सच्चाई की राह कभी आसान नहीं होती, पर सही हमेशा वही होता है।”


उस दिन नीरा ने महसूस किया कि उसकी लड़ाई सिर्फ अपनी इज्जत के लिए नहीं थी, बल्कि अपनी बेटियों के भविष्य के लिए भी थी।


संदेश:


> आत्मसम्मान किसी 

पद या पैसे से नहीं मापा जाता,

बल्कि उससे कि आप गलत के सामने सिर झुकाते हैं या नहीं।


#माँकीइज्जत #आत्मसम्मानकीकहानी


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