अपनापन खून से नहीं, दिल से होता है

 

एक भावनात्मक पारिवारिक कहानी जिसमें नीलम अपने सौतेले देवर आरव को बेटे की तरह पालती है। यह कहानी सच्चे रिश्तों, ममता और अपनापन के गहरे अर्थ को दर्शाती है — कि मां बनने के लिए जन्म नहीं, दिल चाहिए।


नीलम जब इस घर में आई थी, तो उसे लगा था कि उसे अब सुकून की ज़िंदगी मिलेगी।

पति समीर पढ़े-लिखे, समझदार और सधे हुए इंसान थे। सास नहीं थीं, पर ससुर थे – राघव जी, जो सख्त मिजाज के थे।

घर में और कोई नहीं था, बस एक छोटा-सा 8 साल का लड़का आरव — समीर का सौतेला भाई।


नीलम को आरव से पहली नज़र में ही अपनापन महसूस हुआ। वह बहुत प्यारा, भोला और मासूम मुस्कान वाला था।

हर वक्त नीलम के पीछे-पीछे घूमता रहता —

“भाभी दीदी, आप बहुत सुंदर हो… भाभी दीदी, आप मेरे साथ खेलोगी ना?”

नीलम मुस्कुरा देती और उसका माथा चूम लेती, “हाँ बेटा, चलो खेलते हैं।”


धीरे-धीरे आरव नीलम से इतना जुड़ गया कि जब नीलम खाना बनाती तो आरव रसोई में बैठा उसकी बातें सुनता।

“भाभी दीदी, जब मैं बड़ा हो जाऊँगा, तो आपको कार दिलाऊँगा…”

नीलम हंसकर कहती — “बस बेटा, तुम खुश रहो, यही मेरी कार है।”




समीर और नीलम की शादी को पाँच साल हो चुके थे, पर संतान नहीं हुई।

डॉक्टर ने साफ कह दिया — “नीलम, अब मां बनने की संभावना बहुत कम है।”

वह बहुत रोई, लेकिन समीर ने हमेशा उसका साथ दिया।


राघव जी, जो बाहर से कठोर थे, अंदर से टूट गए।

एक दिन उन्होंने कहा — “नीलम, भगवान ने तुम्हें मां बनने का मौका नहीं दिया, लेकिन आरव तुम्हारे लिए वही मौका बन सकता है। तुम चाहो तो उसे अपने बच्चे की तरह पाल सकती हो।”


नीलम ने सिर झुका कर कहा — “पापा जी, मैं तो उसे पहले ही अपने बेटे की तरह मानती हूं।”



आरव अब किशोर हो चुका था।

वह स्कूल में बहुत अच्छा करता, नीलम उसकी हर जरूरत का ध्यान रखती — कपड़े, पढ़ाई, पसंद का खाना, सब कुछ।

लोग ताने मारते —

“नीलम, देवर को बेटे की तरह पाल रही हो? कल को वही घर बांट लेगा, तब देखना!”


नीलम बस मुस्कुरा देती —

“अगर अपना होगा, तो साथ देगा; अगर नहीं, तो खून का भी क्या भरोसा!”



एक दिन नीलम ने समीर से कहा —

“सुनो, अगर तुमको ऐतराज ना हो, तो मैं आरव को कानूनी रूप से अपना बेटा बनाना चाहती हूं।”


समीर चौंक गए — “नीलम, वह मेरा भाई है!”

“हाँ, लेकिन मेरे लिए बेटा है।”


कुछ सोचकर समीर ने कहा — “अगर तुमको सुकून मिलता है, तो कर लो।”


फिर परिवार की रजामंदी से अदालत में सभी कागज़ात बने —

आरव अब सिर्फ समीर का भाई नहीं, नीलम और समीर का बेटा बन गया।



आरव बड़ा हुआ, इंजीनियर बना, और उसे विदेश की एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिली।

घर में सब खुश थे, पर नीलम के दिल में हल्कीसी उदासी थी।

“अब मेरा बेटा दूर चला जाएगा…”


लोग फिर वही बातें कहने लगे —

“नीलम, देखना, अब वो नहीं लौटेगा, मां-बाप जैसे आप पालो, लेकिन खून तो नहीं ना!”


नीलम कुछ नहीं बोली, बस भगवान से एक ही दुआ मांगी —

“मेरा बेटा कभी मुझे पराया ना समझे।”



दो साल बाद नीलम बीमार पड़ गई।

रात को उसकी तबियत अचानक बिगड़ी, अस्पताल में भर्ती करनी पड़ी।

समीर ने फोन किया — “आरव, मां बहुत बीमार हैं…”


अगले ही दिन आरव विमान से भारत पहुंच गया।

नीलम को देखकर उसकी आंखों में आंसू आ गए —

“मां, आपको कुछ नहीं होगा… मैं आ गया हूं ना।”


नीलम ने कमजोर आवाज़ में कहा —

“बेटा, मुझे डर था तू मुझे भूल गया होगा…”

आरव ने उसका हाथ पकड़ा —

“मां, अगर आप मेरी मां ना होतीं तो आज मैं ये इंसान नहीं बन पाता।

आपने मुझे वो प्यार दिया जो मुझे जन्म देने वाली भी शायद ना देती।

अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा। आपकी देखभाल करूँगा — बस यही मेरी सबसे बड़ी नौकरी है।”



नीलम की आंखों से आंसू बह निकले, लेकिन चेहरा मुस्कुरा रहा था।

उसने अपने

 बेटे का सिर गोद में रखा और बोली —

“देखो, मैंने कहा था ना — अपनापन खून से नहीं, दिल से होता है।”

#DilSeRishte #MaaKaPyaar



No comments

Note: Only a member of this blog may post a comment.

Powered by Blogger.