सम्मान की कीमत

An emotional close-up of an Indian woman in a simple saree holding her elderly mother-in-law’s hands with love and tears in her eyes, showing deep respect and family bonding under warm sunlight inside a traditional home.



कमला देवी का परिवार एक साधारण मध्यवर्गीय परिवार था।

घर में उनके दो बेटे — रवि (बड़ा) और अमित (छोटा), दोनों की शादी हो चुकी थी।

बड़ी बहू सीमा, और छोटी बहू नेहा — दोनों स्वभाव और सोच में बिल्कुल अलग थीं।


रवि बैंक में क्लर्क थे, सैलरी 30,000 रुपये महीना।

अमित एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था, और उसकी पत्नी नेहा आईटी सेक्टर में नौकरी करती थी।

नेहा पढ़ी-लिखी, आधुनिक विचारों वाली और आत्मनिर्भर थी।

वहीं सीमा बहुत ही सादगी भरी, घरेलू और शांत स्वभाव की औरत थी — उसे घर के काम, बच्चों की पढ़ाई और परिवार की सेवा से ही सुकून मिलता था।



शुरुआत में सब ठीक चला।

कमला देवी दोनों बहुओं से खुश थीं।

लेकिन धीरे-धीरे नेहा की नौकरी और उसकी ऊँची सैलरी के कारण घर में तुलना शुरू हो गई।


नेहा अक्सर कहती —

“मांजी, आजकल के जमाने में सिर्फ घर संभालने से क्या होता है? कुछ कमाना भी चाहिए।”


कमला देवी भी कई बार सीमा से कह देतीं —

“देखो बहू, नेहा काम करती है, घर भी संभालती है और मां-बाप का नाम भी रोशन कर रही है।

तुम भी कुछ काम कर लिया करो, सारा दिन घर में रहना ठीक नहीं।”


सीमा यह सुनकर चुप रह जाती।

उसे ताना तो लगता था, पर वह बड़ों का सम्मान करती थी।

वो मन ही मन सोचती — “क्या सेवा करना, स्नेह देना और घर को संभालना अब कोई काम नहीं रहा?”




एक दिन रवि ने भी कह दिया —

“सीमा, मां सही कहती हैं, तुम्हें भी कुछ काम करना चाहिए। हमारे बच्चों की पढ़ाई, खर्चे बढ़ रहे हैं।”


सीमा ने बिना कुछ कहे मन में ठान लिया कि अब वह कुछ करेगी।

उसने अपने आस-पास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया।

पहले तीन बच्चे आए, फिर पाँच, और धीरे-धीरे दस से ज्यादा बच्चे हो गए।


हर महीने उसे करीब 6,000 रुपये मिलने लगे।

वह अपनी कमाई से बच्चों के लिए नई किताबें, सास के लिए दवाइयां और घर के छोटे खर्च पूरे करने लगी।

धीरे-धीरे उसकी मेहनत और सादगी सबको दिखने लगी — सिवाय नेहा के।



नेहा अब और भी घमंडी हो गई थी।

वो कहती —

“मांजी, अगर मेरी और अमित की सैलरी न हो, तो घर का खर्च कैसे चलेगा?

सीमा भाभी की कमाई तो बस टॉफियों के बराबर है।”


कमला देवी भी अनजाने में उसकी बातों में बह जातीं और सीमा को कम आंकतीं।

सीमा फिर भी चुप रहती।

वो बस काम करती और सबकी सेवा करती रही।




एक दिन दोपहर को कमला देवी की तबीयत अचानक बिगड़ गई।

सिर चकराने लगा, सांस फूलने लगी।

उस वक्त घर में सिर्फ नेहा थी, जो अपने लैपटॉप पर मीटिंग में व्यस्त थी।

कमला देवी ने आवाज दी —

“नेहा बेटा, ज़रा पानी देना…”

पर नेहा ने हेडफोन लगाए हुए थे, उसे कुछ सुनाई ही नहीं दिया।


थोड़ी देर बाद सीमा बच्चों की ट्यूशन खत्म कर किचन में आई।

उसे लगा, मांजी की आवाज कहीं से आ रही है।

वो दौड़कर उनके कमरे में पहुँची — देखा तो कमला देवी कुर्सी पर पसीने में भीगी बेहोश-सी पड़ी थीं।


सीमा ने तुरंत पानी पिलाया, उनके पैर दबाए और रवि को फोन किया।

फिर पड़ोसी की मदद से उन्हें पास के क्लिनिक ले गई।

डॉक्टर ने बताया —

“थकान और कमजोरी की वजह से ब्लड प्रेशर गिर गया है, अब इन्हें आराम की जरूरत है।”



सीमा ने सास को घर लाकर प्यार से खाना खिलाया, दवा दी और उनकी देखभाल की।

नेहा शाम को आई तो उसे बहुत शर्म महसूस हुई, पर कुछ बोली नहीं।

कमला देवी की आंखों में आंसू थे।

उन्होंने कांपते हाथों से सीमा का हाथ पकड़कर कहा —


“बेटी, मैंने तुझे हमेशा कम समझा।

तेरी सादगी को कमजोरी समझने की गलती की।

आज समझ में आया कि घर चलाने वाला पैसा नहीं, प्यार और संस्कार होते हैं।”


सीमा मुस्कुराई —

“मांजी, मैं तो बस अपना फर्ज निभा रही थी।

घर तभी चलता है जब दिलों में सम्मान और अपनापन बना रहे।”



उस दिन के बाद कमला देवी ने कभी तुलना नहीं की।

अब वे दोनों बहुओं को बराबर प्यार करतीं।

नेहा ने भी धीरे-धीरे अपना व्यवहार बदल लिया।

और सीमा?

वो अब पूरे मोहल्ले की मिसाल बन गई —

एक ऐसी बहू, जिसने बिना आवाज उठाए सम्मान की कीमत सिखा दी।



सीख:


पैसा ज़रूरी है, पर पैसों से बड़ा होता है व्यवहार।


तुलना हमेशा रिश्तों को तोड़ती है।


जो दिल से परिवार संभालता है, वही सच्चा कमाने वाला होता है।

#FamilyEmotions #RespectOverMoney



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