दिल की दीवारें
आशिमा और रोहन की शादी को अभी दो ही महीने हुए थे।
दोनों में बहुत प्यार था — पर इस प्यार के बीच एक दीवार धीरे-धीरे बन रही थी।
यह दीवार थी — रोहन की मां, कमला देवी।
शुरुआत में तो सब ठीक था। शादी के पहले महीने तक कमला देवी अपनी नई बहू को खूब प्यार से रखती थीं।
कभी उसकी पसंद का खाना बनातीं, कभी गहनों की तारीफ़ करतीं।
लेकिन जैसे ही उन्होंने देखा कि रोहन अपनी पत्नी के साथ ज़्यादा समय बिताने लगा है,
उनके मन में एक डर बैठ गया —
“कहीं ये लड़की मेरे बेटे को मुझसे दूर न कर दे।”
धीरे-धीरे उनका व्यवहार बदलने लगा।
जब भी रोहन और आशिमा कहीं साथ बाहर जाने की बात करते,
कमला देवी तुरंत कोई नया बहाना बना देतीं —
“बेटा, आज तो मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही।”
या फिर,
“घर में गैस खत्म हो गया, थोड़ा मार्केट से ले आओ।”
ऐसे-ऐसे छोटे-छोटे बहाने,
जिनसे दोनों कभी खुलकर साथ वक्त ही नहीं बिता पाए।
रोहन, अपनी मां का बहुत सम्मान करता था।
वो कभी उनसे बहस नहीं करता, बस मुस्कुरा देता।
पर आशिमा के दिल में अब चुप्पी की आग जलने लगी थी।
वो दिन भर घर का काम करती,
मुस्कुराती, लेकिन रात को अकेली रो लेती।
कई बार रोहन ने पूछा भी —
“क्या हुआ आशिमा? उदास क्यों रहती हो?”
वो हर बार बस इतना कह देती —
“कुछ नहीं, बस थक गई हूँ।”
समय बीतता गया।
रोहन ऑफिस में बिज़ी, मां घर में,
और आशिमा बीच में जैसे किसी की परछाई बनकर रह गई थी।
एक दिन, घर में अचानक रोहन की छोटी बहन रीना आई।
रीना कुछ साल पहले शादी करके दिल्ली में बस गई थी,
लेकिन इन दिनों अपने पति के ट्रांसफर की वजह से मायके आई हुई थी।
वो बहुत खुश थी कि अब उसका भाई शादीशुदा है।
रीना ने बहू आशिमा से खूब बातें कीं,
पर कुछ ही घंटों में उसे लग गया कि इस घर में कुछ तो ठीक नहीं है।
आशिमा का चेहरा फीका था,
वो मुस्कुरा रही थी पर उसकी आँखें उदास थीं।
रात को जब सब सो गए,
रीना उसके कमरे में गई और धीरे से बोली —
“भाभी, कुछ तो बात है न? बताओ ना मुझसे।”
आशिमा पहले तो चुप रही,
फिर आँसू छलक पड़े —
“रीना, तुम्हारी मां बहुत अच्छी हैं,
लेकिन मुझे लगता है उन्हें डर है कि मैं उनके बेटे को उनसे दूर कर दूँ।
इसलिए वो हमें साथ समय नहीं बिताने देतीं।
हर बार कोई न कोई बहाना बन जाता है।
अब तो मुझे खुद से भी शर्म आने लगी है कि मैं शिकायत कर रही हूँ…”
रीना ने धीरे से उसका हाथ थाम लिया —
“भाभी, आपने कुछ गलत नहीं कहा।
अगर मेरी जगह आप होतीं, तो क्या आप भी खामोश रहतीं?”
आशिमा कुछ नहीं बोली, बस आँसू पोंछ लिए।
अगले दिन सुबह,
रीना अपनी मां के कमरे में गई और बोली —
“मां, मुझे आपसे एक ज़रूरी बात करनी है।”
कमला देवी मुस्कुराते हुए बोलीं —
“क्या हुआ बेटी? कोई नई साड़ी चाहिए क्या?”
रीना ने गंभीर स्वर में कहा —
“मां, आप मुझे सच-सच बताइए,
क्या आपको सच में कल रात पेट में दर्द था,
या फिर आपने बस रोहन भाई-भाभी को घर में रोकने के लिए ऐसा कहा?”
कमला देवी सकपका गईं।
उन्होंने नज़रें नीची कर लीं।
रीना आगे बोली —
“मां, आप भूल रही हैं कि मैं भी किसी की पत्नी हूँ।
अगर मेरे ससुराल में मुझे मेरे पति से दूर रखा जाता,
तो क्या मैं खुश रह पाती?
आप तो मां हैं — कैसे भूल सकती हैं कि नई बहू को अपने पति के साथ समय बिताने की कितनी ज़रूरत होती है?”
उनकी आंखों में आँसू भर आए।
रीना ने उनका हाथ पकड़ा और कहा —
“मां, आपने हमेशा हमें सिखाया कि परिवार प्यार से चलता है,
लेकिन अगर आप ही बेटे की खुशियाँ छीन लेंगी,
तो क्या वो परिवार खुश रह पाएगा?”
कमला देवी अब चुप थीं।
उनकी आँखों से भी आँसू बहने लगे।
उन्होंने कहा —
“रीना, तू बिल्कुल सही कह रही है।
मुझे डर था कि रोहन मुझसे दूर हो जाएगा,
पर मैं ही उसे दूर करती जा रही थी।
आज तूने मेरी आंखें खोल दीं।”
उस शाम, जब रोहन ऑफिस से लौटा,
कमला देवी ने पहली बार खुद कहा —
“बेटा, कल तुम दोनों घूमने चले जाओ।
मैं बिल्कुल ठीक हूँ, चिंता मत करना।”
आशिमा हैरान रह गई।
उसने कमला देवी के पैर छुए —
“मां, अगर मुझसे कोई गलती हुई हो तो माफ कर दीजिए।”
कमला देवी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ रखा —
“नहीं बेटी, गलती मेरी थी।
अब ये घर सच में घर बनेगा, जब इसमें प्यार रहेगा।”
अगले दिन जब रोहन और आशिमा हाथों में हाथ डालकर निकले,
कमला देवी दरवाजे से उन्हें देख रही थीं।
उनके चेहरे पर एक सच्ची मुस्कान थी।
उन्होंने मन ही मन कहा —
“कभी-कभी मां को भी बेटी से सीख लेनी पड़ती है।”
संदेश:
रिश्तों में दूरी अक्सर “गलतफहमियों” से नहीं,
बल्कि “डर” से आती है।
अगर प्यार और समझदारी से बात की जाए,
तो हर दीवार ढह सकती है —
और हर घर फिर से “घर” बन सकता है।
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