ममता का आँगन
नीलम ट्रेन की खिड़की से बाहर झाँक रही थी। पेड़, खेत, और धूप सब पीछे छूटते जा रहे थे, पर उसका मन कहीं अटका हुआ था।
पाँच साल बाद वह अपने गाँव जा रही थी — वही गाँव जहाँ उसने अपने बचपन के सबसे सुंदर दिन बिताए थे।
माँ-पापा के जाने के बाद नीलम शायद पहली बार मायके की देहरी पार करने जा रही थी।
अब वहाँ उसका छोटा भाई अमित और उसकी पत्नी सुष्मिता रहते थे।
मन में कई तरह के सवाल थे —
“पता नहीं सुष्मिता कैसी होगी? बात-बात पर ताने देने वाली या सच में अपनापन रखने वाली? और अमित... क्या अब भी वही पुराना शरारती भाई है?”
ट्रेन स्टेशन पहुँची तो धड़कन तेज़ हो गई। प्लेटफॉर्म पर किसी ने हाथ हिलाया —
“दीदी!”
नीलम मुस्कुरा उठी। सामने अमित खड़ा था, पहले जैसा ही प्यारा चेहरा, बस अब ज़िम्मेदारी की झलक के साथ।
अमित ने उसका बैग उठाया, बोला —
“दीदी, अब तो शिकायत मत करना कि भाई मिलने नहीं आता। इस बार मैं ही ले आया तुम्हें!”
घर पहुँचे तो दरवाज़ा खुलते ही एक प्यारी-सी मुस्कान ने स्वागत किया।
“नमस्ते दीदी! अंदर आइए... आपको देखकर कितना अच्छा लग रहा है!”
वह थी सुष्मिता — सरल, सुशील, और अपनेपन से भरी।
उसने नीलम का हाथ पकड़कर अंदर बैठाया, पानी दिया और कहा —
“दीदी, आप फ्रेश हो जाइए, मैंने चाय और बेसन के लड्डू बनाए हैं, अमित बता रहे थे कि आपको बहुत पसंद हैं।”
नीलम को एक अजीब-सी सुकून की लहर ने घेर लिया।
जिस घर को वह अब पराया समझने लगी थी, वही घर आज अपनेपन से भर उठा था।
दिन बीतते गए —
कभी सुष्मिता उसे मंदिर घुमा लाती, कभी पुराने पड़ोसियों से मिलवाती, कभी अचानक कह देती —
“दीदी, आज आपकी पसंद की खिचड़ी बनाऊँ?”
और फिर साथ बैठकर टीवी देखते हुए बातें करती — “आपके ज़माने की फिल्में तो कितनी प्यारी होती थीं!”
नीलम के मन में सुष्मिता के लिए गहरा स्नेह उमड़ने लगा।
उसे लगा, जैसे माँ का साया किसी रूप में फिर उसके जीवन में लौट आया हो।
एक शाम छत पर बैठे नीलम बोली —
“सुष्मिता, तुम सच में बहुत भाग्यशाली हो। अमित को इतनी समझदार पत्नी मिली।”
सुष्मिता मुस्कुराई —
“दीदी, मुझे तो लगता है मैं भाग्यशाली हूँ कि मुझे आप जैसी दीदी मिलीं। अमित अक्सर कहते हैं, ‘मेरी दीदी मेरी दूसरी माँ जैसी हैं।’
नीलम की आँखें नम हो गईं। उसे लगा, माँ की ममता इस घर में अब भी ज़िंदा है — बस रूप बदल गया है।
एक हफ्ता पंख लगाकर उड़ गया। लौटने की घड़ी आई तो सुष्मिता ने डिब्बे में कुछ पैकेट रखे।
“दीदी, इसमें आपके लिए अचार और लड्डू हैं। और ये साड़ी माँ की याद में — कृपया मना मत कीजिएगा।”
नीलम बोली —
“सुष्मिता, तुम्हारा अपनापन ही मेरे लिए सबसे बड़ी सौगात है।”
अमित ने कहा —
“दीदी, अगली बार त्योहार पर आना, यह घर तभी पूरा लगता है जब आप होती हैं।”
ट्रेन चली तो नीलम की आँखें भर आईं।
उसने मन ही मन कहा —
“माँ चली गईं, पर मायका अभी ज़िंदा है — सुष्मिता के प्यार में, अमित की
मुस्कान में, उस आँगन में जहाँ ममता अब भी महकती है।”
#FamilyEmotions #IndianRelationships

Post a Comment