हक़ का सवाल – एक बहू की आत्मसम्मान की कहानी

 

Emotional Indian family moment — daughter-in-law standing with her sick father and husband, mother-in-law realizing her mistake, symbolizing respect and equality in family.


"माँ, मैं सोच रही थी कि अगले हफ्ते पापा को यहाँ बुला लूँ, डॉक्टर ने कहा है कि उन्हें आराम और देखभाल दोनों की ज़रूरत है," नेहा ने धीरे से कहा।


माँजी अखबार से नज़र हटाए बिना बोलीं, "क्यों? तुम्हारे भाई नहीं हैं क्या? वो क्या कर रहे हैं?"


"भाई है, माँजी," नेहा बोली, "पर उसकी नौकरी बाहर है, और भाभी के दो छोटे बच्चे हैं। इसलिए डॉक्टर ने कहा है कि कुछ दिन किसी के साथ रहें तो अच्छा होगा।"


"तो तुम चाहती हो कि तुम्हारे पापा यहाँ आकर रहें?" माँजी ने ताने भरे स्वर में कहा।

"हाँ माँजी, बस तब तक जब तक उनकी तबीयत ठीक नहीं हो जाती।"


"नेहा, यह घर मेरे पति का है, और अब मेरे बेटे का। किसी पराई औरत का नहीं, समझीं?"

"पराई?" नेहा को जैसे किसी ने अंदर से झकझोर दिया।

"हाँ, पराई। बहू होकर अपने बाप को यहाँ बसाने चली आई हो? क्या इस घर को धर्मशाला समझ रखा है?"


इतना कहकर माँजी कमरे से निकल गईं।

नेहा की आँखों से आँसू बहने लगे। वो कुछ कह भी नहीं पाई।


शाम को जब विवेक, उसका पति, घर लौटा तो नेहा चुपचाप खाना परोसने लगी।

विवेक ने गौर किया कि नेहा बहुत उदास है।

"क्या हुआ, नेहा? आज तुम बहुत चुप हो।"


"कुछ नहीं," उसने कहा, "बस थोड़ा सिर दर्द है।"


पर विवेक समझ गया कि बात कुछ और है।

"सच-सच बताओ नेहा, क्या हुआ?" उसने पास बैठते हुए कहा।


नेहा की आँखें फिर से भर आईं, "कुछ नहीं विवेक, बस ये कि… मेरे पापा की तबीयत खराब है। मैंने माँजी से कहा था कि कुछ दिन हमारे साथ रह लें, पर उन्होंने कह दिया कि ये घर उनका है और यहाँ किसी 'पराए' को नहीं रखा जा सकता।"


विवेक ने हैरान होकर पूछा, "माँ ने ऐसा कहा?"


"हाँ विवेक," नेहा बोली, "बीस साल हो गए इस घर में आए हुए, पर आज भी मैं पराई ही हूँ। मैंने कभी कुछ नहीं माँगा, बस पापा को थोड़ा सहारा देने की इच्छा जताई थी।"


विवेक कुछ देर चुप रहा, फिर बोला, "नेहा, तुम रो मत। मैं माँ से बात करता हूँ।"


वो उठकर सीधा ड्रॉइंग रूम में गया, जहाँ माँ टीवी देख रही थीं।


"माँ, मुझे आपसे एक बात करनी है," विवेक ने शांत स्वर में कहा।

"क्या बात है, बेटा?"

"माँ, नेहा के पापा बीमार हैं, वो यहाँ कुछ दिन रहना चाहते हैं।"

"तो क्या हुआ? अस्पताल में जगह नहीं है क्या? या तुम्हारी बीवी को अपने मायके की बहुत याद आ रही है?" माँजी ने व्यंग्य से कहा।

"माँ, ऐसी बात नहीं है। वो बुजुर्ग हैं, और नेहा अकेली बेटी है। अगर वो कुछ दिन हमारे साथ रहेंगे तो क्या बिगड़ जाएगा?"


"बिगड़ जाएगा विवेक! अगर आज उसके बाप को रख लिया, तो कल उसका भाई भी आ जाएगा। फिर कहेगी, भाभी भी आ जाएं। इस घर को सराय बना दो तुम लोग!" माँजी ने ऊँची आवाज़ में कहा।


"माँ!" विवेक की आवाज़ सख्त हो गई, "यह घर सिर्फ आपका नहीं है। इस घर में नेहा का भी उतना ही हक़ है जितना मेरा। अगर नेहा का कोई अपने यहाँ कुछ दिन रहना चाहता है, तो उसमें बुरा क्या है?"


"बुरा यह है कि बहुएँ अब सिर चढ़ गई हैं!" माँजी चिल्लाईं, "अपने मायके वालों को लेकर यहाँ राज करना चाहती हैं!"


इतना सुनते ही विवेक ने गहरी साँस ली और कहा,

"माँ, अगर यही बात है तो मैं और नेहा कल ही इस घर से चले जाते हैं। जहाँ इंसानियत और रिश्तों का सम्मान न हो, वहाँ रहना मुश्किल है।"


"विवेक, तू पागल हो गया है क्या?"

"नहीं माँ, बस देर से समझा हूँ। आपने नेहा को हमेशा बहू समझा, बेटी कभी नहीं।"


ये कहते हुए विवेक कमरे में चला गया।

नेहा को उसने कहा, "तुम चिंता मत करो, कल हम अपने लिए किराए का घर देख लेंगे।"


रातभर दोनों को नींद नहीं आई।

दूसरे दिन सुबह-सुबह, जैसे ही वे जाने की तैयारी कर रहे थे, दरवाज़े पर दस्तक हुई।


दरवाज़ा खुलते ही नेहा ने देखा — उसके पापा सामने खड़े हैं, और उनके पीछे माँजी झिझकते हुए मुस्कुरा रही हैं।


"बेटा, तुम कहाँ जा रहे हो?" माँजी बोलीं।

"वहीं जहाँ हमें इज़्ज़त मिले, माँ," विवेक ने कहा।


माँजी की आँखों में आँसू आ गए। "मुझे माफ़ कर दो बेटा, मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी। मुझे एहसास हुआ कि बेटी और बहू में फर्क करके मैं खुद ही रिश्तों को तोड़ रही थी।"


फिर वो नेहा के पापा से बोलीं, "भाई साहब, जब तक आप ठीक नहीं हो जाते, आप यहीं रहिएगा। ये घर आपकी बेटी का भी है।"


नेहा रोते हुए माँजी के पैरों में गिर गई।

"नहीं बहू, अब मुझे 'माँजी' मत कहो, 'माँ' कहो," उन्होंने प्यार से कहा।


विवेक मुस्कुराया, और घर के आँगन में पहली बार सबने साथ बैठकर चाय पी।



सीख:

बहू सिर्फ ज़िम्मेदारियों के लिए नहीं होती, उसका भी इस घर पर उतना ही हक़ होता है जितना किसी 

बेटे या पति का। रिश्ते तभी सच्चे बनते हैं जब उनमें सम्मान और बराबरी का भाव हो।

#ParivarikKahani #BahuKaHaq


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