मां भी इंसान है

 

An elderly Indian woman confidently leaving home for her poetry club, symbolizing self-respect and women’s independence.


“मां, आप फिर से ऑनलाइन ऑर्डर कर रही हैं? यह सब क्या फैशन की चीज़ें ले रही हैं आप? इस उम्र में?”

किचन से निकलते हुए रिया ने अपनी सास, उषा जी से कहा।

उषा जी मुस्कुरा दीं — “रिया, ये नई कुर्ती देखो... कितनी सुंदर है ना?”


रिया ने थोड़ा चिढ़ते हुए कहा —

“मां, अब ये सब आपकी उम्र में अच्छा नहीं लगता। आपकी बहनें भजन मंडली में जाती हैं, मंदिर सेवा करती हैं, और आप ये ऑनलाइन शॉपिंग, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर फोटो डालना — ये सब अब बच्चों को शोभा देता है, आप को नहीं।”


इतना सुनते ही उनके बेटे, अजय ने भी पत्नी का साथ देते हुए कहा —

“हां मां, रिया सही कह रही है। अब आपको आराम करना चाहिए। सोशल मीडिया और फैशन के चक्कर में मत पड़िए।”


उषा जी के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी, पर आँखों में दर्द छिपा हुआ था।

उन्होंने कुछ नहीं कहा और चुपचाप अपना मोबाइल रख दिया।


शाम को जब सभी खाना खा रहे थे, तभी दरवाजे की घंटी बजी।

तीन महिलाएं अंदर आईं — सबकी उम्र उषा जी के आसपास थी।

उनमें से एक बोली — “उषा, चलो ना, आज महिला क्लब की मीटिंग है। तुम्हें कविता पाठ करना था।”


अजय ने भौंहें चढ़ाते हुए कहा —

“मां, अब यह सब रहने दो। क्या जरूरत है इन सब नाटक की? लोग क्या कहेंगे कि 60 साल की औरत कविता प्रतियोगिता में जा रही है!”


अबकी बार उषा जी ने धीरे-धीरे लेकिन दृढ़ स्वर में कहा —

“बेटा, जब तेरे पापा का निधन हुआ था, तब मैं 48 साल की थी। तब मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था।

दिन भर घर में अकेली दीवारों से बातें करती थी। तुम दोनों अपने काम में व्यस्त थे, और मैं धीरे-धीरे भीतर से टूट रही थी।


एक दिन तुम्हारी स्कूल की पुरानी टीचर मिलीं। उन्होंने कहा — ‘उषा, अपनी जिंदगी में फिर से कुछ करो... अपने शौक जियो।’

बस उसी दिन से मैंने लिखना शुरू किया — छोटी-छोटी कविताएं, जो मेरे दिल की आवाज़ थीं।


धीरे-धीरे मैंने अपने जैसे और लोगों को खोज लिया — जो अपने भीतर फिर से मुस्कुराना चाहते थे।

हम सब हर महीने एक साथ मिलते हैं, बातें करते हैं, हंसते हैं, गाते हैं...

किसी को भी अब यह महसूस नहीं होता कि वो ‘अकेला’ है।”


रिया और अजय दोनों शांत थे।

उषा जी ने आगे कहा —

“बेटा, मैं मां जरूर हूं, लेकिन मैं भी एक इंसान हूं।

तुम दोनों को जब अपने शौक पूरे करने का अधिकार है — तो मुझे क्यों नहीं?

तुम दोनों अपने मोबाइल में दिनभर लगे रहते हो — तब किसी को समाज की परवाह नहीं होती।

पर जब मैं अपनी खुशियां ढूंढती हूं, तो सबको समाज याद आ जाता है!”


कुछ देर का सन्नाटा छा गया।

फिर उषा जी ने मुस्कुराते हुए कहा —

“अगर तुम्हें लगता है कि यह सब मेरी उम्र को शोभा नहीं देता, तो ठीक है — पर मैं अब वो उषा नहीं जो किसी की बातों से खुद को बदल दे।

मैं अब अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीऊंगी।”


इतना कहकर उन्होंने अपनी फाइल उठाई, साड़ी का पल्लू ठीक किया, और बोलीं —

“कविता का विषय है — ‘औरत की उम्र नहीं होती, बस हौसले होते हैं।’”


रीया और अजय बस उन्हें जाते हुए देखते रह गए —

दरवाजे के उस पार एक मां नहीं, बल्कि एक आत्मनिर्भर औरत निकल चुकी थी...

जो अब किसी की परछाई नहीं, खुद की रौशनी थी।


संदेश:

> “हर औरत को अपनी जिंदगी 

जीने का हक है — उम्र, समाज और रिश्ते सिर्फ बहाने हैं।”

#मांकीकहानी #औरतकीपहचान



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