बहू भी इंसान है, रोबोट नहीं

 

An Indian working woman and her mother-in-law share a warm emotional moment in their home after understanding each other’s struggles and respect.


शाम के 7 बज चुके थे।

रीमा ने जैसे ही ऑफिस की फाइल बंद की, घड़ी देखी और घबराते हुए बोली —

“ओफ्फो! आज फिर देर हो गई… मम्मी जी फिर डाँटेंगी।”


वो जल्दी-जल्दी बस से उतरकर घर की तरफ भागी।

घर का दरवाज़ा खुलते ही सास कमला देवी की आवाज़ आई —

“लो, आ गई बहू! अब तो खाना ठंडा हो गया होगा। ये ऑफिसवालियाँ बहुएँ भी न, घर की सुध ही नहीं रहती।”


रीमा मुस्कराने की कोशिश करती हुई बोली,

“मम्मी जी, आज ऑफिस में मीटिंग थी, इसलिए थोड़ा लेट हो गया।”


“हां हां, बहाने तो हजार हैं तुम्हारे पास,”

कमला देवी बोलीं —

“तुम्हारे ससुर भूखे बैठे हैं, और मैं तो दो घंटे से तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ।

इतना बड़ा घर है, लेकिन एक बहू घर संभालने लायक नहीं।”


रीमा ने तुरंत बैग रखा और रसोई की तरफ दौड़ी।

ससुर जी ने धीरे से कहा,

“अरे कमला, रीमा भी तो इंसान है, थक जाती होगी। ज़रा बैठने तो दो।”

कमला देवी बोलीं,

“हाँ, हाँ, मुझे ही गलत ठहरा दो। पहले के ज़माने में औरतें दिन-रात काम करती थीं, तब तो किसी ने कुछ नहीं कहा।”


रीमा ने चुपचाप खाना बनाया, पर अंदर ही अंदर वो बहुत टूट चुकी थी।

खाना खाते हुए पति सौरभ बोला,

“रीमा, माँ को भी थोड़ा टाइम दे दिया करो, वो अकेलापन महसूस करती हैं।”

रीमा बोली,

“सौरभ, मैं कोशिश करती हूँ, लेकिन ऑफिस का काम, घर का काम, सब कुछ मैं अकेली नहीं संभाल पा रही हूँ।”

सौरभ ने बिना उसकी तरफ देखे कहा,

“थोड़ा एडजस्ट करना सीखो। हर औरत को करना पड़ता है।”


रीमा के गले में कुछ अटक गया, पर उसने कुछ नहीं कहा।

रात को जब सब सो गए, तो वो बालकनी में बैठी सोचने लगी —

“क्या सच में औरत का जन्म सिर्फ सबकी सेवा करने के लिए हुआ है? क्या मेरा कोई वजूद नहीं?”


अगली सुबह वो ऑफिस जाने लगी तो सास बोलीं,

“आज घर में तेरे जेठ-जेठानी आने वाले हैं, छुट्टी ले ले। खाना भी तू ही बनाएगी।”

रीमा ने नम्रता से कहा,

“मम्मी जी, आज मेरी एक जरूरी मीटिंग है। छुट्टी नहीं ले सकती।”

कमला देवी भड़क उठीं,

“इतनी बड़ी बात क्या है उस मीटिंग में? तेरी जेठानी आएंगी, खाली हाथ बैठें क्या?”


रीमा ने गहरी साँस लेकर कहा —

“मम्मी जी, मैं रोज़ कोशिश करती हूँ कि आपको कोई शिकायत न हो,

लेकिन मैं भी एक इंसान हूँ, मशीन नहीं।

अगर मैं ऑफिस नहीं जाऊँगी तो मेरी सैलरी कटेगी,

और इसी सैलरी से तो घर की ईएमआई भरते हैं।”


कमला देवी कुछ पल चुप रहीं,

फिर बोलीं — “बहू, जब तुम इस घर में आई थीं, मैंने सोचा था तुम मेरी बेटी जैसी होओगी।

पर अब लगता है, ऑफिस ने तुमसे हमारा रिश्ता ही छीन लिया।”


रीमा के आँखों में आँसू आ गए —

“रिश्ता कोई ऑफिस नहीं छीनता, मम्मी जी।

रिश्ता समझ और सम्मान से चलता है।

मैं आपकी इज्जत करती हूँ, पर मैं भी चाहती हूँ कि आप मेरे काम और थकान की कद्र करें।”


इतना कहकर वो ऑफिस चली गई।

कमला देवी दिनभर सोचती रहीं,

शाम को जब रीमा वापस आई तो कमला देवी ने दरवाज़े पर मुस्कराकर कहा —

“आ जा बहू, आज मैंने तेरे पसंद के पराठे बनाए हैं।

तू ऑफिस से थक जाती होगी, आज खाना मैं बनाऊँगी।”


रीमा मुस्कराई — “मम्मी जी, आपको कैसे पता चला कि मुझे आलू पराठे पसंद हैं?”

कमला देवी बोलीं —

“आज पहली बार मैंने तेरी आँखों में देखा,

और समझ आया कि मेरी बहू भी एक इंसान है, कोई मशीन नहीं।”


रीमा ने झुककर सास के पैर छुए,

कमला देवी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ रखा —

“बहू, अब से हम दोनों मिलकर घर और रिश्तों का ख्याल रखेंगे।”


रीमा की आँखें भर आईं —

“धन्यवाद मम्मी जी, यही तो चाहिए था — साथ, समझ और सम्मान।”



 कहानी का संदेश:

घर तभी खुशहाल बनता है जब हर सदस्य एक-दूसरे की थकान, भावनाओं और मेहनत को समझे।

बहू भी घर का हिस्सा है, बोझ नहीं।

#GharKiKahani #RespectForWomen


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