मूल्य समझना सीखो
"नेहा, तुमसे तो बात करना ही बेकार है!"
रमेश गुस्से में बोले और कप को ज़ोर से टेबल पर पटक दिया।
"अब फिर क्या हो गया?"
नेहा ने धीमे स्वर में पूछा, जो हमेशा की तरह अपने पति के गुस्से को शांत करने की कोशिश करती थी।
"क्या हो गया? आज फिर तुमने मेरी फाइलें रसोई में रख दीं! तुम्हें पता है, सुबह मीटिंग थी, मुझे आधा घंटा सिर्फ फाइल ढूंढने में चला गया!"
"अरे, कल बच्चों ने टेबल पर जूस गिरा दिया था। मैंने सोचा फाइल गंदी न हो जाए, इसलिए रख दी थी..."
"बस! तुम्हारा यही तो प्रॉब्लम है नेहा — हर बात में सफाई, बचत, और सावधानी! ज़रा भी आधुनिकता नहीं!"
रमेश झल्लाते हुए बोले।
नेहा ने चुपचाप उनकी ओर देखा।
"साफ-सफाई रखना और चीज़ों का ध्यान रखना बुरा तो नहीं है?"
"बुरा नहीं, लेकिन ओवर करना भी सही नहीं!"
रमेश अब भी खीझे हुए थे।
"कल जब मम्मी आई थीं, तुमने उनके लिए फ्रूट सलाद बनाया, लेकिन प्लेट पुरानी स्टील की रख दी! थोड़ी तो शोभा हो घर की!"
नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा,
"वही प्लेट सबसे साफ थी, और वैसे भी मम्मी को दिखावा पसंद नहीं।"
रमेश ने सिर पकड़ लिया।
"तुम्हें हर बात में बचत का पाठ पढ़ाना होता है। कपड़े, बिजली, पानी, सबमें कटौती! कभी अपने लिए भी तो सोचो।"
"अपने लिए ही तो सोचती हूँ रमेश..."
नेहा ने धीमे से कहा, "बिजली बचाने से, पानी बचाने से, पैसा नहीं — जीवन की आदतें बनती हैं।"
"अच्छा छोड़ो ये ज्ञान, अब चाय बना दो।"
रमेश ने बात खत्म करते हुए कहा।
"चाय गैस पर रख दी है," नेहा बोली,
"बस पाँच मिनट में तैयार हो जाएगी।"
रमेश बड़बड़ाते हुए अखबार उठाने लगे।
थोड़ी देर में उनकी नज़र अख़बार की एक ख़बर पर पड़ी —
"शहर में पानी की भारी किल्लत, टैंकरों की मांग बढ़ी।"
उन्होंने अखबार नीचे रखा और रसोई की ओर देखा।
नेहा बाल्टी में टपकते नल के नीचे एक छोटा सा कटोरा रख रही थी।
"यह क्या कर रही हो?" उन्होंने पूछा।
"यह जो टपकता पानी है न, इसे मैं पौधों में डाल देती हूँ। एक दिन में आधा बाल्टी पानी बच जाता है।"
रमेश कुछ नहीं बोले।
पहली बार उन्हें महसूस हुआ कि नेहा की "बचत" में भी एक गहराई है।
शाम को वे ऑफिस से लौटे तो देखा, नेहा कपड़े सुखा रही थी।
"आज बिजली नहीं जलाई?" रमेश ने पूछा।
"नहीं, धूप अच्छी है तो ड्रायर की जरूरत नहीं पड़ी। वैसे भी बिजली का बिल कम आएगा।"
रमेश ने धीरे से मुस्कुराया।
"तुम्हें तो सरकार 'बेस्ट होम मेकर अवार्ड' दे दे!"
नेहा खिलखिलाकर हँसी,
"अरे नहीं, बस आदत है चीज़ों को संभालने की।"
अगले दिन रमेश के ऑफिस में "बेस्ट प्रोजेक्ट मैनेजर" का अवॉर्ड सेरेमनी था।
उन्होंने सूट पहना और मुस्कुराते हुए नेहा से बोले —
"आज की मीटिंग बहुत अहम है, टाइम से तैयार कर दो नाश्ता।"
नेहा ने झटपट पराठे और लस्सी तैयार कर दी।
"सफलता के लिए पेट भरा होना ज़रूरी है!" उसने मज़ाक किया।
शाम को रमेश जब घर लौटे तो उनके हाथ में अवॉर्ड था।
"नेहा!" उन्होंने आवाज़ लगाई।
"देखो, तुम्हारे पति बेस्ट प्रोजेक्ट मैनेजर बन गए!"
नेहा ने गर्व से कहा,
"वाह! बधाई हो!"
रमेश ने हल्के से कहा,
"जानती हो, आज बॉस ने कहा — ‘तुम्हारे प्रोजेक्ट में जो व्यवस्था है, वो ग़ज़ब की है।’ तब मुझे एहसास हुआ, ये व्यवस्था, ये अनुशासन… सब तुमसे सीखा है।"
नेहा मुस्कुरा दी।
"तो अब मेरी बचत, सावधानी, और सफ़ाई बुरी नहीं लगी?"
रमेश ने कहा,
"नहीं, अब समझ गया — यही असली संपत्ति है। पैसे से बड़ी।"
नेहा ने चाय की ट्रे लाते हुए कहा,
"तो आज चाय मैं बनाऊँ या आप?"
रमेश हँस पड़े —
"आज तो दोनों मिलकर बनाएँगे... क्योंकि असली स्वाद साथ में है!"
और रसोई से आती हँसी की आवाज़ पूरे घर में फैल गई।
संदेश:
रिश्तों में समझ सबसे बड़ी बचत है। प्यार, धैर्य और आदत — यही जीवन को खूबसूरत बनाते हैं।
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