ममता की नई परिभाषा
संध्या अपने पति आरव के साथ पहली बार ससुराल की चौखट पर कदम रख रही थी। चावल का कलश गिराकर जब उसने घर में प्रवेश किया, तो सबके चेहरों पर खुशी थी — सिवाय एक के।
आरव की माँ, कमला देवी, जिनकी आँखों में अपनापन से ज़्यादा अधिकार झलक रहा था।
वो हर बात में निर्देश दे रही थीं — “पाँव ऐसे रखो, नजर नीचे रखो, ये रस्म ऐसे करनी है।”
संध्या सब कुछ चुपचाप करती रही। तभी आरव ने धीरे से उसके कान में कहा,
“माँ थोड़ी सख्त हैं, पर बुरी नहीं। बस जो वो कहें, वही करना… घर में शांति बनी रहेगी।”
संध्या ने हल्की मुस्कान दी, लेकिन दिल में हल्का डर बैठ गया।
पहले कुछ दिन..
घर बड़ा था, लेकिन माहौल उतना ही भारी।
कमला देवी सुबह से रात तक पूरे घर को अपने नियमों में बाँधे रखतीं।
संध्या ने देखा — घर में एक बंद कमरा था, जहाँ न तो कोई जाता था, न किसी को जाने की अनुमति थी।
एक बार उसने झाँकने की कोशिश की, तो कमला देवी की आवाज़ गूंजी —
“संध्या, ज्यादा छानबीन करने की ज़रूरत नहीं है। जो कहा जाए वही करो।”
संध्या चुप हो गई। लेकिन मन में सवाल उठता रहा — उस कमरे में आखिर है कौन?
एक दोपहर जब सब सो रहे थे, और घर में सन्नाटा था, संध्या दबे पाँव उस कमरे तक पहुंची।
दरवाज़ा थोड़ा खुला था।
अंदर देखा — एक बुज़ुर्ग महिला खाट पर लेटी थीं, बेहद कमजोर, जिनके बाल उलझे थे, कपड़े मैले और पास में एक थाली रखी थी जिसमें ठंडा दलिया रखा था।
संध्या की आँखों में आँसू आ गए।
वह और पास गई — तभी पीछे से आवाज़ आई,
“संध्या! तुम यहाँ क्या कर रही हो?”
पीछे से आवाज़ आई — वह आरव था, उसका पति।
संध्या ने काँपती आवाज़ में पूछा,
“ये कौन हैं आरव?”
आरव ने गहरी सांस ली, “ये मेरी दादी हैं... और माँ इन्हें अपने कमरे में नहीं आने देतीं।”
“क्या? लेकिन क्यों?”
“क्योंकि दादी ने खेतों की जमीन के कागज़ों पर साइन नहीं किए। माँ चाहती हैं वो सब उनके नाम कर दें।
पर दादी कहती हैं — ‘जब तक ज़िंदा हूँ, अपने बेटे और पोते का हक़ किसी को नहीं दूँगी।’
तभी से उन्हें इस कमरे में बंद कर दिया गया है।”
संध्या की आँखें भर आईं, “इतना बड़ा अन्याय! और तुम सब चुप बैठे हो?”
आरव ने सिर झुका लिया, “पापा ने एक बार विरोध किया था, तो माँ ने ज़हर खा लेने की धमकी दे दी। तब से कोई कुछ नहीं बोलता।”
संध्या ने धीरे से कहा,
“आरव, अगर कोई आवाज़ नहीं उठाएगा, तो ये अत्याचार कभी खत्म नहीं होगा।
आज जो तुम्हारी दादी के साथ हो रहा है, कल तुम्हारे पिता या हमारे साथ भी हो सकता है।”
आरव चुप रहा, लेकिन उसकी आँखों में अपराधबोध झलकने लगा।
संध्या ने उसी शाम सब कुछ बदलने का निश्चय किया।
वह दादी के पास गई, उनके हाथ-पाँव धोए, नए कपड़े पहनाए, बाल सवारे और उन्हें बैठक में ले आई।
कमला देवी जैसे ही नीचे आईं, उनका चेहरा क्रोध से लाल हो गया।
“किसने इन्हें यहाँ लाने की हिम्मत की?”
संध्या ने शांति से जवाब दिया,
“मैंने, मम्मी जी।”
“किससे पूछकर?”
“मैं ही लेकर आई हूँ, मम्मी जी। क्योंकि मैं इस घर की बहू हूँ — और इस घर का हिस्सा भी हूँ।”
कमला देवी गरज उठीं — “तुम्हें नहीं पता, मैं क्या कर सकती हूँ!”
संध्या ने दृढ़ स्वर में कहा,
“मुझे पता है, मम्मी जी — आप माँ हैं, इसलिए मैं आपके हर आदेश का सम्मान करती हूँ।
लेकिन मैं अन्याय का साथ नहीं दे सकती।
दादी इस घर की सबसे बड़ी हैं, और इन्हें अपमानित करना ईश्वर का अपमान है।
आज से ये मेरे कमरे के पास रहेंगी, पूरे सम्मान के साथ।”
पूरा घर सन्न था।
आरव और उसके पिता, दोनों चुपचाप सब देख रहे थे, लेकिन इस बार उनके चेहरों पर डर नहीं, साहस था।
कमला देवी ने चारों ओर देखा — सबकी निगाहें उनके सामने झुकी नहीं थीं।
वो धीमे कदमों से पीछे हट गईं और पहली बार कुछ नहीं बोलीं।
अगले दिन, वही कमरा जो कभी बंद था, अब खुला था।
दादी मुस्कुरा रही थीं, संध्या उनके बालों में तेल लगा रही थी, और कमला देवी चुपचाप रसोई में उनके लिए खाना बना रही थीं।
संध्या के पास आईं और कुछ देर तक चुपचाप खड़ी रहीं।
उनकी आँखों में गुस्से की जगह अब उलझन थी।
उन्होंने धीमे स्वर में कहा,
> “बहू... तुम्हें नहीं पता, मुझे अपनी माँ जैसी औरत बनने में क्या-क्या सहना पड़ा था।
मैं नहीं चाहती थी कि कोई मुझे कमज़ोर समझे।
पर शायद… मैंने हद पार कर दी।”
संध्या चुपचाप सुनती रही।
थोड़ी देर बाद कमला देवी ने काँपते स्वर में कहा,
> “शायद... तुम सही थी, संध्या। मैं बदलने की कोशिश करूँगी।”
संध्या मुस्कुराई, “गलती करना बुरा नहीं होता, मम्मी जी… गलती को समझ लेना महानता होती है।”
घर में पहली बार शांति और ममता दोनों एक साथ थीं।
कमला देवी के चेहरे पर कठोरता की जगह एक कोमल मुस्कान थी।
संदेश:
कभी-कभी बदलाव बड़े कामों से नहीं, एक
सच्ची हिम्मत से आता है।
एक बहू भी घर की तकदीर बदल सकती है — अगर वो सच और इंसाफ के लिए खड़ी हो जाए।
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