सच का आईना

 

बहू अपनी सास को चाय का प्याला थमा रही है। दोनों के चेहरों पर भावनाओं की झलक है — सास की आंखों में पछतावा और बहू के चेहरे पर अपनापन।


सुबह के आठ बजे थे। रसोई से राधा के बर्तनों की खटखट सुनाई दे रही थी।

मालती देवी अखबार हाथ में लिए सोफे पर बैठी थीं। तभी राधा की आवाज आई—

“मां जी, आपकी चाय रख दी है, ठंडी न हो जाए।”


मालती बोलीं, “हाँ, रख दो टेबल पर। वैसे आज तुम जल्दी उठ गईं, कोई काम था क्या?”

राधा बोली, “जी मांजी, आज बिट्टू का प्रोजेक्ट बनाना है, स्कूल में जमा करना है।”


मालती बोलीं, “हां-हां, बच्चे के लिए तो सब कर लो, लेकिन मेरे कहने पर कभी काम जल्दी नहीं होता।”

राधा चुप रही। वो जानती थी, सास की बातों का जवाब देना आग में घी डालने जैसा होगा।


थोड़ी देर बाद मालती देवी अपने कमरे से दो कुर्ते और तीन ब्लाउज लेकर आईं—

“बहू, ये देखो, थोड़ा सिल देना। दरजी बहुत पैसे मांगता है। वैसे तुम्हारे पास तो मशीन है ही।”

राधा ने कपड़े ले लिए और बोली, “ठीक है मांजी, शाम तक कर दूंगी।”


मालती बोलीं, “बस ध्यान रखना, ये मेरे ब्लाउज हैं, तुम्हारे नहीं। पिछली बार देखा था, मेरी साड़ी तुमने पहन ली थी।”

राधा चौंक गई—“मांजी! वो तो आपने ही कहा था ‘बहू, वो नीली साड़ी निकाल देना पहन लूंगी’, इसलिए मैंने धोकर रख दी थी।”

मालती बोलीं, “अब बहाने मत बनाओ, मुझे सब याद रहता है।”

राधा फिर चुप हो गई।



रात को जब राधा ब्लाउज सी रही थी, तभी उसका पति अमित आया—

“क्या मां फिर कुछ बोलीं?”

राधा बोली, “हर दिन की तरह, पर अब आदत हो गई है।”

अमित बोला, “तुम परेशान मत हुआ करो। मैं मां से बात करूंगा।”

राधा मुस्कुरा दी, “नहीं, रहने दो, मैं संभाल लूंगी।”



कुछ दिन बाद मालती देवी की छोटी बेटी कुसुम मायके आई।

“अरे मां, मेरी सहेली की शादी है, तीन साड़ियां प्रेस करनी हैं, राधा से कह दो ना।”

मालती बोलीं, “हाँ, क्यों नहीं! बहू तो सब काम कर लेती है।”

राधा मुस्कुरा कर बोली, “जी मम्मीजी, कर दूंगी।”


कुसुम बोली, “दीदी, मैं जल्दी में हूं, कल तक दे देना।”

राधा बोली, “ठीक है।”


अगले दिन कुसुम साड़ियां लेने आई। तभी बिट्टू बोला, “बुआ, ये तो दादी की साड़ियां हैं ना? कल दादी ने कहा था ये उनकी हैं।”

कुसुम झेंप गई। राधा ने धीरे से कहा, “बिट्टू, बच्चों को बीच में नहीं बोलना चाहिए।”


पर मन में राधा समझ गई कि धोखा किसने किया है।

फिर भी उसने कुछ नहीं कहा।



कुछ दिन बाद राधा की सास अपने भाई के घर गईं। वहां सबके सामने बोलीं—

“हमारी बहू तो कुछ काम की नहीं, बस दिखावा करती है।”

उधर पड़ोस की शर्मा आंटी ने यह बात राधा को बता दी।


शाम को मालती देवी घर लौटीं तो राधा ने कहा,

“मांजी, आपने जो कहा, वो मुझे बुरा नहीं लगा, पर सोचिए, अगर मैं आपके बारे में बाहर कुछ कह दूं तो आपको कैसा लगेगा?”


मालती बोलीं, “मैंने तो मज़ाक में कहा था।”

राधा ने शांति से कहा, “मजाक में कहा गया झूठ भी किसी का विश्वास तोड़ देता है, मांजी।”


मालती कुछ देर चुप रहीं।



कुछ महीने बीते। मालती देवी बीमार पड़ीं।

राधा दिन-रात उनकी सेवा करती रही। दवा, खाना, मालिश—सब कुछ।

एक दिन मालती ने राधा का हाथ पकड़ लिया,

“बहू, तूने कभी कुछ नहीं कहा, जबकि मैंने तुझसे जाने कितनी बार बुरा कहा। तूने सब सह लिया।”

राधा बोली, “मांजी, रिश्ते शब्दों से नहीं, कर्म से बनते हैं।”


मालती की आंखों में आंसू थे।

उन्होंने कहा, “मैंने धोखे से रिश्ते निभाने की कोशिश की थी, और तूने सच्चाई से।

अब मुझे समझ आया कि सच का आईना हमेशा साफ होता है।”



कुछ दिन बाद जब कुसुम फिर घर आई, तो उसने देखा कि उसकी मां राधा के लिए अपने हाथों से पराठे बना रही हैं।

कुसुम बोली, “मां, अब तो आप बहू को बहुत प्यार करती हैं।”

मालती मुस्कुराईं, “हाँ बेटी, अब समझ गई हूं—बहू कोई पराई नहीं होती, बस हमें अपने दिल का आईना साफ रखना चाहिए।”


संदेश:

रिश्ते धोखे या तुलना से नहीं, सच्चाई और सम्मान से निभते हैं।

जो दिल साफ रखे, वही परिवार को जोड़ता है।


#प्यारऔरसच्चाई #रिश्तोंकीगर्मी


No comments

Note: Only a member of this blog may post a comment.

Powered by Blogger.