❝ मा का आँगन ❞




सुबह के आठ बजे थे।

संध्या, जो अब एक विवाहित महिला और दो बच्चों की माँ थी, रसोई में चाय बना रही थी।

उसका बेटा अर्जुन स्कूल के लिए तैयार हो रहा था, और बेटी अन्वी अपनी गुड़िया के साथ खेल रही थी।


तभी फोन की घंटी बजी।

फोन उसकी छोटी बहन सविता का था, जो शादी के बाद अपने पति और दो बच्चों के साथ अलग शहर में रहती थी।


“दीदी, कैसे हो आप? मानव भाई ठीक हैं ना?”

संध्या मुस्कुराई, “हाँ सवी, अब ठीक हैं। उम्र भी तो हो गई है, डॉक्टर ने आराम करने को कहा है।”


सविता बोली, “मैं सोच रही थी, कुछ दिन के लिए आ जाऊँ। बच्चों की छुट्टी के टाइम पर आ जाऊँ तो आप भी अकेले नहीं रहेंगी।”

संध्या थोड़ी हँसते हुए बोली, “तेरा अपना घर और परिवार है, बच्चों की पढ़ाई है। यहाँ क्या करेगी?”


सविता बोली, “दीदी, घर तो चलता रहेगा। पर जब से माँ नहीं रही, मन को बहुत बेचैनी रहती है। ऐसा लगता है जैसे माईका अब बस यादों में रह गया है।”


संध्या ने गहरी साँस ली, “मा के जाने के बाद घर तो खाली हो गया है, सवी। अब तो बस उसकी यादें हैं, और तेरी दीदी।”



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दो दिन बाद, सविता ने बिना बताए संध्या के घर आना तय किया।

संध्या दरवाज़ा खोलते ही चौंक गई — “अरे सवी! तू? बिना बताये चली आई?”

सविता मुस्कुराई — “बचपन में जब पापा से डांट पड़ती थी, तब भी तो यहीं भाग आती थी।”


संध्या हँस पड़ी — “सच कहती है तू, उस वक्त माँ कहती थी, ‘जहाँ बेटी का दिल हो, वही उसका घर है।’”



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रसोई में दोनों बहनें साथ बैठकर चाय पी रही थीं।

सविता ने पूछा, “दीदी, मानव भाई अब पहले जैसे हँसते क्यों नहीं हैं?”

संध्या ने धीरे कहा, “अरे सवी, वे ठीक हैं। बस उम्र और काम का बोझ है। पर हाँ, माँ की कमी हम सबको बहुत महसूस होती है। कभी-कभी मैं भी उनकी याद में पुराने फोटो देख लेती हूँ।”


सविता बोली, “दीदी, माँ सबको जोड़कर रखती थीं। अब लगता है, हम सब उनकी यादों में ही रह गए हैं।”

संध्या ने कहा, “सच्चाई यही है। रिश्ते सिर्फ बातें करने से नहीं बनते, उन्हें निभाने के लिए थोड़ा वक्त और अपनापन चाहिए।”



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संध्या के बच्चे अर्जुन और अन्वी, सविता के बच्चों के साथ मिलकर दौड़-भाग और हँसी-खुशी के खेल में शामिल हो गए।

बच्चों ने मिलकर घर के आंगन में छोटे-छोटे खेल खेले — दौड़, लुकाछिपी और गुड़िया की दुकान।

संध्या और सविता बैठकर उन खेलों को देखते रहे, और हँसी के बीच मां की यादें फिर से ताज़ा हो गईं।


सविता बोली, “दीदी, बचपन में हम सभी माँ के साथ यही खेल खेलते थे। याद है, बारिश के दिन आंगन में खेलना और माँ हमें नहलाकर चाय देती थीं?”

संध्या मुस्कुराई, “हाँ, और कभी-कभी हमें शिकायत करते हुए भी हँसते हुए डांटती थीं। उनकी हँसी अब भी कानों में गूंजती है।”



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शाम को पूजा थी।

सविता बोली, “दीदी चलिए, साथ चलते हैं।”

संध्या बोली, “नहीं, अब तो किसी से मिलने का मन ही नहीं करता।”

सविता ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, “चलो न दीदी, बाहर निकलो। मन भी बदल जाएगा।”


दोनों बहनें मंदिर गईं। वहाँ पुराने पड़ोसी मिले — सबने मुस्कुराकर कहा, “अरे सविता आई है? कितनी बड़ी हो गई है!”

संध्या के चेहरे पर भी बहुत दिनों बाद मुस्कान आई।



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रात को जब दोनों छत पर बैठीं, सविता बोली,

“दीदी, याद है बचपन में माँ कैसे सबको एक थाली में खिलाती थीं?

और अगर कोई ज़रा नाराज़ होता, तो कहती — ‘रूठो मत, प्यार में भी तो स्वाद है।’”


संध्या ने कहा, “हाँ, और जब भी बारिश होती थी, माँ कहती — ‘बूंदों में आशीर्वाद होता है।’

आज भी जब बारिश की गंध आती है, तो लगता है, जैसे माँ पास ही है।”



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अगले दिन सविता ने घर के कोने-कोने की सफाई की।

माँ की पुरानी तस्वीर पर फूल चढ़ाए।

दीदी के लिए रसोई में हलवा बनाया — वही जो माँ हर त्योहार पर बनाती थीं।

संध्या की आँखें नम हो गईं।

“सवी, तूने तो घर में फिर से माँ की खुशबू ला दी।”


सविता बोली, “दीदी, माँ ने जो सिखाया है, वो अगर हम भूल जाएँ, तो उनका जाना व्यर्थ हो जाएगा।”



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रात को जब सविता अपने कमरे में जा रही थी, मानव बोले,

“सविता, तू आई है तो घर में रौनक सी हो गई है। तू नहीं जानती, तेरी दीदी तेरे बिना कितनी अकेली थी।”

सविता बोली, “मानव भाई, दीदी मेरी माँ जैसी हैं, उन्हें अकेला नहीं रहने दूँगी अब।”



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चार दिन कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला।

जाने से पहले सविता बोली, “दीदी, मैं हर महीने आने की कोशिश करूँगी।”

संध्या ने कहा, “नहीं रे, बस फोन कर लिया कर, वही काफी है।”

सविता मुस्कुराई, “नहीं दीदी, कुछ रिश्ते फोन से नहीं, गले लगाकर निभाए जाते हैं।”



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सविता के जाने के बाद संध्या की आँखों में आँसू थे,

पर इस बार वे उदासी के नहीं, सुकून के थे।

उसे लगा, जैसे माँ फिर से उसके पास आ गई हों।



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💭 सीख:


आजकल सब व्यस्त हैं, पर रिश्तों के लिए थोड़ा समय निकालना जरूरी है।

थोड़ी सी बातें, गले लगना और यादें साझा करना, दिल को और मन को सुकून देता है।


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