माँ का तोहफ़ा

 

Three Indian women — daughter-in-law, her mother, and mother-in-law — share an emotional closeup moment of love and togetherness in a warmly lit kitchen.


सुबह के सात बजे थे। घर में हल्की-हल्की रसोई की खुशबू फैल रही थी। रसोई में से आने वाली आवाज़ों से पता चल रहा था कि आज मम्मी जी बहुत खुश हैं।

मैंने घड़ी देखी — सात बजकर दस मिनट। आम दिनों में तो इस समय तक मैं ही उन्हें उठाकर कहती, “मम्मी जी, चाय बना लूं?”

पर आज?

आज तो वो मुझसे पहले उठ चुकी थीं।


मैं किचन की तरफ गई, देखा — उन्होंने सारी तैयारियाँ कर ली थीं। बेसन छल रहा था, सब्जियाँ काटी जा चुकी थीं, और गैस पर घी में कुछ तलने की खुशबू हवा में घुल रही थी।


“अरे मम्मी जी, आज इतनी सुबह-सुबह ये सब?” मैंने पूछा।

उन्होंने मुस्कुराकर कहा, “अरे बेटा, आज मेरी एक बहुत प्यारी फ्रेंड आने वाली हैं। बड़ा मन था कि अपने हाथों से कुछ अच्छा बनाऊँ।”


मैं मुस्कुराई, पर अंदर कुछ भारी-सा लगा।

क्योंकि आज... मेरी माँ का जन्मदिन था।


शादी के बाद यह पहला जन्मदिन था जब मैं माँ के साथ नहीं थी।

पापा ऑफिस टूर पर थे, और भाई तो पिछले साल ही बाहर नौकरी करने चला गया था।

कल रात ही सोच रही थी कि सुबह मम्मी जी से मायके जाने की बात कहूँगी।


पर मम्मी जी ने तो पहले ही कह दिया था, “कल लंच में मेरी फ्रेंड आ रही हैं, और शाम को हम सब उनके साथ पार्क चलेंगे। बहुत दिन बाद बाहर जाने का मन है।”


मैं बस हल्के से मुस्कुराई थी, लेकिन अंदर कहीं मन बैठ गया था।

कितना मन था माँ को सरप्राइज देने का, केक काटने का, उन्हें गले लगाने का...

पर अब वो सब नहीं हो पाएगा।



सुबह बीत गई। दोपहर तक पूरा घर महकने लगा — खीर, पुलाव, पनीर, और उनके हाथों की खास गुजिया।

मैंने भी सजावट में मदद की, लेकिन चेहरा बनावटी मुस्कान से ढका हुआ था।

दोपहर के करीब साढ़े बारह बजे डोरबेल बजी।


“बेटा, दरवाज़ा तुम खोलो,” मम्मी जी ने कहा।


मैंने पल्लू ठीक किया और दरवाज़ा खोला।

सामने एक बड़ा-सा गुलदस्ता था — रंग-बिरंगे फूलों से भरा।

उसके पीछे जो चेहरा झाँका, उसे देखकर मैं वहीं रुक गई।


“माँ!!!”


मेरी आँखें नम हो गईं, और होंठों पर सिर्फ़ यही शब्द अटककर रह गए।

माँ मुस्कुराईं और बोलीं, “सरप्राइज़!”


मैं तो बस देखती रह गई।

माँ ने गुलदस्ता मेरी ओर बढ़ाया और बोलीं, “बेटा, पहले अपनी सासू माँ को तो बुलाओ, हमें भी तो मिलना है।”


“अरे, अरे... आप दोनों एक-दूसरे को जानती हैं?” मैंने हैरानी से पूछा।


मम्मी जी हँस पड़ीं, “अरे, यही तो मेरी फ्रेंड हैं, जिनके आने की बात कल बता रही थी!”


मैं अवाक रह गई।

माँ और मम्मी जी दोनों एक-दूसरे को देखकर मुस्कुरा रही थीं।


माँ ने कहा, “हम दोनों कई साल पहले एक मंदिर में मिली थीं, और तब से संपर्क में हैं। बस, तुम्हारी शादी के बाद पता चला कि मेरी दोस्त अब मेरी समधन बन गई!”


मम्मी जी बोलीं, “सोचा, इस बार इन्हें उनके जन्मदिन पर सरप्राइज दूँ — और तुम्हें भी एक तोहफ़ा दूँ, अपनी माँ से मिलने का मौका।”


मैं कुछ बोल ही नहीं पाई।

बस दोनों को गले लगते हुए देखा, और आँखों से आँसू खुद-ब-खुद बह निकले।


माँ ने मेरे सिर पर हाथ रखा, “बेटा, ससुराल में अब तू अकेली नहीं है, तेरी दो माएँ हैं। एक जिसने जन्म दिया, और एक जिसने घर दिया।”


मैंने झुककर दोनों के पाँव छुए और मन ही मन सोचा —

अगर हर माँ ऐसी हो, और हर मम्मी जी में इतना अपनापन हो, तो हर घर में त्योहार रोज़ मनाया जाए।


अंतिम पंक्ति:

आज माँ का जन्मदिन 

था, पर असली तोहफ़ा मुझे मिला —

दो माओं का प्यार, एक ही छत के नीचे।


#MaaKaTohfa #RishtonKiGarmi




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